सोमवार, 14 दिसंबर 2009

किनारा

किनारे को लांघकर किनारा

लकीर पर चढ़ता गया मैं ।

लकीर बढ़ती हीं गयी

और रह गया

मैं किनारे पर हीं ।

आखिर यह किनारा

खत्म क्यों नहीं होता ?

गुरुवार, 10 दिसंबर 2009

यादों का पहाड़

 

DSC00955

पहाड़ से नीचे उतरते हुऐ

दूर तक दिखते

छोटे-छोटे घर

जहाँ कैद है अभी भी

कुछ भूली-बिसरी यादें ।

दूर तक फैला हुआ

कुहासे में लिपटा

गुमशुदा शहर

जहाँ से बच निकला था मैं कभी ।

घुमावदार सड़कों पर

फिसलती बसDSC03225

और इन सड़को से भी ज्यादा

टेढ़ी-मेढ़ी यह जिन्दगी ।

जिन्दगी की दीवार पर

कील की तरह

टंगी कुछ यादें ।

सदियां बीत जाये

भूलने में

कुछ ऐसी यादें ।DSC02881

और तुम्हारे काँधे की गर्म खुशबू

भुला नहीं पाया मैं आजतक ।

अब पहाड़ों पर

नहीं जाता मैं ।

रविवार, 6 दिसंबर 2009

निर्माण

 

मैं कह देता हूँनिर्माण

अपनी बात ।

जब भी मन करता है

कह देता हूँ ।

 

मैं नहीं जानता कि

तुम तक

पहुँच भी पाती है

मेरी आवाज या नहीं  ।

फिर भी

चुप नहीं रह पाता मैं ।

 

मुझे पता है कि

मेरी आवाज बहुत धीमी है ।

मुझे पता है कि

जब भी बोलता हूँ

शब्द लड़खड़ा जाते है मेरे ।

 

पर क्या

इसलिये मैं चुप हो जाऊँ

कि मैं दहाड़ नहीं सकता ।

मैं चढ़ नहीं सकता पहाड़ों पर

तो क्या ?

 

मैं बहता रहूँगा नदियों में

कल-कल की ध्वनि बनकर

जो उतरकर आती है

इन्हीं पहाड़ों से ।

 

मेरे विचारों पर

खामोशी की परत

जरूर चढ़ी है

पर मैं इन्हें बदल दूँगा

वक्त की ऊर्जा में ।

 

जब भी मैं चुप होता हूँ

बहुत करीब हो जाता हूँ

तुमसे !!!

आओ निर्माण करें ।

शुक्रवार, 4 दिसंबर 2009

तुम्हारी प्रतीक्षा में

 

मैं नहीं कहताfallen flower

कि तुम्हारे लिये

ले आऊँगा तोड़कर

चाँद तारे ।

मैं नहीं कहता

कि तुम्हारे लिये

बना दूँगा पहाड़ को धूल

और

झुका दूँगा आसमान को

जमीन पर ।

मैं तो बस ला पाऊँगा

तुम्हारे लिये

ओस में लिपटे

धूल से सने

डाली से गिरे

कुछ फूल

जिनमें अभी भी बांकी है सुगंध ।

बुधवार, 2 दिसंबर 2009

न जाने क्यों

तुम्हारी गीली खुशबूDSC01495

भरती गयी

अन्दर तक

मेरे फेफड़ों में ।

विसरित होती गयी

धमनियों में ।

न जाने क्यों

बहुत हीं तकलीफ़ होती है

आजकल

सांस लेने में ।

आदमी इतनी आसानी से

मरता भी क्यों नहीं ।

शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

प्रेत

विक्षिप्त सा जीता हूँDSC01467

एक ठण्डी सी जिन्दगी

और मर जाता हूँ चुपचाप ।

होता है इतना

सघन अँधेरा

कि भटकती रहती है

मेरी आत्मा

तुम्हारी तलाश में

शुरू से अंत तक ।

मंगलवार, 24 नवंबर 2009

आधुनिकता बनाम प्रकृति

आज एक पुरानी कविता प्रस्तुत कर रह हूँ । इस अनगढ़ सी कविता की रचना उस समय की थी जब मैं दसवीं की कक्षा में था ।

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हाय विधाता !!!!!

यह क्या ?

अपनों-अपनों के बीच रण,

दुर्भाग्य हीं है यह मनुष्य का,

उसने हीं तोड़े प्रकृति के सारे नियम ।

 

अपने स्वार्थ के लिये,

रण करता है वह बार-बार ।

क्या होगा इस सृष्टि का,

होता है आज भाई-भाई के बीच वार ।

 

अपने स्वार्थ के लिये,search

खो देता है वह नीति न्याय,

करता है रण वह दिन-रात,

जब तक न बुझे उसकी प्यास ।

 

हो जाता है वह,

अपनों के रक्त का प्यासा ।

पर क्षुधा शांत नहीं होती उसकी,

इतने से-

वह महाप्रलय को लाता है,

वह महाकाल बन जाता है  ।

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माता-पिता, भाई बन्धु ,

सभी को खा जाता है ।

अपनी भूख मिटाने के लिये,

वह क्या नहीं कर जाता है ।

मर जाता है, मार देता है,

मरकर भी शांत न होता है ।

करके जाता है वह,

विनाश के साधन को तैयार ।

जो पल भर में, मचा देता है,

सृष्टि में हाहाकार ।2005-04-10-1920x1200

 

बम के एक धमाके से,

लाखों की जान चली जाती है ।

कौवें गिद्ध झपट पड़ते है,

लाखों सड़े-गले लाशों पर ।

 

मानव के इस क्रूर कर्म से,

प्रकृति घबरा जाती है,

अपना संतुलन खो जाती है ।three-mile-island

नहीं क्षमा करती वह मानव को,

विकराल रूप धारण कर,

अट्टाहस करके आती है,

वह महाप्रलय को लाती है ।

और फिर अब-

लाखों की जान चली जाती है ।

प्रकृति से जब-जब खिलवाड़ करता मानव,

तब-तब वह घोर बबंडर लाती है ।

 

आज मानव प्रकृति को देता है नकार,

विनाश के साधन को करता है तैयार,

जो पल भर में मचाता है,

पृथ्वी पर क्रूर हाहाकार ।

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क्यों प्रकृति के प्रति इतना विकर्षण ?

