बहुत हीं शांत, सौम्य और सज्जन
पुरुष थे वे लोग ।
और
पहने हुए थे
सच से भी ज्यादा
साफ़ और स्वच्छ कपड़े ।
लोगों को पहनाया करते थे
अपनी सफ़ेद टोपीयां ।
लोग आज भी
टोपीयां पहने हुए
पाये जाते है ।
(तस्वीर http://ngodin.livejournal.com से ली गयी है)
बहुत खूब
जवाब देंहटाएंलोग आज भी
टोपीयां पहने हुए
पाये जाते है ।
तंज की धार जबरदस्त
लोग आज भी
जवाब देंहटाएंटोपीयां पहने हुए
पाये जाते है par शांत, सौम्य और सज्जन
पुरुष nahin milte
टोपी से ही पहचाने जा रहे हैं...क्या विडंबना है!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया!
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
बहुत ही सुन्दर व लाजवाब रचना। रचना उम्दा बन पड़ी। बहुत-बहुत बधाई.,,,,,,,,,,,,,
जवाब देंहटाएंबहुत खूब...
जवाब देंहटाएंलाजवाब !!!
जवाब देंहटाएंबहुत ही खुबसूरत रचना.........
जवाब देंहटाएंसच कहा .... पर आज इस टोपी के मायने बदल गए हैं ........ शशक्त रचना, गहरा लिखा है .........
जवाब देंहटाएंChandan.......... bahut hi sateek aur laajaawaab rachna...........
जवाब देंहटाएंkudos.....bahut hi prabhavi. Quote karne layak
जवाब देंहटाएंRegards,
Ankur
http://gubaar-e-dil.blogspot.com
topi pahne hue paaye jaate hain ya topi pahnaate hue paaye jaate hain ??
जवाब देंहटाएंdidi
Agar yeh vyang hai to badhiya hai!
जवाब देंहटाएंLaazwab, bahut hi badiya.
जवाब देंहटाएंchandan ji
दिखे न दिखे, टोपी कोई पहना गया, कई बार महसूस हुआ.
जवाब देंहटाएंबहुत सशक्त रचना है, सीधे सपाट शब्दों में.........
हार्दिक बधाई.
चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
सुंदर कटाक्ष !!!!
जवाब देंहटाएंkya bat hai
जवाब देंहटाएंबहुत मस्त, एकदम जबरजस्त लिखे हो भैया...और हमरे ब्लाग पर अवे खातिर ...उ का कहत है अंग्रेजी माँ---ठुन्कू...भाई आवत रहेयो हमारी ड्योढी पर
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में अच्छी अभिव्यक्ति है आपकी
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
जय हो ...
इस मासूम सी कविता को बार बार पढने का दिल कर रहा है।
जवाब देंहटाएं-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }