शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

टोपीयां

 

 

 

बहुत हीं शांत, सौम्य और सज्जन

पुरुष थे वे लोग ।

और

पहने हुए थे

सच से भी ज्यादा

साफ़ और स्वच्छ कपड़े ।

लोगों को पहनाया करते थे

अपनी सफ़ेद टोपीयां ।

लोग आज भी

टोपीयां पहने हुए

पाये जाते है ।

 

 

 

                           (तस्वीर http://ngodin.livejournal.com से ली गयी है)

20 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब
    लोग आज भी
    टोपीयां पहने हुए
    पाये जाते है ।
    तंज की धार जबरदस्त

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  2. लोग आज भी
    टोपीयां पहने हुए
    पाये जाते है par शांत, सौम्य और सज्जन
    पुरुष nahin milte

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  3. टोपी से ही पहचाने जा रहे हैं...क्या विडंबना है!

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  4. बहुत ही सुन्दर व लाजवाब रचना। रचना उम्दा बन पड़ी। बहुत-बहुत बधाई.,,,,,,,,,,,,,

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  5. सच कहा .... पर आज इस टोपी के मायने बदल गए हैं ........ शशक्त रचना, गहरा लिखा है .........

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  6. kudos.....bahut hi prabhavi. Quote karne layak
    Regards,
    Ankur
    http://gubaar-e-dil.blogspot.com

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  7. दिखे न दिखे, टोपी कोई पहना गया, कई बार महसूस हुआ.
    बहुत सशक्त रचना है, सीधे सपाट शब्दों में.........

    हार्दिक बधाई.

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  8. बहुत मस्त, एकदम जबरजस्त लिखे हो भैया...और हमरे ब्लाग पर अवे खातिर ...उ का कहत है अंग्रेजी माँ---ठुन्कू...भाई आवत रहेयो हमारी ड्योढी पर

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  9. कम शब्दों में अच्छी अभिव्यक्ति है आपकी
    सुंदर रचना
    जय हो ...

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  10. इस मासूम सी कविता को बार बार पढने का दिल कर रहा है।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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