क्यों आधुनिकरण के प्रति इतना लगाव ?

 

मानव –मानव में प्रेम सदा,

करता है मानवता का विकास ।

दुर्भाग्य नहीं सौभाग्य है यह,

जब मानव करता अपना चरम विकास ।

पर रहे ध्यान सदा इसका,

इस विकास के नशे में,

हो न प्रकृति का नाश ।2005-05-13-1920x1200

वरन होगा अगर प्रकृति का नाश,

तो एक न एक दिन -

अवश्य हो जायेगा मानव सभ्यता का सर्वनाश ।।

 

(7 सितम्बर 1999)

शुक्रवार, 20 नवंबर 2009

एक प्याली चाय

चाय,

एक प्याली चाय

सिर्फ चाय नहीं

यह देती है जीवन

उस मरे हुए आदमी को

जो बच निकलता है

सुबह की खूबसूरत मौत से ।

और फिर तैयार होता है

एक आनेवाली मौत के लिये ।

अगर आप कहेंगे कि

चाय पीना, एक नशा है

तो मंजूर है हमें यह नशा ।

एक प्याली चाय

आप खरीद सकते है

दो या तीन रुपये में ।

मिल जायेगी

एक चाय की दूकान

आपको किसी भी बाजार में

बस स्टाप पर

या किसी चौक पर ।

या फिर

अगर आप जानते है

चाय बनाना

तो यह आपकी महानता है ।

यहाँ ज्यादातर लोगो को

नसीब हो जाती है चाय ।

कुछ लोग सुबह के नास्ते में

निगल जाते है

रात की बची हुई सूखी रोटियां

चाय के साथ ।

कुछ लोगों को

‘दानेदार’ या ‘लीफ़-टी’ पसंद है ।

कुछ ‘डस्ट’ से ही चला लेते है

अपना काम ।

कुछ लोग पीते है चाय

स्वाद के लिये

और कुछ  

महज टालने के लिये थोड़ी देर तक भूख ।

आजकल चाय भी बहुत

महंगी हो गयी है ।

बुधवार, 18 नवंबर 2009

आम की बातें

 

आज कुछ बातें आम की हो जाये । गाँव में अब आम के ज्यादातर पौधे हर साल नहीं फलते है । इसका कारण पर्यावरण प्रदूषण है या फिर जलवायु परिवर्तन ? या यह एक प्राकृतिक प्रक्रिया है ? इस बार जब मई-जून में गाँव गया था तो कुछ आम के पेड़ फले हुए थे अतः अगली गर्मियों में उनके पुनः फलने की बहुत कम हीं सम्भावना है ।

 

मैनें देखा है गांव में आम का फलना किसी उत्सव से कम नहीं होता । आम के पेड़ में मंजर आने से लेकर फल टूटने तक । पेड़ की देखभाल, आम के महीने में रात भर जागकर रखवाली, गिरे हुए आमों को इकट्ठा करना सबकुछ एक जुनून की तरह होता है । ज्यादातर आम के पेड़ो की रखवाली बँटाई व्यवस्था (ओगरवाही) के आधार पर होती है । पेड़ की रखवाली पेड़ का मालिक खुद नहीं करता है । पेड़ की रखवाली किसी योग्य व्यक्ति को दे दी जाती है । क्षेत्रिय भाषा मैथिली में उसे ओगरवाह / रखबार कहते है ।  इसके एवज में वह एक चौथाई आम लेता है । बगीचे में बाँस और फूस से बना छोटा सा मचान डाल दिया जाता है । आने वाले दो-तीन महिने के लिये यही झोपड़ी घर-आंगन-दालान बन जाती है । 

 

 

जब भी आम के महिने में आँधी या तूफान आता है लोग-बाग निकल पड़ते है बगीचे में आम बीछने । यह एक बेहतरीन अनुभव है । रात के घने अँधेरे में आप आम के पीछे भागते रहते है । पूरा शरीर भींगा हुआ और कीचड़ से लतपथ रहता है । कई बार तूफान में पेड़ की डाल टूटकर गिर परती है । खतरनाक है यह पर फिर भी इसका अपना अलग रोमांच है । इकट्ठा किये गये आम का ज्यादातर उपयोग अचार बनाने में होता है क्योंकि ये टूटे-फूटे रहते है ।

अभी भी हमारे यहाँ मिथिलांचल में सबसे ज्यादा आम के ही बाग लगाये जाते है । आम की सैकड़ो प्राजातियां मिल जायेगीं आपको । दशहरी, केरवी, फ़जली, कलकत्तिया, बंबईया, मालदह, लंगड़ा बनारसी, सिंदूरी, नकूबी, लाटकम्पू, जर्दालू, रामभोग, लतमुआ, कृष्णभोग, सुपरिया, कर्पुरवा, नैजरा और न जाने कितने ही स्थानीय नाम वाले आम है ।                                                                                                    

  

