रविवार, 6 दिसंबर 2009

निर्माण

 

मैं कह देता हूँनिर्माण

अपनी बात ।

जब भी मन करता है

कह देता हूँ ।

 

मैं नहीं जानता कि

तुम तक

पहुँच भी पाती है

मेरी आवाज या नहीं  ।

फिर भी

चुप नहीं रह पाता मैं ।

 

मुझे पता है कि

मेरी आवाज बहुत धीमी है ।

मुझे पता है कि

जब भी बोलता हूँ

शब्द लड़खड़ा जाते है मेरे ।

 

पर क्या

इसलिये मैं चुप हो जाऊँ

कि मैं दहाड़ नहीं सकता ।

मैं चढ़ नहीं सकता पहाड़ों पर

तो क्या ?

 

मैं बहता रहूँगा नदियों में

कल-कल की ध्वनि बनकर

जो उतरकर आती है

इन्हीं पहाड़ों से ।

 

मेरे विचारों पर

खामोशी की परत

जरूर चढ़ी है

पर मैं इन्हें बदल दूँगा

वक्त की ऊर्जा में ।

 

जब भी मैं चुप होता हूँ

बहुत करीब हो जाता हूँ

तुमसे !!!

आओ निर्माण करें ।

21 टिप्‍पणियां:

  1. सकारात्मक भाव...बेहतरीन रचना!

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  2. जब भी मैं चुप होता हूँ
    बहुत करीब हो जाता हूँ
    तुमसे !!!
    आओ निर्माण करें ।
    बेहतरीन खयाल है. सुन्दर आह्वान. विचार खुद उर्जा है इन्हे आवाज की जरूरत नही है

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  3. चुप हो जाऊं की दहाड़ नहीं सकता ....
    बिलकुल नहीं ....
    जब भी चुप होता हूँ बहुत करीब हो जाता हूँ ...
    विरोधाभास है ...मगर खूबसूरत है ...!!

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  4. बेहद सहज प्रवाह और भावानात्मक समन्विति से लिखी कविता । आभार ।

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  5. बहुत ही सुंदर बात कह दी आपने अपनी पंक्तियों में चंदन जी ....
    लिखते रहिये ....शुभकामनाएं

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  6. सुन्दर , सार्थक , सकारात्मक कविता

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  7. सकारात्मक भाव के साथ ..... बहुत अच्छी कविता......

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  8. जब भी मैं चुप होता हूँ

    बहुत करीब हो जाता हूँ

    तुमसे !!!

    आओ निर्माण करें ।

    Bahut hi pyari si abhiwyakti....

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  9. निर्माण को अग्रसर करती भावनात्मक रचना ........ अनुपम रचना .........

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  10. kuch karne ka bhav hai tumhaari kavita mein aur wahi to aatma hai iski...
    bahut hi sundar...


    pata nahi kyun hindi mein likh kar paste karna chaahe nahi hua...
    didi...

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  11. सही है जी सन्नाटे में/चुपाने में निर्माण की ताकत ज्यादा होती है। प्रकृति भी चुप होती है तो निर्माण करती है। शोर करती है तो सामान्यत: नष्ट करती है!

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  12. बहुत बढ़िया भाव एवं बढ़िया कविता...

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  13. हम तक तक तो पहुँचती है आपकी बात. सुंदर.

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  14. मैं बहता रहूँगा नदियों में
    कल-कल की ध्वनि बनकर
    जो उतरकर आती है
    इन्हीं पहाड़ों से ।
    बहुत ही सुंदर और भावपूर्ण रचना लिखा है आपने! हर एक पंक्तियाँ लाजवाब है! इत्तेफाक़ की बात ये है की मैंने एक रचना लिखा है जिसका शीर्षक भी करीब करीब आपके शीर्षक से मिलता है! मेरे इस ब्लॉग पर आपका स्वागत है-
    http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com

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  15. एक बहुत ही सुंदर कविता, चंदन भाई....बहुत सुंदर!

    जितना सुंदर प्रवाह, उतना ही सुंदर शब्द-संयोजन!

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  16. आपमें अनंत ऊर्जा है; निर्माण अवश्य होगा.

    बधाई और शुभकामनाएं !!

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  17. चन्दन अपने लाइव ट्रेफिक फीड में देख कर सोचता था कि अनुनाद पर कोच्चि से कौन आता है....अब पता चला कि आप आते हैं.
    आप इंजीनियरिंग के छात्र हैं...मास्टर्स छोड़ कर मैं भी जीवन भर विज्ञान का छात्र रहा. आपकी साहित्य में रूचि अच्छी लगी मुझे. आपका ब्लॉग भी शानदार है-

    जियें तो अपने बगीचे में गुलमोहर के तले,
    मरें तो गैर की गलियों में गुलमोहर के लिए.
    (दुष्यंत)

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