शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

प्रेम का यह गीत, केरल में बरसात और गाय

अभी अभी जैसे हीं घर के बरामदे की बत्ती जलाई कि एक गाय उठकर खड़ी हो गयी और उसके पीछे उसका बच्चा भी था । अभी यहाँ केरल में तीन दिनों से झमाझम बरसात हो रही है । यहां बैठा मैं पोस्ट लिख रहा हूँ और बाहर वर्षा में  नारियल, केले, कटहल और काली मिर्च के पौधे बेतहासा झूम रहे है । बरामदे की बत्ती जलाते ही गाय डर कर खड़ी हो गयी । बरसात से बचने के लिये वह यहाँ आकर बैठ गयी थी पर उसका बच्चा बाहर भींग रहा था । मोबाईल कैमरे से मैनें कुछ चित्र भी ले लिये । रसोई से एक रोटी लाकर, आधी रोटी गाय को खिलायी और और जैसे हीं दूसरी आधी रोटी बच्चे को खिलाने की कोशिश की, कि दोनों भाग खड़े हुए । अब दोनों बाहर बरसात में भींग रही होंगी । इसका पाप भी  मेरे सिर ही जायेगा । एक पाप और सही ।

आज शाम में माँ से बात हुई थी । गांव में वर्षा नहीं हो रही है । पता नहीं खेतों में खड़े धान के पौधों पर क्या बीत रही होगी । गृहस्थ मर रहा है । इन्द्र देवता की मेहेरबानी देखिये । जब भी गांव जाता हूँ मैं, वर्षों से एक नहर बनते देखता हूँ । जब से होश संभाला है, करीब 15 वर्ष से देख रहा हूँ, यह नहर बन हीं रही है । पता नहीं इस नहर का पानी कब खेतो में पहुँचेग़ा । पर किसान है कि हार नहीं मानता । भूखे पेट भी वह जी हीं रहा है । उसके बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं । पता नहीं कैसा समाज बन रहा है या बना रहे है हम ।

प्रेम का यह गीत

फूल से लदे धान के पौधे

कंठ तक पानी से भरे खेत ।

प्रेम का यह गीत

बस तुम्हारे लिये है

तुम्हारे लिये………

ओ मेरे देश के

हजारों हजार

श्रमजीवी, कर्मयोद्धा, भूमिपुत्र

बस तुम्हारे लिये ।

नहीं गा सकता

यह गीत हर कोई ।

यह गीत उनका है

जो हर दिन मरते हैं

और

फिनिक्स पक्षी की तरह

जी उठते हैं

अपनी ही राख से ।

34 टिप्‍पणियां:

  1. केरल में क्या कर रहे हो? माफ़ करना लेकिन मैं तुम्हारे बारे में कुछ ख़ास नहीं जानता. पुरानी पोस्टें देखनी पड़ेंगी! याद आ गया, इंजीनियरिंग कर रहे हो, ठीक है न?

    गौ माता को अनचाहे ही भगा देने का व्यर्थ पाप ढोने और कभी न बनने वाली नहर की मानिंद खाली पेट पर अफ़सोस करने के बाद प्रेमगीत से रूमानियत की उम्मीद नहीं थी.

    अच्छा लगा. अब रोज़ आयेंगे!:)

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  2. आज शाम में माँ से बात हुई थी । गांव में वर्षा नहीं हो रही है । पता नहीं खेतों में खड़े धान के पौधों पर क्या बीत रही होगी । गृहस्थ मर रहा है । इन्द्र देवता की मेहेरबानी देखिये । जब भी गांव जाता हूँ मैं, वर्षों से एक नहर बनते देखता हूँ । जब से होश संभाला है, करीब 15 वर्ष से देख रहा हूँ, यह नहर बन हीं रही है । पता नहीं इस नहर का पानी कब खेतो में पहुँचेग़ा । पर किसान है कि हार नहीं मानता । भूखे पेट भी वह जी हीं रहा है । उसके बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं । पता नहीं कैसा समाज बन रहा है या बना रहे है हम..... hmmmm...yeh to hai........ pata nahi .yeh sarkari tantra hai.........

    फिनिक्स पक्षी की तरह
    जी उठते हैं
    अपनी ही राख से ......... bahut avhvhi lines hain yeh.......


    prem geet achcha laga...

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  3. लेखन सशक्त है, भावपूर्ण है.

    व्यर्थ पराधबोध न लें अपने दिल पर...लाईट ऑफ कर घर के भीतर आ जायें, गाय फिर बैठ जायेगी.

    इस बार सूखे की वजह से बहुत स्थानों पर परेशानी है.

    गीत अच्छा है.

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  4. गाय तो गाय है और फिर अपने बच्चे के साथ है. गाय को आसरा देने वाले ही आश्रयहीन हो रहे है.
    हर दिन मरते और फिर फिनिक्स पक्षी की तरह जी उठने वाले लोगो के लिये दर्द कर्मयोद्धाओ को बखूबी अभिव्यक्त किया है.