आजकल कीटनाशकों का बहुत ज्यादा प्रयोग हो रहा है ।  इसके बहुत हीं अधिक दुष्प्रभाव होते है । पर अन्य विकल्प भी तो नहीं । जब बहुत हीं तेज धूप और गर्मी और पड़ने लगती है तो आम के मंजर सूखकर झरने लगते है । इससे बचने के लिये मंजरो पर पानी का छिड़काव किया जाता है ।  कृषि विश्वविद्यालयों में इन सब चीजों पर रिसर्च तो हो रहा है पर सही लाभ किसानों तक नहीं पहुंच पाता है । अभी भी इस क्षेत्र में आम का बहुत कम व्यवसायिकरण हुआ है । शेष बातें फिर कभी ।

सोमवार, 16 नवंबर 2009

केरल में बरसात, आम और नारियल के पेड़

 

यहाँ कोचिन (केरल) में हमारे मकान मालिक ने घर के चारो तरफ विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधे लगा रखे है । ज्यादातर पेड़-पौधे नारियल, सुपाड़ी, आम, कठहल, अमरूद, मेंहदी, तुलसी, अमलतास और केले के है । काली मिर्च की लतरे सुपारी और अन्य पेड़ों पर चढ़ी रहती है । इन पेड़-पौधो के कारण घर के आस-पास का वातावरण बहुत हीं हरा-भरा और सदाबहार है । एक महत्वपूर्ण चीज यहाँ देखने को मिलती है कि अगर घर के आस-पास अगर थोड़ी सी भी जगह खाली रहे तो लोग पेड़ लगाने से नहीं चूकते है ।

 

यहाँ आपको सबसे ज्यादा नारियल के पेड़ देखने को मिल जायेगे । बहुत ही ज्यादा नारियल की पैदावार होती है यहाँ, फिर भी नारियल सस्ता नहीं । नारियल का एक डाभ 15-20  रूपये से कम में नहीं मिल पाता है । और ऐसा इस लिये कि यहाँ नारियल की खपत बहुत ही अधिक है । भोजन बनाने में नारियल के तेल का ही प्रयोग होता है और अधिकतर व्यंजनो में भी

 

 

यहाँ हमारे मकान के अगल-बगल 5-6 आम के पेड़ लगे हुए हैं । मकान के ठीक सामने जो पेड़ है वह आजकल ताँबे की तरह चमकदार नयी पत्तियों से भर गया है । कई दिन हुए पूरा पेड़ में नये कलश निकल आये है । आम के पेड़ो में मंजर आ चुके है और कुछ में तो छोटे-छोटे टिकोले भी । बहुत ही आश्चर्य होता है यह सब देखकर । अभी तो नवम्बर ही बीत रहा है और यहाँ आम फलने शुरू हो गये !!! अपने यहाँ तो फरवरी-मार्च से आम के पौधे मंजर लेने शुरू करते है ।

 

यह विविधता दोनों जगह जगह की जलवायु मे अंतर के कारण है । उत्तर भारत में अभी सर्दी की शुरूआत हो रही होगी और यहाँ सर्दी पड़ती ही नहीं है । वर्ष के सभी महिने समशीतोष्ण रहते है । पिछले कई दिनों से यहाँ अच्छी वर्षा हो रही है । यह लौटती हुई मानसून (उत्तर-पूर्व मानसून) की वर्षा है । इस प्रत्यावर्तित मानसून के कारण केरल और तामिलनाडू में काफ़ी वर्षा होती है । केरल की हरियाली का कारण यहाँ की वर्षा है । देश के बहुत कम हिस्से में इतनी अधिक वर्षा होती होगी जितनी यहाँ होती है । कहते है यहाँ बादल बूँद-बूँद नहीं बरसता, बस उडेल देता है । और यह सच भी है ।

बुधवार, 11 नवंबर 2009

चुप हो जाओ

 

 

 

 

 

 

 

 

 

कि एक हवा चली है

चुप हो जाओ

बह जाओ  ।

कि एक फूल खिला है

चुप हो जाओ

खिल जाओ ।

कि एक दीप जला है

चुप हो जाओ

जल जाओ ।

कि एक बादल निकला है

चुप हो जाओ

बरस जाओ ।

कि एक पत्ता टूटा है

चुप हो जाओ

खो जाओ ।

कि एक सूरज निकला है

चुप हो जाओ

भर जाओ ।

कि एक प्रेम मिला है

चुप हो जाओ

झुक जाओ ।

मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

कि बन जाये आत्मा

 

बहना नदी की तरह

निर्विरोध और तीव्र वेग लिये

कि बन जाये आत्मा

एक नदी चंचल

और मिटा दे अपना अस्तित्व

मिलकर अपने इष्ट से ।

खिलना पुष्प की तरह

महक और सौंदर्य लिये

कि बन जाये आत्मा

एक पुष्प गुच्छ

और कर दे अपना जीवन समर्पित

अपने प्रिय के आंचल में ।

चलना पवन की तरह

वेग और उन्मांद लिये

कि बन जाये आत्मा

एक हवा का झोंखा

और टकराकर किसी ऊँचे पर्वत से

झर जाये झर-झर निर्झर ।

होना विशाल महासागर की तरह

लहरें और कोलाहल लिये

कि बन जाये आत्मा

एक सागर अथाह

और लाख हाहाकार लिये भी

अंदर से हो शांत और गहरा ।

तपना सूरज की तरह

लावा और उष्मा लिये

कि बन जाये आत्मा

एक सूरज चमकदार

और स्वयं जलते हुये भी अनवरत

भर दे जीवन कण कण में ।

(भैया रावेंद्रकुमार रवि द्वारा दिये गये सुझाव के अनुसार उपरोक्त कविता को सम्पादित कर पुनः प्रकाशित किया  गया है )

मंगलवार, 20 अक्तूबर 2009

ख़्वाब, परिंदा और कहानी

 

(केरल में पालघाट दर्रा जो केरल को तमिलनाड़ू तथा कर्नाटक से जोडता हैं और सुन्दर पहाड़ी का दृश्य)

 

 

 

 

 

 

