सफ़र रुकता नहीं, पांव थमते नहीं, बस चलते जाना है.......चलते जाना है ।
किनारे को लांघकर
लकीर पर चढ़ता गया मैं ।
लकीर बढ़ती हीं गयी
और रह गया
मैं किनारे पर हीं ।
आखिर यह किनारा
खत्म क्यों नहीं होता ?
वाह चंदन जी ,कम शब्दों में बहुत गहरा कह गए भाई
सच कम शब्दों में बहुत ही गहरी बात..... बहुत अच्छी लगी यह कविता.....
सुंदर , अतिसुंदर
बहुत ही अच्छी रचना है ........
हम्म अच्छी तरह बयाँ किया है,मन की उलझन को
उम्दा अभिव्यक्ति!
Chandanji,Very good. A couple of days ago, I had posted a poem which revolves round a similar theme. Please comment upon that.
more....It was titled "PRATEEKSHAA" (posted on 12th DEC).
Rachnake bhaav darshata chitr...ham sabhi kinare pe hee hai..kahan koyi laangh paya paat ko?
बेहतरीन ......... गहरी बात लिखी है ..... ये लकीर भी कोई मरीचिका है .........
bahut hi gahan abhivyakti.
सुन्दर!
hmmm... a question full of depth.. I m also stuck up in such a situation... infact every one is.. The question being how and when will this end ...Really nice description...I liked it... Log kehte hain ki main na-umeedi ka shayar hoon.. Do comment on this... Thankshttp://painandpaper.blogspot.com/
बहुत अच्छा।
Wahwa...achhi rachna...
बहुत ही सुन्दर बहुत पसंद आई आपकी लिखी रचनाएं शुक्रिया
बहुत ही सुन्दर प्रस्तुति । सारी शुभकामनायें.संजय कुमार हरियाणा http://sanjaybhaskar.blogspot.com
पसंद आई कविता.
न किनारा खत्म होता है न मंजिल खत्म होती हैखत्म तो सिर्फ सफर होता है।
बहुत सुन्दर रचनाबहुत बहुत बधाई .....
उत्तर पाने के लिए किनारे के साथ-साथ चलना पड़ेगा!नए वर्ष पर मधु-मुस्कान खिलानेवाली शुभकामनाएँ!सही संयुक्ताक्षर "श्रृ" या "शृ"FONT लिखने के चौबीस ढंगसंपादक : "सरस पायस"
थोड़े से शब्दों में सुन्दर भावाव्यक्ति. कविता बहुत अच्छी लगी.महवीर शर्मा
Chandan ji नव वर्ष की आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें.....
na milte hai na mit te hai na khatam hote hai kinare..khatam ho jaye to zindgee me badh aa jaye inka hona h hitkar hai chahe sukhkar hai ki nahi...
बहुत सुन्दर रचना बहुत बहुत आभार
आखिर यह किनाराखत्म क्यों नहीं होता ?Shayad har insaan ko kinara khatm honekee ummeed /aas hoti hai!
आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने!
क्या कर रहे हो? कुछ नया लगाओ, भाई!--"सरस्वती माता का सबको वरदान मिले, वासंती फूलों-सा सबका मन आज खिले! खिलकर सब मुस्काएँ, सब सबके मन भाएँ!"--क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई! -- संपादक : सरस पायस
subhanallah
Gantantr diwas kee anek shubhkamnayen!
सुन्दर रचना बहुत बहुत आभार
बहुत खूब चंदन जीजीवन की यही हकीकत है।
वाह चंदन जी ,
जवाब देंहटाएंकम शब्दों में बहुत गहरा कह गए भाई
सच कम शब्दों में बहुत ही गहरी बात..... बहुत अच्छी लगी यह कविता.....
जवाब देंहटाएंसुंदर , अतिसुंदर
जवाब देंहटाएंबहुत ही अच्छी रचना है ........
जवाब देंहटाएंहम्म अच्छी तरह बयाँ किया है,मन की उलझन को
जवाब देंहटाएंउम्दा अभिव्यक्ति!
जवाब देंहटाएंChandanji,
जवाब देंहटाएंVery good. A couple of days ago, I had posted a poem which revolves round a similar theme. Please comment upon that.
more....
जवाब देंहटाएंIt was titled "PRATEEKSHAA" (posted on 12th DEC).
Rachnake bhaav darshata chitr...ham sabhi kinare pe hee hai..kahan koyi laangh paya paat ko?
जवाब देंहटाएंबेहतरीन ......... गहरी बात लिखी है ..... ये लकीर भी कोई मरीचिका है .........
जवाब देंहटाएंbahut hi gahan abhivyakti.
जवाब देंहटाएंसुन्दर!
जवाब देंहटाएंhmmm... a question full of depth.. I m also stuck up in such a situation... infact every one is.. The question being how and when will this end ...
जवाब देंहटाएंReally nice description...
I liked it...
Log kehte hain ki main na-umeedi ka shayar hoon.. Do comment on this... Thanks
http://painandpaper.blogspot.com/
बहुत अच्छा।
जवाब देंहटाएंWahwa...achhi rachna...
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर बहुत पसंद आई आपकी लिखी रचनाएं शुक्रिया
जवाब देंहटाएंसच कम शब्दों में बहुत ही गहरी बात..... बहुत अच्छी लगी यह कविता.....
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुन्दर प्रस्तुति ।
जवाब देंहटाएंसारी शुभकामनायें.
संजय कुमार
हरियाणा
http://sanjaybhaskar.blogspot.com
पसंद आई कविता.
जवाब देंहटाएंन किनारा खत्म होता है न मंजिल खत्म होती है
जवाब देंहटाएंखत्म तो सिर्फ सफर होता है।
बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत बधाई .....
उत्तर पाने के लिए किनारे के साथ-साथ चलना पड़ेगा!
जवाब देंहटाएंनए वर्ष पर मधु-मुस्कान खिलानेवाली शुभकामनाएँ!
सही संयुक्ताक्षर "श्रृ" या "शृ"
FONT लिखने के चौबीस ढंग
संपादक : "सरस पायस"
थोड़े से शब्दों में सुन्दर भावाव्यक्ति. कविता बहुत अच्छी लगी.
जवाब देंहटाएंमहवीर शर्मा
Chandan ji नव वर्ष की आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें.....
जवाब देंहटाएंna milte hai na mit te hai na khatam hote hai kinare..khatam ho jaye to zindgee me badh aa jaye inka hona h hitkar hai chahe sukhkar hai ki nahi...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
आखिर यह किनारा
जवाब देंहटाएंखत्म क्यों नहीं होता ?
Shayad har insaan ko kinara khatm honekee ummeed /aas hoti hai!
आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने!
क्या कर रहे हो?
जवाब देंहटाएंकुछ नया लगाओ, भाई!
--
"सरस्वती माता का सबको वरदान मिले,
वासंती फूलों-सा सबका मन आज खिले!
खिलकर सब मुस्काएँ, सब सबके मन भाएँ!"
--
क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
--
संपादक : सरस पायस
subhanallah
जवाब देंहटाएंGantantr diwas kee anek shubhkamnayen!
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार
बहुत खूब चंदन जी
जवाब देंहटाएंजीवन की यही हकीकत है।