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  5. आपके मोबाइल से चित्र उतने ही बढ़िया आते हैं जितने सुन्दर हैं आपके विचार।

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  6. बहुत ही लाजवाब रचना। शानदार व सशक्त लेखन। बहुत-बहुत बधाई

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  7. आपने बहुत ही सशक्‍त भाव से लिखा है। आशा करता हूं इसी तरह आप लिखते रहेंगे।
    मेरी शुभकामना आपके साथ है।

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  8. bahoot khoob mitra............
    dono paristhitiyon ka kya samavesh kiya hai..
    sach me yeh to hriday sparshi hai

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  9. फिनिक्स पक्षी की तरह

    जी उठते हैं

    अपनी ही राख से ।....kabhi na harne ka msg dete hai ye panchhi.....

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  10. मै ख़ुद एक भूमी कन्या हूँ ...और आपका वर्णन इतना सजीव है ,कि , मन उस गाँव में चला गया ...गाँव जिसे मेरे मन ने कभी छोडाही नही ...जहाँ लकडी के चुल्हेवाली रसोईके पीछेसे १२ महीने नहर बहती थी...अब २ माह में दो दिन पानी आता है..रसोई के पीछे नहर को लग के खेत थे/हैं, एक लकडी की पुलिया पे या किनारे, किनारे लगे पेड़ों पे बैठ पढाई किया करते थे...बैल गाडी में शहर आया जाया करते थे...बाद में बस...बैलों को एक रोटी परसे रूठते हुए देखा है! 'के मुझे पहले क्यों न दी...!" कह मुँह फेर लेता हो..बहुत कुछ याद आ गया!

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  11. Hey,why do you think that you have committed a sin?
    Indeed you persuaded them for shelter in order to avoid getting washed-off in that horrible rain and also offered them bread.

    This shows how helpful actually you are and your benevolence towards animals!

    One of the most awesome post.
    Keep writing.

    Salute !!!

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  12. प्रिय चंदन कुमार,

    आप आने वाले कल के एक इंजिनियर है, मैं समझता हूँ कि जितना संवेदनशील एक इंजिनियर होगा उतना ही वह विकास की प्रक्रिया में साझी होगा, और वह संवेदनशीलता आपकी पोस्टों में देखी जा सकती हैं फिर वह चाहे गाय और उसका बछड़ा हो या धान के लहलहाते खेतों में ही हौम हो जाने वालि किसान।

    खूब लिखिये और गाईये वो गीत।

    बहुत अच्छी लगी आपकी पोस्ट, मेरी शुभकामनायें हैं आपके साथ।

    मुकेश कुमार तिवारी

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  13. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  14. चन्दन जी,मैंने आपके बारे में पहले सुना था की आपका एक ब्लॉग भी है, वैसे तो मुझे साहित्य का ज्यादा ज्ञान नहीं है,लेकिन कल मैंने इ-नेक्स्ट अख़बार में आपके ब्लॉग के बारे में पढ़ा और पढ़ के मुझे काफी अच्हा लगा,इस्वर से मेरी विनती है की आप इसी तरह आगे लिखे और तरक्की करे

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  15. behterin....

    keral hamesha se hi mujhe aakarshit karta raha hai !!

    aapki post main vishes taur se keral ka varnan sunta hoon hoon to man pakheru ho jaata hai !!

    dekho kabhi mauka aur paise hon to !!

    "फिनिक्स पक्षी की तरह
    जी उठते हैं
    अपनी ही राख से ।
    "
    kavita bhavpoorn thi ...
    padh ke hum bhi फिनिक्स hue chahte hain.

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  16. Bhot achha likha hai aapne, padkar ek ajeeb sa sukun milta hai, apne ganv ghar se itni door jab maine aapka blog pada to sach manie, mujhe wahi kushbu jo kabhi savan ke pahli barish par tapti jammen se nikalti hai.. sayad mai apni feeling ko theek se nahi bata paa raha lekin mai itna kahunga ki aap apne vicharo ke sath aise hi aage badie..
    All the best my friend.. wishing you a great success for your future..!!

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  17. Gaay ko shayad ye laga ho ki aap use marne aa rahe hain, ya fir, use nahane ki ichha ho uthi!

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  18. यह गीत उनका है
    जो हर दिन मरते हैं
    और
    फिनिक्स पक्षी की तरह
    जी उठते हैं
    अपनी ही राख से..

    बहुत सुंदर चंदन भाई..
    मन को छू गयी.. अभी मैं भी गाँव घूम कर आया हूँ.. सचमुच यही स्थिति है वर्षा के अभाव में..

