जिन्दगी की प्रयोगशाला में बहुत सारे प्रयोग चलते रहते हैं । कुछ मेरे अंदर चल रहे है । कुछ आपके अंदर भी चल रहे होंगे । देखते है ये प्रयोग सफल होते है की नहीं । वैसे इन प्रयोगों के बिना जीवन का बहुत अर्थ भी नहीं । सफलता और असफलता तो आनी जानी रहती है । आत्मा तो बस चलने में है, निर्विकार, निर्भीक और निर्विरोध !!!!
(गाजर के फूल)
रात सिमटती गयी,
दिन निकलता गया,
रंग भरते गये,
मैं निखरता गया ।
संग तेरा जो पाया,
तो लौ जल गयी,
रौशनी मेरे अंदर,
भरती ही गयी ।
तुम हीं तुम हो यहाँ
मैं कहीं भी नहीं,
मेरे होने का मतलब,
तुम ही तो नहीं ।