आधे अधूरे ख़्वाब

और यह सिमटता जहान

अपने हीं अन्दर

बार बार

खुद को

ढूँढता रहा हूँ मैं ।

 

**********************************

 

वक्त का परिंदा

और यह छोटी सी जिंदगी

न जाने कौन सी अँधेरी गली में

बार बार

खुद को

खोता रहा हूँ मैं ।

 

**********************************

 

अधूरी यह कहानी

और अनकहे शब्द कितने

अपनी ही राह का काँटा

बार बार

खुद को 

बनाता रहा हूँ मैं ।

शनिवार, 17 अक्तूबर 2009

दीपावली

मैं तम से भरा अज्ञानी मां

एक दीप जला दो जीवन में मां

मन के कपाट मेरे बन्द है मां

मेरा मार्ग प्रकाशित कर दो मां ।

 

एक ज्योति जला दो जीवन में

फैला दो उजाला जीवन में

है सघन अंधेरा जीवन में

कुछ रंग भर दो इस जीवन में ।

खिले फूल कमल सा सबका जीवन

महकें फूलों सा यह मन उपवन

फैले दूर दूर तक ज्ञान की हरियाली 

भर दे प्रकाश जीवन में सबके दीपावली ।

 

 

(आप सभी को दीपावली पर्व की अनेको अनेक शुभकामनायें  !!!)

गुरुवार, 15 अक्तूबर 2009

ऐसा क्यों होता है ?

 

कम नहीं था

वह प्रेम

जो दिया मैंने तुमको ।

माना कि

तुम्हारी कुछ मजबूरियाँ थी ।

पर

चाहती थी मैं भी

सबकुछ बांटना

तुम्हारा दुःख- सुख

और तुम्हारा द्वन्द ।

मानते हो  न तुम

कि

अधिकार था यह मेरा ।

पर तुम्हारा अहम

और तुम्हारी मजबूरी ।

तुम्हारी मजबूरियों से लदे

कंधे पर अपना सिर

रख न पायी मैं

रो न पायी मैं ।

मेरे गर्म आंसू

पिघला न पाये

तुम्हारे जमें हुए खून को ।

शायद यह तुम्हारी महानता थी

या कुछ और ।

अभिशप्त है मेरा जीवन

तुम्हारे इस झूठ को

जीने के लिये ।

माना कि

तुम्हारी परिधि से टूटकर

मै पूर्ण न हो पायी

पर यह सोचो

कितने अकेले

कितने विकल हो

तुम भी

आज तक ।

रह गयी अधूरी मैं

और अधूरे तुम भी

आज तक ।

रविवार, 11 अक्तूबर 2009

मेरे होने का मतलब

 

जिन्दगी की प्रयोगशाला में  बहुत सारे प्रयोग चलते रहते हैं । कुछ मेरे अंदर  चल रहे है । कुछ आपके अंदर भी चल रहे होंगे । देखते है ये प्रयोग सफल होते है की नहीं । वैसे  इन प्रयोगों के बिना जीवन का बहुत अर्थ भी नहीं । सफलता और असफलता तो आनी जानी रहती है । आत्मा तो बस चलने में है, निर्विकार, निर्भीक और निर्विरोध !!!!

(गाजर के फूल)

रात सिमटती गयी,

दिन निकलता गया,

रंग भरते गये,

मैं निखरता गया ।

संग तेरा जो पाया,

तो लौ जल गयी,

रौशनी मेरे अंदर,

भरती ही गयी ।

 

तुम हीं तुम हो यहाँ 

मैं कहीं भी नहीं,

मेरे होने का मतलब,

तुम ही तो नहीं ।

शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009

तूफान के बाद !!!

 

 

 

 

 

 

 

 

देखा तो बरसात हुई थी,

बाहर सबकुछ भींग चुका था,

अन्दर अभी भी सूखा था,

आँखे अभी भी गीली हैं ।

बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

फूल का कहना सुनो

 

 

 

 

(चित्र- भैया रावेंद्रकुमार रवि)

 

 

 

 

 

फूल का कहना सुनो

यह कहता कुछ नहीं

पर

तुम सुन सकते हो

सबकुछ ।

उल्लास, प्रेम, करुणा, दर्द

सबकुछ ।

तुम सुन सकते हो

जीवन के हर क्षण

रंगों का कण-कण

तुम सुन सकते हो

सबकुछ ।

तुम देख सकते हो

इसमें जीवन का

असीम सौंदर्य ।

फूल

बगीचे में खिला हो

या फिर

खिला हो

किसी ऊँचे दरख्त पर ।

या फूल हो जंगली

फूल तो फूल है ।

यह खिल जाता है कहीं भी

चाहे

कांटे, कीचड़ और पहाड़ हो

या फिर हो शुष्क रेत

यह खिल जाता है ।

जीवन की मुस्कान लिये

इसलिये

फूल का कहना सुनो ।

सुनो

चुपचाप सुनो………

 

 

(बहुत ही हर्ष के साथ सूचित करना चाहता हूँ कि मेरे ब्लाग ‘गुलमोहर का  फूल’ की समीक्षा 4 अक्टूबर को iNext हिन्दी समाचार पत्र में ‘गुलमोहर की छांव’ नामक शीर्षक से प्रकाशित हुई थी । समीक्षा करने के लिये मैं आदरणीय श्रीमती प्रतिभा कटियार जी का हृदय से आभारी हूँ । मैं सभी सम्माननीय ब्लागरों एवं प्रिय मित्रों को हृदय से धन्यवाद प्रस्तुत करना चाहता हूँ जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय देकर मेरा उचित मार्गदर्शन किया और मुझे अपार मानसिक शक्ति प्रदान की । मैं श्रीमान बी एस पाबला जी का आभारी हूँ जिन्होनें इस समाचार को अपने ब्लाग प्रिंट मीडिया पर ब्लाग चर्चा पर प्रकाशित किया । अगर मैं आप सभी शुभचिंतको का नाम लिखकर आभार प्रकट करूं तो सूची बहुत लम्बी हो जायेगी अतः इसके लिये मुझे क्षमा करें । एक बार पुनः आप सभी को कोटि-कोटि धन्यवाद)

शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

प्रेम का यह गीत, केरल में बरसात और गाय

अभी अभी जैसे हीं घर के बरामदे की बत्ती जलाई कि एक गाय उठकर खड़ी हो गयी और उसके पीछे उसका बच्चा भी था । अभी यहाँ केरल में तीन दिनों से झमाझम बरसात हो रही है । यहां बैठा मैं पोस्ट लिख रहा हूँ और बाहर वर्षा में  नारियल, केले, कटहल और काली मिर्च के पौधे बेतहासा झूम रहे है । बरामदे की बत्ती जलाते ही गाय डर कर खड़ी हो गयी । बरसात से बचने के लिये वह यहाँ आकर बैठ गयी थी पर उसका बच्चा बाहर भींग रहा था । मोबाईल कैमरे से मैनें कुछ चित्र भी ले लिये । रसोई से एक रोटी लाकर, आधी रोटी गाय को खिलायी और और जैसे हीं दूसरी आधी रोटी बच्चे को खिलाने की कोशिश की, कि दोनों भाग खड़े हुए । अब दोनों बाहर बरसात में भींग रही होंगी । इसका पाप भी  मेरे सिर ही जायेगा । एक पाप और सही ।

आज शाम में माँ से बात हुई थी । गांव में वर्षा नहीं हो रही है । पता नहीं खेतों में खड़े धान के पौधों पर क्या बीत रही होगी । गृहस्थ मर रहा है । इन्द्र देवता की मेहेरबानी देखिये । जब भी गांव जाता हूँ मैं, वर्षों से एक नहर बनते देखता हूँ । जब से होश संभाला है, करीब 15 वर्ष से देख रहा हूँ, यह नहर बन हीं रही है । पता नहीं इस नहर का पानी कब खेतो में पहुँचेग़ा । पर किसान है कि हार नहीं मानता । भूखे पेट भी वह जी हीं रहा है । उसके बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं । पता नहीं कैसा समाज बन रहा है या बना रहे है हम ।

प्रेम का यह गीत

फूल से लदे धान के पौधे

कंठ तक पानी से भरे खेत ।

प्रेम का यह गीत

बस तुम्हारे लिये है

तुम्हारे लिये………

ओ मेरे देश के

हजारों हजार

श्रमजीवी, कर्मयोद्धा, भूमिपुत्र

बस तुम्हारे लिये ।

नहीं गा सकता

यह गीत हर कोई ।

यह गीत उनका है

जो हर दिन मरते हैं

और

फिनिक्स पक्षी की तरह

जी उठते हैं

अपनी ही राख से ।

सोमवार, 28 सितंबर 2009

असमंजस

 

 

तुम हँसती हो

और

हजार – हजार फूल खिल जाते हैं

मेरे जीवन में ।

तुम रोती हो

और

फैल जाता है  अँधेरा

दूर -  दूर तक

मेरे जीवन में ।

और

जब तुम चुप रहती हो

निर्वात से भर जाती है

मेरी आत्मा ।

न जाने तुम

क्या चाहती हो ?

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

टोपीयां

 

 

 

बहुत हीं शांत, सौम्य और सज्जन

पुरुष थे वे लोग ।

और

पहने हुए थे

सच से भी ज्यादा

साफ़ और स्वच्छ कपड़े ।

लोगों को पहनाया करते थे

अपनी सफ़ेद टोपीयां ।

लोग आज भी

टोपीयां पहने हुए

पाये जाते है ।

 

 

 

                           (तस्वीर http://ngodin.livejournal.com से ली गयी है)

बुधवार, 23 सितंबर 2009

बंद पानी की बोतल

 

                             (गांव में ली गयी तस्वीर)  

 

उस साल

जब सूखा पड़ा था

मेरे गांव में ।

कुछ लोग आये थे

साफ आसमान से ।

बंद पानी की बोतल

बांट रहे थे वे ।

कह रहे थे

स्वच्छ, साफ और कीटाणुरहित

होता है यह जल ।

कीटाणु की जगह

लोग मर रहे थे 

भूख से  ।

बहुत ज़्यादा बारिश हुयी थी

उस साल

सूखे के बाद ।

बंद पानी की बोतल का

एक कारखाना और खुल गया था

मेरे गांव में ।

रविवार, 20 सितंबर 2009

विश्व सिनेमा – गाँधी(1982)

 पिछले तीन वर्षो में करीब 350 फ़िल्में देख चुका हूँ   । इनमें ज्यादातर अंग्रेजी और थोड़ी बहुत हिंन्दी और अन्य विदेशी भाषाओं में बनी फ़िल्में  हैं । हिन्दी में बहुत ही कम, गिनी चुनी फ़िल्में बन रही है आजकल जो देखने लायक है । बहुत दिनों से सोच रह था कि क्यों न कुछ फ़िल्मो की चर्चा की जाय जो मुझे अच्छी लगी । यह लेखन पूर्णतः मौलिक तो नहीं हो सकता है पर प्रयास करने में क्या बुराई है ।  बहुत सी  जानकारी इन्टरनेट से प्राप्त की जायेगी । अगर यह लेखन सार्थक हुआ तो आगे भी लिखूँगा । आईये आज करते है फ़िल्म गाँधी (Gandhi) की चर्चा ।

 

गाँधी (Gandhi)

 

