सोमवार, 15 मार्च 2010

क्योंकि मैं घबड़ा जाती हूँ तेरी नाराजगी से

दीदी समता की एक रचना-

बगैर आँसू के जो गुलशन हरा न हो,CACLSFCV
भला क्या वास्ता हो उस हरियाली से ।

वो आईना धुँधला ही पर जाये तो बेहतर हो
जो खौफ़ का समां बना दे अपनी सफ़ेदगी से ।

बहुत चाहा, बहुत समझा अपना जिसे,
कैसे नवाज दूँ उसे शब्द अजनबी से ।

तेरी फुरकत में नज़र न आये अपनी भी सूरत,
यही वज़ह है कि मैं बचती फिरती हूँ रौशनी से ।

अगर सँवरते हो सिर्फ़ मेरे लिये तो सँवरना छोड़ दो
क्योंकि मुझे तो मुहब्ब्त है बस तेरी सादगी से ।

जब भी मिलते हो तुम दर्द दिल बयां करते हो
मैं हीं तंग आ चुकी हूँ मुहब्बत की राजगी से ।

मेरी गुस्ताखी के बदले अपनों की तरह शिकायत कर दो,
क्योंकि मैं घबड़ा जाती हूँ तेरी नाराजगी से ।

-(समता झा)

9 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत चाहा, बहुत समझा अपना जिसे,

    कैसे नवाज दूँ उसे शब्द अजनबी से ।

    सुंदर शब्दों के साथ.... बहुत सुंदर अभिव्यक्ति....

    जवाब देंहटाएं
  2. ग़ज़ब की कविता ... कोई बार सोचता हूँ इतना अच्छा कैसे लिखा जाता है .

    जवाब देंहटाएं
  3. मेरी गुस्ताखी के बदले अपनों की तरह शिकायत कर दो,

    क्योंकि मैं घबड़ा जाती हूँ तेरी नाराजगी से ।


    -बहुत सुन्दर!!

    जवाब देंहटाएं
  4. वो आईना धुँधला ही पर जाये तो बेहतर हो
    जो खौफ़ का समां बना अपनी सफ़ेदगी से...

    kya kahne....

    जवाब देंहटाएं
  5. Kya baat hai. aur gajab ka picture hai.
    nice very nice.
    congrats to samta ji and aapko bhi chandan ji picture hamen bahut hi acchi lagi.
    aur mene ise save kar liya
    thank u so much.
    take care...

    जवाब देंहटाएं
  6. My god Chandan ji gajab ka imagination hai picture me wah maja aa gaya hamen.

    जवाब देंहटाएं