मेरी आँखो मे बिजलीयाँ कौंध जाती है
आंधीयाँ जब जब तूफान बन आती है।
तूफान जब जब विनाश बन आता है,
मेरे बाजुओं मे अपार शक्ति भर जाता है।
मेरा पग पल पल मृत्यु की तरफ बढता जा रहा है,
अब तो रक्त बहाने का समय भी आता जा रहा है।
इस मिट्टी को रक्त से लाल कर दूंगा,
दुश्मनों के लिये रक्त का समुद्र खडा कर दूंगा।
वह शक्ति है भुजाओं में जो पहाड़ो को भी धूल बना दे।
वह विश्वास है हृदय में जो पत्थरों को भी मोम कर दे।
है कोई मझधार नहीं, जो मुझको डुबो सके।
है कोइ दीवार नहीं, जो मुझको रोक सके।
है कोई ऊँचाई नहीं, जिसे मैं छू न सकूं।
है कोई गहराई नहीं, जिसमें मैं डूब सकूं।
तनहाईयों में जीकर जीतने की चाहत है मुझमें,
गोलियां पीठ पर नहीं,
सीने पर खाकर मरने की आदत है मुझमें।
दुश्मनों की गोलियों को प्रेमी समझ सीने से लगाता हूं,
भूख को प्रेम विरह समझ अपनाता हूं,
बन्दूकें मेरे हाथों में, उसके हाथ होने का एहसास दिलाता है,
इससे निकली गोलियाँ, हृदय को सुकून दिलाता है।
प्रलय में पले हुए है, विनाश में बढे हुए है।
सुबह हो या शाम हो, शीत हो या घाम हो।
मिट्टी ने विकास किया, अग्नि ने प्रकाश दिया।
बाधाओं ने हीं हमें बढने का एहसास दिया।
सर पे कफ़न बांध कली की तरह ईठलाता हूँ,
जब मरता हूँ तो फूल की तरह खिल जाता हूँ।
जब मेरे शरीर के टुकड़े धरती पर फैल जाते है,
स्वंय को मां के चरणों में न्योछावर पाता हूँ।
मृत्यु के समीप हूँ, घायल हूँ मृत हूँ।
पैर रुक गये है मेरे हाथ झुक गये है मेरे।
रुक गयी क्यों न हो मेरे धर की गति।
एक इच्छा हॄदय में है प्राप्त करुं वीरगति।
हिम की बरसात हो या रेत का तूफान हो।
काटों की चुभन हो या विषों का उफान हो।
विधाता से एक यही प्रार्थना है,तब भी मेरे मुख पर अविचल मुस्कन हो।
(31 जुलाई 2000)