सिनेमा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
सिनेमा लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

रविवार, 20 सितंबर 2009

विश्व सिनेमा – गाँधी(1982)

 पिछले तीन वर्षो में करीब 350 फ़िल्में देख चुका हूँ   । इनमें ज्यादातर अंग्रेजी और थोड़ी बहुत हिंन्दी और अन्य विदेशी भाषाओं में बनी फ़िल्में  हैं । हिन्दी में बहुत ही कम, गिनी चुनी फ़िल्में बन रही है आजकल जो देखने लायक है । बहुत दिनों से सोच रह था कि क्यों न कुछ फ़िल्मो की चर्चा की जाय जो मुझे अच्छी लगी । यह लेखन पूर्णतः मौलिक तो नहीं हो सकता है पर प्रयास करने में क्या बुराई है ।  बहुत सी  जानकारी इन्टरनेट से प्राप्त की जायेगी । अगर यह लेखन सार्थक हुआ तो आगे भी लिखूँगा । आईये आज करते है फ़िल्म गाँधी (Gandhi) की चर्चा ।

 

गाँधी (Gandhi)

 

महात्मा गाँधी हमारे देश के राष्ट्रपिता है । देश की स्वतंत्रता में उनके योगदान की चर्चा करने की आवश्यकता नहीं, हम सभी जानते है । मैं कुछ ऐसे लोगों से भी मिला हूँ जो इस बात को सिरे से नकारने की कोशिश करते है । देश के विभाजन का कारण वे महात्मा गाँधी को मानते है । यह भी सुना है कि अगर महत्मा गाँधी चाहते तो स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह को फँसी की सजा नहीं होती ।  जो भी हो सभी को अपने विचारों को  प्रकट करने की स्वंतन्त्रता है ।

सिनेमा को समाज का आईना भी कहते है । और आईना वही सच्चा है जो हमें अपना वास्तविक चेहरा दिखाये । गाँधी जी के जीवन पर बनी गांधी (GANDHI) एक उम्दा बायोग्राफिकल फ़िल्म है । 1982 में बनी रिचार्ड एटेन्बोरो (Richard Attenborough) द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म को   अगर आपने नहीं देखी है तो जरूर देखिये । 188 मिनट की यह फ़िल्म आपको शुरु से अंत तक बाँधे रखने में कामयाब रहेगी ।  गाँधी जी के किरदार को बहुत ही उम्दा तरिके निभाया है बेन किंगस्ले (Ben Kingsley) ने । गुजराती पिता और इंग्लिश माता की संतान बेन एक इंग्लिश अभिनेता है ।

फ़िल्म की शुरुआत इस कथन से होती है-

किसी व्यक्ति का जीवन एक वर्णन में नहीं समेटा जा सकता है । ऐसा कोई तरिका नहीं है कि हर वर्ष को सही महत्व दिया जा सके और युग निर्माण में हर घटना और व्यक्ति को समुचित महत्व मिले । किया यही जा सकता है कि दस्तावेज की भावना के प्रति  निष्ठा हो और मनुष्य के हृदय तक पहुँचने का कोई  मार्ग  निकाला जाय ।   

गाँधी फ़िल्म ने आठ आस्कर पुरस्कार जीते थे । फ़िल्म की शुरुआत महत्मा गाँधी की हत्या से होती है और उसके बाद पूरी फ़िल्म अतीत की घटनाओं पर केन्द्रित हो जाती है । फ़िल्म में लगभग सारी महत्वपूर्ण घटनाओ को दिखाया गया है । नमक सत्याग्रह और चम्पारण की घटना को सुन्दरता से दिखाया गया है । वह दृश्य बहुत ही महत्वपूर्ण है जब गाँधी जी मुहम्मद अली जिन्ना से देश का प्रधानमंत्री बनने का का प्रस्ताव रखते है, जिससे विभाजन को रोका जा सके । फ़िल्म में गाँधी जी कहते है -

मेरे प्रिय जिन्ना हम एक हीं भारतमाता की संतान है, हम भाई-भाई हैं और अगर तुम्हें डर है तो मैं उसे मिटाना चाहता हूँ । मैं अपने दोस्तों से समझदारी की मांग करते हुए कहता  हूँ , मैं पंडितजी से कहता हूँ कि वे रास्ते से हट जाये  । मैं चाहता हूँ कि तुम भारत के पहले प्रधानमंत्री  बनो, पूरी  कैबिनेट खुद बनाओ और सरकार के हर विभाग का मुखिया मुसलमान को  ही बनाओ ।

 

तब पंडित नेहरु कहते है कि-

बापू, मेरी और बाकी लोगो की ओर से अगर आप यही चाहते है तो हमें यह मंज़ूर होगा , लेकिन बाहर दंगा शुरू हो चुका है क्योंकि हिंदुओ को आशंका  है कि आप ज़्यादा दे देंगे ।  और अगर आप  ने ऐसा किया तो फिर इसे कोई नहीं रोक पायेगा, कोई नहीं  ।

 

इसके बाद जिन्ना का यह कथन कि अब फैसला आपके हाथ में हैं बापू । आप आज़ाद हिन्दुस्तान और आज़ाद पाकिस्तान चाहते हैं या आप गृह युद्ध चाहते हैं ?”  सुन गाँधी हतप्रभ और मूक रह जाते है । इस दृश्य के बाद भारत और पाकिस्तान को स्वतंत्र होते हुये दिखाया जाता है । 

फ़िल्म के  अंत में महात्मा गाँधी की अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित की जाती हुयी दिखायी जाती है और पार्श्व से उनकी यह आवाज प्रतिध्वनित होती है -

जब भी मै निराश होता हूँ और ऐसा लगता है कि सबकुछ गलत है  तब मैं याद करता हूँ कि सत्य और प्रेम की हमेशा जीत हुई है । इतिहास में ऐसे शोषक और हत्यारे भी हुऐ है जो एक समय अदम्य लग रहे थे पर अंत में उनका भी पतन हुआ । इस बात को हमेशा याद रखना ।

अगर आप फ़िल्म प्रेमी है तो आपने यह फ़िल्म जरूर देखी होगी या नहीं तो फिर देखेंगे । इस फ़िल्म से संबधित आपके अपने अपने विचार हो सकते है । आपके इन विचारों का यहाँ स्वागत है । कोई भी त्रुटि (इसकी संभावना हमेशा बनी ही रहती है) हो तो जरूर बताये ताकि लेखन में सुधार किया जा सके । इसी कड़ी में एक और नयी फ़िल्म की चर्चा लेकर वापस आऊंगा । आप सभी को  नवरात्रि और ईद की हार्दिक शुभकामनायें ।