ये मन बड़ा मतवाला है,
न होश में आनेवाला है ।
कभी इस डगर, कभी उस डगर,
रमता रहता है नगर - नगर ।
गाँवो की गलियों में दौड़े,
जैसे मस्त पवन मे भ्रमरें ।
फूल - फूल पर फिरता - फिरता,
मधुरस का पान करता ।
मन का दर्द रखो न मन में,
एक दिन विष बन जायेगा ।
मन की बात निकालो मन से,
कुछ कष्ट दूर हो जायेगा ।
मन क्या सोचे, मन क्या कर ले,
मन बहका ले, मन बहला ले ।
मन चाहे तो मीत बना ले ,
छोटे - बड़ो का भेद मिटा ले ।
मन , मन को मोह ले,
मन , मन ही रो ले ।
मन तड़पा दे , मन हर्षा दे ,
मन जीवन के गीत सुना दे ।
मन के बस में न होना रे,
मन को बस में कर लेना रे ।
मन, मष्तिस्क में जलता रहता है,
तब शिव का भष्म बनता है ।
(14 नवम्बर 1999)