महात्मा गाँधी हमारे देश के राष्ट्रपिता है । देश की स्वतंत्रता में उनके योगदान की चर्चा करने की आवश्यकता नहीं, हम सभी जानते है । मैं कुछ ऐसे लोगों से भी मिला हूँ जो इस बात को सिरे से नकारने की कोशिश करते है । देश के विभाजन का कारण वे महात्मा गाँधी को मानते है । यह भी सुना है कि अगर महत्मा गाँधी चाहते तो स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह को फँसी की सजा नहीं होती ।  जो भी हो सभी को अपने विचारों को  प्रकट करने की स्वंतन्त्रता है ।

सिनेमा को समाज का आईना भी कहते है । और आईना वही सच्चा है जो हमें अपना वास्तविक चेहरा दिखाये । गाँधी जी के जीवन पर बनी गांधी (GANDHI) एक उम्दा बायोग्राफिकल फ़िल्म है । 1982 में बनी रिचार्ड एटेन्बोरो (Richard Attenborough) द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म को   अगर आपने नहीं देखी है तो जरूर देखिये । 188 मिनट की यह फ़िल्म आपको शुरु से अंत तक बाँधे रखने में कामयाब रहेगी ।  गाँधी जी के किरदार को बहुत ही उम्दा तरिके निभाया है बेन किंगस्ले (Ben Kingsley) ने । गुजराती पिता और इंग्लिश माता की संतान बेन एक इंग्लिश अभिनेता है ।

फ़िल्म की शुरुआत इस कथन से होती है-

किसी व्यक्ति का जीवन एक वर्णन में नहीं समेटा जा सकता है । ऐसा कोई तरिका नहीं है कि हर वर्ष को सही महत्व दिया जा सके और युग निर्माण में हर घटना और व्यक्ति को समुचित महत्व मिले । किया यही जा सकता है कि दस्तावेज की भावना के प्रति  निष्ठा हो और मनुष्य के हृदय तक पहुँचने का कोई  मार्ग  निकाला जाय ।   

गाँधी फ़िल्म ने आठ आस्कर पुरस्कार जीते थे । फ़िल्म की शुरुआत महत्मा गाँधी की हत्या से होती है और उसके बाद पूरी फ़िल्म अतीत की घटनाओं पर केन्द्रित हो जाती है । फ़िल्म में लगभग सारी महत्वपूर्ण घटनाओ को दिखाया गया है । नमक सत्याग्रह और चम्पारण की घटना को सुन्दरता से दिखाया गया है । वह दृश्य बहुत ही महत्वपूर्ण है जब गाँधी जी मुहम्मद अली जिन्ना से देश का प्रधानमंत्री बनने का का प्रस्ताव रखते है, जिससे विभाजन को रोका जा सके । फ़िल्म में गाँधी जी कहते है -

मेरे प्रिय जिन्ना हम एक हीं भारतमाता की संतान है, हम भाई-भाई हैं और अगर तुम्हें डर है तो मैं उसे मिटाना चाहता हूँ । मैं अपने दोस्तों से समझदारी की मांग करते हुए कहता  हूँ , मैं पंडितजी से कहता हूँ कि वे रास्ते से हट जाये  । मैं चाहता हूँ कि तुम भारत के पहले प्रधानमंत्री  बनो, पूरी  कैबिनेट खुद बनाओ और सरकार के हर विभाग का मुखिया मुसलमान को  ही बनाओ ।

 

तब पंडित नेहरु कहते है कि-

बापू, मेरी और बाकी लोगो की ओर से अगर आप यही चाहते है तो हमें यह मंज़ूर होगा , लेकिन बाहर दंगा शुरू हो चुका है क्योंकि हिंदुओ को आशंका  है कि आप ज़्यादा दे देंगे ।  और अगर आप  ने ऐसा किया तो फिर इसे कोई नहीं रोक पायेगा, कोई नहीं  ।

 

इसके बाद जिन्ना का यह कथन कि अब फैसला आपके हाथ में हैं बापू । आप आज़ाद हिन्दुस्तान और आज़ाद पाकिस्तान चाहते हैं या आप गृह युद्ध चाहते हैं ?”  सुन गाँधी हतप्रभ और मूक रह जाते है । इस दृश्य के बाद भारत और पाकिस्तान को स्वतंत्र होते हुये दिखाया जाता है । 

फ़िल्म के  अंत में महात्मा गाँधी की अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित की जाती हुयी दिखायी जाती है और पार्श्व से उनकी यह आवाज प्रतिध्वनित होती है -

जब भी मै निराश होता हूँ और ऐसा लगता है कि सबकुछ गलत है  तब मैं याद करता हूँ कि सत्य और प्रेम की हमेशा जीत हुई है । इतिहास में ऐसे शोषक और हत्यारे भी हुऐ है जो एक समय अदम्य लग रहे थे पर अंत में उनका भी पतन हुआ । इस बात को हमेशा याद रखना ।

अगर आप फ़िल्म प्रेमी है तो आपने यह फ़िल्म जरूर देखी होगी या नहीं तो फिर देखेंगे । इस फ़िल्म से संबधित आपके अपने अपने विचार हो सकते है । आपके इन विचारों का यहाँ स्वागत है । कोई भी त्रुटि (इसकी संभावना हमेशा बनी ही रहती है) हो तो जरूर बताये ताकि लेखन में सुधार किया जा सके । इसी कड़ी में एक और नयी फ़िल्म की चर्चा लेकर वापस आऊंगा । आप सभी को  नवरात्रि और ईद की हार्दिक शुभकामनायें ।

 

शनिवार, 19 सितंबर 2009

दो मैथिली अगड़म-बगड़म !!!!!