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  19. यह गीत उनका है
    जो हर दिन मरते हैं
    और
    फिनिक्स पक्षी की तरह
    जी उठते हैं
    अपनी ही राख से..
    Chandan bauwa,
    bahut hi sundar rachna...
    ek aasha ka avirbhaav to dikh hi raha hai tumhaari kavita mein...
    nahar nahi bani hai aur shayad abhi bane bhi nahi ..bas ek hi ummeed hai tum jaise navjawaan jab gaddi samhaaloge to shayad desh ka kuch bhala ho jaayega...
    aur tasveerein to bas gazab kar gayin ...shaandaar..
    sabkuch hridaysparshi laga tumhari rachna mein...
    dil ke bilkul kareeb...

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  20. बहुत अच्छी पोस्ट चंदन। नाम के अनुरूप एक सुगंध दे रही है पोस्ट लेकिन यह सुंगध चंदन की नहीं है बल्कि की गांव की सौंधी मिट्टी की है।

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  21. चंदन जी ,

    बहुत ही अच्छा लगा और यह भी पता चला कि आपका ह्रदय कितना कोमल है। मैंने आपके खींचे हुए चित्रों को भी देखा उसमे आप माटी से जुड़े हुए इन्सान लगे।

    जिस दिन आपका यह पोस्ट प्रकाशित हुआ ठीक उसके एक दिन पहले ही हमारे घर के बगल खाली प्लाट पर एक गाय ने एक बछड़े को जन्म दिया। हमने शाम तक इंतजार किया कि उसका कोई मालिक आ जाए परन्तु नही आए। बाहर बहुत बारिश हो रही थी। गाय और बछड़ा दोनों ही भीग रहे थे , एक मदार का पेड़ था उसके नीचे ही गाय अपने बच्चे को बारिश से बचाने कि कोशिश कर रही थी। हमें वह अपने पास आने नही दे रही थी।

    जब शाम को मेरे पति घर आए तो इस घटना की जानकारी मैंने उनको दी अगर रात भर वे बहार रहेंगे तो बछड़ा और माँ दोनों को कुछ भी हो सकता था। फ़िर हमने पहले तो उसे ५-६ रोटियां दी और ताज़ा भात दिया उसे अपने विश्वास पे लिया और अपने गैंरैज़ पर सबसे पहले बछड़े को लाये तो गाय ख़ुद अपने बच्चे के साथ आ गई।

    हमने एक जगह उसकी व्यवस्था कर दी है। जब तक उसके मालिक का पता नही चल जाता हमने उसकी जिम्मेदारी ले ली है औरो को भी इसकी जानकारी दे दी है

    अभी बछड़ा बहुत अच्छा है और खूब बदमाशी भी करता है। गाय भी बहुत खुश है।

    अब दिल में सुकून है।

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  22. एक साथ दो-तीन भावपूर्ण रचनाओं के साथ आपका यह प्रयास काफी सार्थक रहा. चित्र भी बढ़िया रहे. भावः-विभोरित हो मैं भी लगे हाथ रोटियां सेक गया, सोचा गए भी है, पानी भी है , जायेगी कहाँ, देर-सबेर खा ही लेगी, सो मैं भी अधूरी सी सिंकी रोटी यही छोड़ कर ही जा रहा हूँ...........

    गौ माता, को आधी रोटी,
    संग बछडे भाग खड़ी होती
    भीग पानी में है कोसती
    हाथो में देख अधूरी रोटी

    माँ को फोन सूखे का बोध
    नहर अधूरी देती है क्रोध
    बनने-बनाने का क्यूँ शोध
    ये ऊपर का है प्रतिशोध

    प्रेम का यह गीत कैसे
    जी रहे जब राख जैसे
    श्रम, कर्म भूमि अब वैसे
    रह गए हैं बस बन पैसे

    चन्द्र मोहन गुप्त
    जयपुर
    www.cmgupta.blogspot.com

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  23. चन्दन जी,

    आप इंजीनियरिंग के छात्र हैं लेकिन हृदय से शुद्ध साहित्यकार और कवि हैं. आपके आलेख में मौजूद संवेदना मेरे मन को छू गई.

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  24. प्रेम का यह गीत

    बस तुम्हारे लिये है

    तुम्हारे लिये………

    ओ मेरे देश के

    हजारों हजार

    श्रमजीवी, कर्मयोद्धा, भूमिपुत्र

    बस तुम्हारे लिये ।

    कर्मयोद्धाओं को प्रेरित करते इस सुंदर गीत के लिए आपको हार्दिक बधाई ....!!

    गौ माता की तस्वीर बड़ी प्यारी है ....!!

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  25. बहुत ही लाजवाब रचना। शानदार व सशक्त लेखन। बहुत-बहुत बधाई

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  26. बहुत सुंदर चंदन भाई..
    मन को छू गयी.. अभी मैं भी गाँव घूम कर आया हूँ.. सचमुच यही स्थिति है वर्षा के अभाव में..

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  27. बेहतरीन प्रस्तुति. आभार.

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