तुम हँसती हो
और
हजार – हजार फूल खिल जाते हैं
मेरे जीवन में ।
तुम रोती हो
और
फैल जाता है अँधेरा
दूर - दूर तक
मेरे जीवन में ।
और
जब तुम चुप रहती हो
निर्वात से भर जाती है
मेरी आत्मा ।
न जाने तुम
क्या चाहती हो ?
तुम हँसती हो
और
हजार – हजार फूल खिल जाते हैं
मेरे जीवन में ।
तुम रोती हो
और
फैल जाता है अँधेरा
दूर - दूर तक
मेरे जीवन में ।
और
जब तुम चुप रहती हो
निर्वात से भर जाती है
मेरी आत्मा ।
न जाने तुम
क्या चाहती हो ?
बहुत हीं शांत, सौम्य और सज्जन
पुरुष थे वे लोग ।
और
पहने हुए थे
सच से भी ज्यादा
साफ़ और स्वच्छ कपड़े ।
लोगों को पहनाया करते थे
अपनी सफ़ेद टोपीयां ।
लोग आज भी
टोपीयां पहने हुए
पाये जाते है ।
(तस्वीर http://ngodin.livejournal.com से ली गयी है)
(गांव में ली गयी तस्वीर)
उस साल
जब सूखा पड़ा था
मेरे गांव में ।
कुछ लोग आये थे
साफ आसमान से ।
बंद पानी की बोतल
बांट रहे थे वे ।
कह रहे थे
स्वच्छ, साफ और कीटाणुरहित
होता है यह जल ।
कीटाणु की जगह
लोग मर रहे थे
भूख से ।
बहुत ज़्यादा बारिश हुयी थी
उस साल
सूखे के बाद ।
बंद पानी की बोतल का
एक कारखाना और खुल गया था
मेरे गांव में ।
पिछले तीन वर्षो में करीब 350 फ़िल्में देख चुका हूँ । इनमें ज्यादातर अंग्रेजी और थोड़ी बहुत हिंन्दी और अन्य विदेशी भाषाओं में बनी फ़िल्में हैं । हिन्दी में बहुत ही कम, गिनी चुनी फ़िल्में बन रही है आजकल जो देखने लायक है । बहुत दिनों से सोच रह था कि क्यों न कुछ फ़िल्मो की चर्चा की जाय जो मुझे अच्छी लगी । यह लेखन पूर्णतः मौलिक तो नहीं हो सकता है पर प्रयास करने में क्या बुराई है । बहुत सी जानकारी इन्टरनेट से प्राप्त की जायेगी । अगर यह लेखन सार्थक हुआ तो आगे भी लिखूँगा । आईये आज करते है फ़िल्म गाँधी (Gandhi) की चर्चा ।
महात्मा गाँधी हमारे देश के राष्ट्रपिता है । देश की स्वतंत्रता में उनके योगदान की चर्चा करने की आवश्यकता नहीं, हम सभी जानते है । मैं कुछ ऐसे लोगों से भी मिला हूँ जो इस बात को सिरे से नकारने की कोशिश करते है । देश के विभाजन का कारण वे महात्मा गाँधी को मानते है । यह भी सुना है कि अगर महत्मा गाँधी चाहते तो स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह को फँसी की सजा नहीं होती । जो भी हो सभी को अपने विचारों को प्रकट करने की स्वंतन्त्रता है ।
सिनेमा को समाज का आईना भी कहते है । और आईना वही सच्चा है जो हमें अपना वास्तविक चेहरा दिखाये । गाँधी जी के जीवन पर बनी गांधी (GANDHI) एक उम्दा बायोग्राफिकल फ़िल्म है । 1982 में बनी रिचार्ड एटेन्बोरो (Richard Attenborough) द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म को अगर आपने नहीं देखी है तो जरूर देखिये । 188 मिनट की यह फ़िल्म आपको शुरु से अंत तक बाँधे रखने में कामयाब रहेगी । गाँधी जी के किरदार को बहुत ही उम्दा तरिके निभाया है बेन किंगस्ले (Ben Kingsley) ने । गुजराती पिता और इंग्लिश माता की संतान बेन एक इंग्लिश अभिनेता है ।
फ़िल्म की शुरुआत इस कथन से होती है-
किसी व्यक्ति का जीवन एक वर्णन में नहीं समेटा जा सकता है । ऐसा कोई तरिका नहीं है कि हर वर्ष को सही महत्व दिया जा सके और युग निर्माण में हर घटना और व्यक्ति को समुचित महत्व मिले । किया यही जा सकता है कि दस्तावेज की भावना के प्रति निष्ठा हो और मनुष्य के हृदय तक पहुँचने का कोई मार्ग निकाला जाय ।