               (फोर्ट कोच्चि में लिया गया फोटो)

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माछ- भात तीत भेल

दही- चिन्नी मिठ्ठ भेल

खाकऽऽ टर्रर छी     ।

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कारी मेघ

कादो थाल

झर झर बुन्नी

चुबैत चार

 

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(चिन्नी= चीनी, मिठ्ठ= मीठा, कारी= काला, बुन्नी= बरसात, तीत= तीखा, चुबैत= टपकना, चार= छप्पर)

मंगलवार, 15 सितंबर 2009

अपना हीं घर वह तो नहीं

 

गमगीन है हर आदमी

क्यों खो गया सुख चैन ।

क्यों रोकता कोई नहीं

इस जंग को तूफान को ।

क्यों बह रहा है नालियों में

खून मेरे अपनो का ।

शाख  पर जो स्वप्न थे

क्यों झड़ गया वह पर्ण है ।

क्यों हो रहा नंगा यहाँ सब

कैसी मची हुरदंग है ।

जो चले थे हम जलाने

आंगन किसी और का ।

वह दूर से उठता धुँआ

अपना हीं घर वह तो नहीं ।

क्यों सड़क है सुनसान

क्यों गलियाँ है खामोश ।

यह शहर अब

जिंदा लोगो की

कब्रगाह बन चुकी है ।

(चित्र गूगल सर्च से)

 

गुरुवार, 10 सितंबर 2009

पथभ्रष्ट

 

अपनी मुक्ति का मार्ग

ढूँढते हुऐ

यहां तक

आ पहुँचे थे

वे लोग ।

पूछ रहे थे

पता ।

कौन सा

मार्ग

बताता 

पथभ्रष्ट  मैं । 

जो मार्ग

बताया मैनें

वह ले गयी उन्हें

स्वंय तक ।

अब वे भी

मेरी तरह

पथभ्रष्ट हैं ।

शुक्रवार, 4 सितंबर 2009

केरल, ओणम का त्योहार और महाबली-२

Kathakali_of_kerala भारत में जितने भी महत्वपूर्ण त्योहार और पर्व मनाये जाते है, सभी के पीछे कोई न कोई दंतकथा या पौराणिक कथा छिपी  है I पिछली पोस्ट केरल, ओणम का त्योहार और महाबली में हमनें केरल मे मनाया जाने वाला पर्व ओणम की चर्चा की थी I ओणम त्योहार के मनाये जाने के पीछे भी  पौराणिक कथायें छिपी हुई है I  अनेक पौराणिक कथाओं में राजा महाबली की कहानी सबसे प्रचलित और महत्वपूर्ण है I

ऐसा कहा जाता है की कभी महाबली केरल के प्रातापी राजा हुआ करते थे I महाबली को मावेली और ओनथप्पन के नाम से भी जाना जाता है I राज्य की जनता उन्हें बहुत ही प्यार और सम्मान देती थी I चारो तरफ़ न्याय और सत्य का बोल बाला था I  जनता बहुत ही खुश थी I

विरोच्छन महाबली के पिता और प्रहलाद पितामह थे I असुर कुल का होते हुए भी महाबली भगवान विष्णु के प्रचन्ड भक्त थे I अपनी शक्ति और वीरता के कारण उन्हें महाबली चक्रवर्ती कहा गया I राजा महाबली के बढते हुए सम्मान और प्रताप को देखकर देवताओ में खलबली मच गयी I वे राजा महाबली के पतन का मार्ग ढूंढने लगे I सहायता के लिये वे देवमाता अदिती के पास पहुचें, ताकि भगवान विष्णु की सहायता ली जा सके I

कहा जाता है की महाबली बहुत ही दानवीर थे I जो कोई भी उनके पास कुछ मांगने आता , वे उसकी ईच्छापूर्ती जरूर करते I परिक्षा लेने के उद्देश्य से भगवान विष्णु ने बौने ब्राह्मण वामन का रूप धारण कर महाबली के पास पहुचें I वामन ने राजा महाबली से जमीन का एक छोटा स टुकड़ा मागां तो महाबली ने कहा आप अपनी ईच्छानुसार जितनी जमीन चाहे ले लें I वामन ने कहा कि उन्हें बस तीन कदम जमीन चाहिये I पहले तो महाबली बहुत ही चकित हुए पर तुरन्त अपनी सहमती दे दी I

असुर गुरू शुक्राचार्य ने तुरन्त महसूस कर लिया की यह कोई साधारण पुरुष नहीं है और महाबली को चेतावनी दी I पर दानशील राजा ने कहा कि एक सम्राट के लिये अपने वचन से पीछे हटना पाप के समान है I महाबली भगवान विष्णु को एक बौनें ब्राह्मण के रुप में होने की कल्पना नहीं कर पाये I

जैसे ही महाबली ने भूमि देने का वचन दिया वामन का शरीर बढ़ने लगा और पूरे ब्रह्मान्ड के आकार का हो गया I वामन ने एक कदम में पूरी धरती को और दूसरे कदम में पूरे आकाश को नाप लिया I तब वामन ने पूछा की वह अपना तीसरा कदम कहां रखे I अब जाकर महाबली को विश्वास हुआ की यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं है I विनम्रता से वामन के पैरो पर अपना सर रखते हुए महाबली ने कहा की वह अपना तीसरा कदम उसके सर पर रख दे ताकि उसके वचन का मान रह जाये I वामन के पैर रखते ही महाबली पाताल लोक चले गये I महाबली ने वामन से अपनी सही पहचान प्रकट करने के लिये अनुरोध किया I तब भगवान विष्णु अपने वास्तविक भव्य रूप में आकर महाबली से वरदान मांगने के लिये कहा I

अपनी प्रजा के प्रति आगाध प्रेम के कारण महाबली ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि उसे वर्ष में एक बार अपने राज्य केरल आने की अनुमती दी जाय I भगवान विष्णु बहुत ही प्रसन्न हुए और कहा की सबकुछ खोते हुए भी महाबली को विष्णु और उनके भक्तों द्वारा हमेशा प्रेम किया जायेगा I

