सोमवार, 14 दिसंबर 2009

किनारा

किनारे को लांघकर किनारा

लकीर पर चढ़ता गया मैं ।

लकीर बढ़ती हीं गयी

और रह गया

मैं किनारे पर हीं ।

आखिर यह किनारा

खत्म क्यों नहीं होता ?

33 टिप्‍पणियां:

  1. वाह चंदन जी ,
    कम शब्दों में बहुत गहरा कह गए भाई

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  2. सच कम शब्दों में बहुत ही गहरी बात..... बहुत अच्छी लगी यह कविता.....

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  3. हम्म अच्छी तरह बयाँ किया है,मन की उलझन को

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  4. Chandanji,
    Very good. A couple of days ago, I had posted a poem which revolves round a similar theme. Please comment upon that.

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  5. Rachnake bhaav darshata chitr...ham sabhi kinare pe hee hai..kahan koyi laangh paya paat ko?

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  6. बेहतरीन ......... गहरी बात लिखी है ..... ये लकीर भी कोई मरीचिका है .........

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  7. hmmm... a question full of depth.. I m also stuck up in such a situation... infact every one is.. The question being how and when will this end ...

    Really nice description...
    I liked it...

    Log kehte hain ki main na-umeedi ka shayar hoon.. Do comment on this... Thanks

    http://painandpaper.blogspot.com/

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  8. बहुत ही सुन्दर बहुत पसंद आई आपकी लिखी रचनाएं शुक्रिया

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  9. सच कम शब्दों में बहुत ही गहरी बात..... बहुत अच्छी लगी यह कविता.....

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  10. बहुत ही सुन्‍दर प्रस्‍तुति ।
    सारी शुभकामनायें.

    संजय कुमार
    हरियाणा
    http://sanjaybhaskar.blogspot.com

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  11. न किनारा खत्म होता है न मंजिल खत्म होती है
    खत्म तो सिर्फ सफर होता है।

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  12. बहुत सुन्दर रचना
    बहुत बहुत बधाई .....

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  13. थोड़े से शब्दों में सुन्दर भावाव्यक्ति. कविता बहुत अच्छी लगी.
    महवीर शर्मा

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  14. Chandan ji नव वर्ष की आपको और आपके परिवार को हार्दिक शुभकामनायें.....

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  15. na milte hai na mit te hai na khatam hote hai kinare..khatam ho jaye to zindgee me badh aa jaye inka hona h hitkar hai chahe sukhkar hai ki nahi...

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  16. बहुत सुन्दर रचना
    बहुत बहुत आभार

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  17. आखिर यह किनारा

    खत्म क्यों नहीं होता ?
    Shayad har insaan ko kinara khatm honekee ummeed /aas hoti hai!

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  18. आपको और आपके परिवार को नए साल की हार्दिक शुभकामनायें!
    बहुत बढ़िया रचना लिखा है आपने!

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  19. क्या कर रहे हो?
    कुछ नया लगाओ, भाई!

    --
    "सरस्वती माता का सबको वरदान मिले,
    वासंती फूलों-सा सबका मन आज खिले!
    खिलकर सब मुस्काएँ, सब सबके मन भाएँ!"

    --
    क्यों हम सब पूजा करते हैं, सरस्वती माता की?
    लगी झूमने खेतों में, कोहरे में भोर हुई!
    --
    संपादक : सरस पायस

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  20. बहुत खूब चंदन जी
    जीवन की यही हकीकत है।

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