गाँधी फ़िल्म ने आठ आस्कर पुरस्कार जीते थे । फ़िल्म की शुरुआत महत्मा गाँधी की हत्या से होती है और उसके बाद पूरी फ़िल्म अतीत की घटनाओं पर केन्द्रित हो जाती है । फ़िल्म में लगभग सारी महत्वपूर्ण घटनाओ को दिखाया गया है । नमक सत्याग्रह और चम्पारण की घटना को सुन्दरता से दिखाया गया है । वह दृश्य बहुत ही महत्वपूर्ण है जब गाँधी जी मुहम्मद अली जिन्ना से देश का प्रधानमंत्री बनने का का प्रस्ताव रखते है, जिससे विभाजन को रोका जा सके । फ़िल्म में गाँधी जी कहते है -
मेरे प्रिय जिन्ना हम एक हीं भारतमाता की संतान है, हम भाई-भाई हैं और अगर तुम्हें डर है तो मैं उसे मिटाना चाहता हूँ । मैं अपने दोस्तों से समझदारी की मांग करते हुए कहता हूँ , मैं पंडितजी से कहता हूँ कि वे रास्ते से हट जाये । मैं चाहता हूँ कि तुम भारत के पहले प्रधानमंत्री बनो, पूरी कैबिनेट खुद बनाओ और सरकार के हर विभाग का मुखिया मुसलमान को ही बनाओ ।
तब पंडित नेहरु कहते है कि-
बापू, मेरी और बाकी लोगो की ओर से अगर आप यही चाहते है तो हमें यह मंज़ूर होगा , लेकिन बाहर दंगा शुरू हो चुका है क्योंकि हिंदुओ को आशंका है कि आप ज़्यादा दे देंगे । और अगर आप ने ऐसा किया तो फिर इसे कोई नहीं रोक पायेगा, कोई नहीं ।
इसके बाद जिन्ना का यह कथन कि “अब फैसला आपके हाथ में हैं बापू । आप आज़ाद हिन्दुस्तान और आज़ाद पाकिस्तान चाहते हैं या आप गृह युद्ध चाहते हैं ?” सुन गाँधी हतप्रभ और मूक रह जाते है । इस दृश्य के बाद भारत और पाकिस्तान को स्वतंत्र होते हुये दिखाया जाता है ।
फ़िल्म के अंत में महात्मा गाँधी की अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित की जाती हुयी दिखायी जाती है और पार्श्व से उनकी यह आवाज प्रतिध्वनित होती है -
जब भी मै निराश होता हूँ और ऐसा लगता है कि सबकुछ गलत है तब मैं याद करता हूँ कि सत्य और प्रेम की हमेशा जीत हुई है । इतिहास में ऐसे शोषक और हत्यारे भी हुऐ है जो एक समय अदम्य लग रहे थे पर अंत में उनका भी पतन हुआ । इस बात को हमेशा याद रखना ।
अगर आप फ़िल्म प्रेमी है तो आपने यह फ़िल्म जरूर देखी होगी या नहीं तो फिर देखेंगे । इस फ़िल्म से संबधित आपके अपने अपने विचार हो सकते है । आपके इन विचारों का यहाँ स्वागत है । कोई भी त्रुटि (इसकी संभावना हमेशा बनी ही रहती है) हो तो जरूर बताये ताकि लेखन में सुधार किया जा सके । इसी कड़ी में एक और नयी फ़िल्म की चर्चा लेकर वापस आऊंगा । आप सभी को नवरात्रि और ईद की हार्दिक शुभकामनायें ।
(फोर्ट कोच्चि में लिया गया फोटो)
-------------------------------------------------------------------------------------
माछ- भात तीत भेल
दही- चिन्नी मिठ्ठ भेल
खाकऽऽ टर्रर छी ।
-------------------------------------------------------------------
कारी मेघ
कादो थाल
झर झर बुन्नी
चुबैत चार ।
-----------------------------------------------------------------------------------
(चिन्नी= चीनी, मिठ्ठ= मीठा, कारी= काला, बुन्नी= बरसात, तीत= तीखा, चुबैत= टपकना, चार= छप्पर)
गमगीन है हर आदमी
क्यों खो गया सुख चैन ।
क्यों रोकता कोई नहीं
इस जंग को तूफान को ।
क्यों बह रहा है नालियों में
खून मेरे अपनो का ।
शाख पर जो स्वप्न थे
क्यों झड़ गया वह पर्ण है ।
क्यों हो रहा नंगा यहाँ सब
कैसी मची हुरदंग है ।
जो चले थे हम जलाने
आंगन किसी और का ।
वह दूर से उठता धुँआ
अपना हीं घर वह तो नहीं ।
क्यों सड़क है सुनसान
क्यों गलियाँ है खामोश ।
यह शहर अब
जिंदा लोगो की
कब्रगाह बन चुकी है ।
(चित्र गूगल सर्च से)
अपनी मुक्ति का मार्ग
ढूँढते हुऐ
यहां तक
आ पहुँचे थे
वे लोग ।
पूछ रहे थे
पता ।
कौन सा
मार्ग
बताता
पथभ्रष्ट मैं ।
जो मार्ग
बताया मैनें
वह ले गयी उन्हें
स्वंय तक ।