यही ओणम का दिन है जब महाबली वर्ष में एक बार केरल भ्रमण करने के लिये आते है  और केरल की जनता उनका भरपूर स्वागत करती है I

 

(वैसे तो यह मात्र एक पौराणिक कथा है और इसकी सत्यता की परिक्षा नहीं ली जा सकती I पर सबसे बड़ी चीज होती है विश्वास I और जब हम विश्वास (Believe) करने लगते है तब उर्जा का अथाह श्रोत खुल जाता है I मनुष्य का जीवन भी तो इसी विश्वास पर टिका हुआ है)

                                                              (चित्र गूगल सर्च से साभार)

शनिवार, 29 अगस्त 2009

केरल, ओणम का त्योहार और महाबली

king-mahabali-onam-two केरल आकर पढ़ने का सबसे बड़ा फायदा मुझे यह हुआ कि यहाँ के बारे में जानने का भरपूर मौका मिला I हाँ ‌ यह अलग बात है कि अभी तक यहाँ की भाषा मलयालम नहीं सीख पाया, पर प्रयास जारी है I सांस्कृतिक एवं प्राकृतिक दृष्टिकोण से केरल बहुत ही धनी राज्य है I शायद इसलिये केरल को ईश्वर का अपना देश (God’s own country) कहते है I यहां के सभी त्योहार एवं उत्सव अपने विविधतापूर्ण रंगों के लिये विख्यात है I ओणम केरल का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण पर्व है I ओणम का त्योहार अपने वैभवकारी अतीत, धर्म एवं आस्था, तथा अराधना की शक्ति में विश्वास को दर्शाता है I हरेक जाति एवं धर्म के लोग इस  शस्योत्सव को अति श्रद्धा एवं उल्लास से मनाते हैI दंत कथाओ के अनुसार यह त्योहार राजा महाबली  के स्वागत में मनाया जाता है जो की  इसी ओणम के महिने में प्रत्येक वर्ष केरल की भूमि पर भ्रमण करने आते है I

 

                                                           (गजनृत्य)

                                                        (पुलिकाली- बाघ नृत्य)

                           (संर्प नौका प्रतियोगिता)

ओणम का त्योहार मलयालम कैलेंडर (कोलवर्षम) के प्रथम महिने चिंगम में मनाया जाता है I चिंगम अंग्रेजी के महिने अगस्त-सितम्बर के समतुल्य होता है I दशहरा की तरह ओणम भी दस दिनों तक मनाया जाने  वाला पर्व है I इन दस दिनों में प्रथम दिवस अथम और दशम दिवस थिरुओणम सबसे महत्वपूर्ण होता है I सांस्कृतिक रूप से इतना धनी होने के कारण ही ओणम उत्सव को वर्ष १९६१ में केरल का राज्यकीय त्योहार घोषित कर दिया गया I उत्कृष्त भोजन, मनभावन लोकगीत, गजनृत्य (हाथियों द्वारा किया गया नृत्य), उर्जापूर्ण खेल-कूद, नाव और फूल ये सब मिलकर इस त्योहार को मनमोहक रूप प्रदान करते है I अन्तरराष्ट्रिय स्तर पर ख्याति प्राप्त होने के कारण ही भारत सरकार द्वारा ओनम पर्व को पर्यटन सप्ताह घोषित किया जाता है I  इस दौरान हजारों सैलानी पर्यटन के लिये केरल आते है I 

आज से दस दिनों के लिये महाविद्यालय बन्द हो गया है I अतः कल (शुक्रवार) को हमारे कालेज में ओणम का त्योहार हर्षोउल्लास से मनाया गया I नीचे कुछ चित्र दे रहा हूँ I कुछ मित्रों ने मिलकर विडियो भी बनाया है, एडिट करने के बाद उसे भी पोस्ट करुंगा I

                     (ढोलक की थाप पर नृत्य)

                                                                                       (थिरकते कदम)

        (पोकालम)

                    (पोकालम- फूल प्रतियोगिता)

                                                            (ओणम में पहने जाने वाला पारंपरिक वस्त्र)

भारत मे कोई भी त्योहार हो और खाद्य सामाग्री यथा पकवान, मिठाई,  और स्वादिष्ट भोजन की बात न हो तो बात कुछ अटपटी सी लगती है I इस मामले में ओणम भी अन्य त्योहारो से अलग नहीं है I ओणसद्या के बिना ओणम पर्व की बात अधूरी लगती है I ओणसद्या एक पारंपरिक भोजन है I अमीर हो या गरीब सभी के लिये यह बहुत ही महत्वपूर्ण है I मलयालम में एक कहावत है- कानम विट्टम ओणम उन्ननम अर्थात एक ओणम सद्या के लिये लोग अपनी किसी भी वस्तु को बेचने के लिये तैयार हो जाते है I ओणसद्या दक्षिण भारतीय भोजन का एक उत्कृष्ट उदाहरण है I सद्या केले के पत्ते पर परोसा जाता है I कभी ओणसद्या में चौसठ तरह के पदार्थ परोसे जाते थे, पर आजकल कुल मिलाकर ग्यारह तरह की वस्तुयें हीं परोसी जाती है I             

                           (ओणसद्या)

 

पोस्ट कुछ लम्बी खिंच गयी. एक ही पोस्ट में इतनी सारी बाते समाहित करना कठिन है. जो भी बाते बची रह गयी अगली पोस्ट में.

 

(आज रात में कुछ मित्रों के साथ तिरुपती – बालाजी के लिये निकल रहा हूँ. केरल में अब कुछ ही महीनें  बचे है, तो क्यों न दक्षिण भारत के कुछ महत्वपूर्ण स्थल घूम लिये जाय)

 

                                                          (कुछ चित्र गूगल सर्च से साभार)