शुक्रवार, 10 अप्रैल 2009

कारण

ईश्वर के द्वारा बनायी गयी सबसे पहली दुनिया सभी दृष्टीकोणों से सम्पूर्ण थी। परन्तु पता नहीं क्यों यह दुनिया कुछ अधिक दिन तक चल नहीं सकी और नष्ट हो गयी ।


बहुत सोच-विचार के पश्चात ईश्वर ने पुनः एक नई दुनिया बनायी और इस बार उसने इस दुनिया में दुःख, दर्द, कष्ट, दया, प्रेम, घृणा, पश्चाताप और अनेकों कारण डाल दिये ।
और यह दुनिया आज तक चल रही है ।

गुरुवार, 9 अप्रैल 2009

सारा आकाश हमारा है





मैं स्वच्छंद गगन का पंछी
सारा आकाश हमारा है
नये पंख से नये स्वरो से
प्रकृति ने हमें संवारा है
सारा आकाश हमारा है।

उस नये खगों को देखो तुम
मचल मचल सर पटक पटक
नये पंख फैला उड़ने को उत्सुक
उसने भी गर्व से पुकारा है
सारा आकाश हमारा है।

सोने के पिंजरे में बैठा
जो लेता रस का आनन्द भरपूर
वह भी पंखो को फैलाता
पर पिंजरा ही उसका किनारा है
कैसे कह सकता
सारा आकाश हमारा है।

पर उस स्वतन्त्र पंछी से पूछो
जो उड़ता चारो किनारा है
पिंजरे को ठुकराता है
भूखा है गर्वित हो कहता
सारा आकाश हमारा है।

मैं स्वच्छंद गगन का पंछी
सारा आकाश हमारा है
पुनि पुनि कह्ता स्वतन्त्रा अभिलाषी

सारा आकाश हमारा है
सारा आकाश हमारा है।




 (22 दिसम्बर 1999)

सोमवार, 30 मार्च 2009

मेरी अभिलाषा

अभिलाषा है ऊपर उठने की मुझे
पर इतना नहीं कि झुक न सकूं
इतना न झुकूं कि उठ न सकूं।

उठने के नशे में कुचल दूं
उस लता को
जो चाहती है उपर उठना
अपना विकास करना
दुख दर्द कष्ट
किसी का बांटना।

ऐ मेरे ईश्वर
मैं उस लता को भी उपर
उठने दे सकूं
उसे भी अपना विकास
करने दे सकूं।

पतझर गर्मी वर्षा
है मेरे जीवन में भरे हुए
राह राह पर कांटे चुभते हैं
कांटे चुभते हैं ?
चुभने दो उन्हें।

चुभन है ज़िन्दगी चुभन को झेलो
अपने संग सबको विकास के पथ पर ले लो।

अभिलाषा है कि सबको संग ले कर चलूं
इस पथ पर कभी न डरूं।

अभिलाषा है उपर उठने की मुझे
पर इतना नहीं कि झुक न सकूं
इतना न झुकूं कि उठ न सकूं।

अभिलाषा है उपर उठने की मुझे। 


(16 सितम्बर 1999) 

गुरुवार, 26 मार्च 2009

अहं का विसर्जन

नमस्कार !!!!!!!!!!!!!!!
आज एक छोटी सी कहानी सुनाता हूं।

शून्यवादी नागार्जुन जब चीन पहुँचे तो वहाँ के सम्राट ने उनका भव्य स्वागत करने के बाद उनसे कहा: " मैं अहंकार से बुरी तरह पीड़ित हूँ, कृप्या कुछ करें।नागार्जुन ने कहा:"आधी रात गये अतिथि गृह में आना और हां अकेले मत आना अहंकार को भी साथ लिये आना" . नियम समयपर सम्राट अतिथि गृह के द्वार पर खड़ा था। नागार्जुन बोले, "अकेले आये हो, अहंकार को साथ नहीं लाये ?। सम्राट ने कहा, "वह तो मेरे भीतर बैठा है"। नागर्जुन बोले, "ऐसा ? तब उसे खोजो भीतर किस कोने में छिपा बैठा है । सम्राट को लगा यह आदमी तो पागल है, फिर भी वह चुप होकर बैठा गया। दो घड़ी बाद नागार्जुन ने पूछा, "मिला ?" । "कोशिश कर रहा हूं", सम्राट ने कहा । प्रत्यूंषवेला हो रही थी-एकाएक सम्राट जोर से हँसा- बोला "अब मैं समझ गया। आपका शून्यवाद " मैंपन" की ठसक से छुटकारे का दूसरा नाम है ।




साभार: दैनिक हिन्दुस्तान

शुक्रवार, 20 मार्च 2009