अब वे भी
मेरी तरह
पथभ्रष्ट हैं ।
भारत में जितने भी महत्वपूर्ण त्योहार और पर्व मनाये जाते है, सभी के पीछे कोई न कोई दंतकथा या पौराणिक कथा छिपी है I पिछली पोस्ट केरल, ओणम का त्योहार और महाबली में हमनें केरल मे मनाया जाने वाला पर्व ओणम की चर्चा की थी I ओणम त्योहार के मनाये जाने के पीछे भी पौराणिक कथायें छिपी हुई है I अनेक पौराणिक कथाओं में राजा महाबली की कहानी सबसे प्रचलित और महत्वपूर्ण है I
ऐसा कहा जाता है की कभी महाबली केरल के प्रातापी राजा हुआ करते थे I महाबली को मावेली और ओनथप्पन के नाम से भी जाना जाता है I राज्य की जनता उन्हें बहुत ही प्यार और सम्मान देती थी I चारो तरफ़ न्याय और सत्य का बोल बाला था I जनता बहुत ही खुश थी I
विरोच्छन महाबली के पिता और प्रहलाद पितामह थे I असुर कुल का होते हुए भी महाबली भगवान विष्णु के प्रचन्ड भक्त थे I अपनी शक्ति और वीरता के कारण उन्हें महाबली चक्रवर्ती कहा गया I राजा महाबली के बढते हुए सम्मान और प्रताप को देखकर देवताओ में खलबली मच गयी I वे राजा महाबली के पतन का मार्ग ढूंढने लगे I सहायता के लिये वे देवमाता अदिती के पास पहुचें, ताकि भगवान विष्णु की सहायता ली जा सके I
कहा जाता है की महाबली बहुत ही दानवीर थे I जो कोई भी उनके पास कुछ मांगने आता , वे उसकी ईच्छापूर्ती जरूर करते I परिक्षा लेने के उद्देश्य से भगवान विष्णु ने बौने ब्राह्मण वामन का रूप धारण कर महाबली के पास पहुचें I वामन ने राजा महाबली से जमीन का एक छोटा स टुकड़ा मागां तो महाबली ने कहा आप अपनी ईच्छानुसार जितनी जमीन चाहे ले लें I वामन ने कहा कि उन्हें बस तीन कदम जमीन चाहिये I पहले तो महाबली बहुत ही चकित हुए पर तुरन्त अपनी सहमती दे दी I
असुर गुरू शुक्राचार्य ने तुरन्त महसूस कर लिया की यह कोई साधारण पुरुष नहीं है और महाबली को चेतावनी दी I पर दानशील राजा ने कहा कि एक सम्राट के लिये अपने वचन से पीछे हटना पाप के समान है I महाबली भगवान विष्णु को एक बौनें ब्राह्मण के रुप में होने की कल्पना नहीं कर पाये I
जैसे ही महाबली ने भूमि देने का वचन दिया वामन का शरीर बढ़ने लगा और पूरे ब्रह्मान्ड के आकार का हो गया I वामन ने एक कदम में पूरी धरती को और दूसरे कदम में पूरे आकाश को नाप लिया I तब वामन ने पूछा की वह अपना तीसरा कदम कहां रखे I अब जाकर महाबली को विश्वास हुआ की यह कोई साधारण ब्राह्मण नहीं है I विनम्रता से वामन के पैरो पर अपना सर रखते हुए महाबली ने कहा की वह अपना तीसरा कदम उसके सर पर रख दे ताकि उसके वचन का मान रह जाये I वामन के पैर रखते ही महाबली पाताल लोक चले गये I महाबली ने वामन से अपनी सही पहचान प्रकट करने के लिये अनुरोध किया I तब भगवान विष्णु अपने वास्तविक भव्य रूप में आकर महाबली से वरदान मांगने के लिये कहा I
अपनी प्रजा के प्रति आगाध प्रेम के कारण महाबली ने भगवान विष्णु से प्रार्थना की कि उसे वर्ष में एक बार अपने राज्य केरल आने की अनुमती दी जाय I भगवान विष्णु बहुत ही प्रसन्न हुए और कहा की सबकुछ खोते हुए भी महाबली को विष्णु और उनके भक्तों द्वारा हमेशा प्रेम किया जायेगा I
यही ओणम का दिन है जब महाबली वर्ष में एक बार केरल भ्रमण करने के लिये आते है और केरल की जनता उनका भरपूर स्वागत करती है I
(वैसे तो यह मात्र एक पौराणिक कथा है और इसकी सत्यता की परिक्षा नहीं ली जा सकती I पर सबसे बड़ी चीज होती है विश्वास I और जब हम विश्वास (Believe) करने लगते है तब उर्जा का अथाह श्रोत खुल जाता है I मनुष्य का जीवन भी तो इसी विश्वास पर टिका हुआ है)
(चित्र गूगल सर्च से साभार)