शनिवार को मैं गांव से दरभंगा आ गया। यहां आकर पता चला कि आसनसोल से मेरा मनीआर्डर आया हुआ है। मैं डाकघर जाने ही वाला था कि याद आया, आज तो रविवार है अतः डाकघर बन्द होगा। दूसरे दिन सुबह दस बजे डाकघर गया।
टेबल पर बैठे एक सज्जन पत्र छांट रहे थे।
उनसे मैंने कहा, " कल मेरा मनिआर्डर आया था और मैं छात्रावास मे नहीं था"।
"कतऽ रहई छी ?" ( कहां रहते हैं आप?) उनहोंने मैथिली में पूछा।
मैंने कहा, "आइन्सटीन छात्रावास में"।
"नाम की भेल ?,"(नाम क्या है?) पत्र छांटते हुए उन्होनें पूछा।
"चन्दन कुमार झा"मैंने कहा।
उन्होंने सामने कुछ दूर पर खड़े एक आदमी की ओर दिखाते हुए कहा-
"वो उन्हे देख रहे है न, जो टीका- चन्दन किये हुये है, उनके पास जाइये और अपना नाम कहियेगा तो कल आपको आपका मनिआर्डर मिल जायेगा "।
तब मुझे पता चला की मेरा मनिआर्डर डिपोजिट में रख दिया गया है। मैं समझ गया कि अब मुझे परेशान होना ही पड़ेगा। तभी चन्दन-टीकाधारी पुरुष अपने स्थान से दूसरे स्थान पर चले गये. मैं उन्हें पीछे से देख ही रहा था, और जल्दी से उनके पास गया। वे कुर्सी पर बैठ गये, सामने टेबल पर काफी सामान बिखरा हुआ था। वैसे वे उतने व्यस्त नहीं लग रहे थे।
मैनें उनसे कहा, "मेरा नाम चन्दन कुमार झा है, कल मेरा मनिआर्डर आया था, उस समय मैं हास्टल में नहीं था, सो पता चला है कि उसे डिपोजिट में रख दिया गया है, अतः क्या मुझे मेरा मनीआर्डर मिल सकता है "।
"अवश्य मिलेगा", उन्होंने पूछा,"आपको किसने भेजा है ?"
मैनें सामने दिखलाते हुए कहा, "वो जो किनारे से बैठे हुये है, लाल रंग का कुर्ता पहने हुए "।
उन्होंने अपना सिर घुमा लिया और अपने कार्य में व्यस्त हो गये।
मैं थोड़ा झुंझुला उठा।
मैनें पुनः प्रश्न किया, "क्या मुझे कल फिर आना पड़ेगा ?"
उत्तर स्पष्ट था, "आप क्यों आएगे , डाकिया पहुचां देगा"।
मैनें पूछा, "क्या आज नहीं मिल सकता ?"
उत्तर आया,"एकदम नहीं"।
मैं कुछ परेशान सा हो गया, पर क्या कर सकता था, अतः वापस छात्रावास लौट आया। दिन के १२ बज रहे थे। मैनें सोचा शायद डाकिया मनिआर्डर लेकर आज ही आ जाये अतः समाचार पत्र लेकर छत पर जाने वाली सीढी पर बैठ गया, जहां से सामने गुजरने वाली सड़क पर सीधी नजर रखी जा सके। बहुत देर तक वहां बैठा रहा, अन्त में थककर अपने कमरे में आ गया। कमरे की खिड़की से भी सामने वाली सड़क नजर आती थी अतः खिड़की से भी अवलोकन का कार्यक्रम चलता रहा कि अचानक डाकिया आता दिखाइ पड़ा। मैं भागकर नीचे गया, पर सारी आशा निराशा में बदल गयी। डाकिया ने मेरा मनिआर्डर नहीं लाया था।
चुपचाप खाना खाने चला गया ।
(२४ सितम्बर२००१)
टेबल पर बैठे एक सज्जन पत्र छांट रहे थे।
उनसे मैंने कहा, " कल मेरा मनिआर्डर आया था और मैं छात्रावास मे नहीं था"।
"कतऽ रहई छी ?" ( कहां रहते हैं आप?) उनहोंने मैथिली में पूछा।
मैंने कहा, "आइन्सटीन छात्रावास में"।
"नाम की भेल ?,"(नाम क्या है?) पत्र छांटते हुए उन्होनें पूछा।
"चन्दन कुमार झा"मैंने कहा।
उन्होंने सामने कुछ दूर पर खड़े एक आदमी की ओर दिखाते हुए कहा-
"वो उन्हे देख रहे है न, जो टीका- चन्दन किये हुये है, उनके पास जाइये और अपना नाम कहियेगा तो कल आपको आपका मनिआर्डर मिल जायेगा "।
तब मुझे पता चला की मेरा मनिआर्डर डिपोजिट में रख दिया गया है। मैं समझ गया कि अब मुझे परेशान होना ही पड़ेगा। तभी चन्दन-टीकाधारी पुरुष अपने स्थान से दूसरे स्थान पर चले गये. मैं उन्हें पीछे से देख ही रहा था, और जल्दी से उनके पास गया। वे कुर्सी पर बैठ गये, सामने टेबल पर काफी सामान बिखरा हुआ था। वैसे वे उतने व्यस्त नहीं लग रहे थे।
मैनें उनसे कहा, "मेरा नाम चन्दन कुमार झा है, कल मेरा मनिआर्डर आया था, उस समय मैं हास्टल में नहीं था, सो पता चला है कि उसे डिपोजिट में रख दिया गया है, अतः क्या मुझे मेरा मनीआर्डर मिल सकता है "।
"अवश्य मिलेगा", उन्होंने पूछा,"आपको किसने भेजा है ?"
मैनें सामने दिखलाते हुए कहा, "वो जो किनारे से बैठे हुये है, लाल रंग का कुर्ता पहने हुए "।
उन्होंने अपना सिर घुमा लिया और अपने कार्य में व्यस्त हो गये।
मैं थोड़ा झुंझुला उठा।
मैनें पुनः प्रश्न किया, "क्या मुझे कल फिर आना पड़ेगा ?"
उत्तर स्पष्ट था, "आप क्यों आएगे , डाकिया पहुचां देगा"।
मैनें पूछा, "क्या आज नहीं मिल सकता ?"
उत्तर आया,"एकदम नहीं"।
मैं कुछ परेशान सा हो गया, पर क्या कर सकता था, अतः वापस छात्रावास लौट आया। दिन के १२ बज रहे थे। मैनें सोचा शायद डाकिया मनिआर्डर लेकर आज ही आ जाये अतः समाचार पत्र लेकर छत पर जाने वाली सीढी पर बैठ गया, जहां से सामने गुजरने वाली सड़क पर सीधी नजर रखी जा सके। बहुत देर तक वहां बैठा रहा, अन्त में थककर अपने कमरे में आ गया। कमरे की खिड़की से भी सामने वाली सड़क नजर आती थी अतः खिड़की से भी अवलोकन का कार्यक्रम चलता रहा कि अचानक डाकिया आता दिखाइ पड़ा। मैं भागकर नीचे गया, पर सारी आशा निराशा में बदल गयी। डाकिया ने मेरा मनिआर्डर नहीं लाया था।
चुपचाप खाना खाने चला गया ।
(२४ सितम्बर२००१)