गुरुवार, 10 सितंबर 2009

पथभ्रष्ट

 

अपनी मुक्ति का मार्ग

ढूँढते हुऐ

यहां तक

आ पहुँचे थे

वे लोग ।

पूछ रहे थे

पता ।

कौन सा

मार्ग

बताता 

पथभ्रष्ट  मैं । 

जो मार्ग

बताया मैनें

वह ले गयी उन्हें

स्वंय तक ।

अब वे भी

मेरी तरह

पथभ्रष्ट हैं ।

28 टिप्‍पणियां:

  1. BAHOOT HI GAHRI BAAT KAHI HAI AAPNE .... SWAYAM KE ANDAR JHAANKNA AUR USKO SWIKAAR KARNA BAHOOT HI MUSHKIL HOTA HAI ........

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  2. क्या बात है,
    आपकी लेखनी मै गहराई है

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  3. खुद को कह जाना आसान काम नही होता है ......बेहद खुब्सूरत रचना

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  4. Hoga koyi pathbhrasht...aap to aksar pathdeep bane nazar aate hain! anek shubhkamnayen!

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  5. ऐसा पथभ्रष्ट बनने की जीजीविषा है!

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  6. "अब वे भी
    मेरी तरह
    पथभ्रष्ट हैं ।
    "
    aap to dube dube le doobe jajmaan...

    :)

    ...acchi post !!
    hamesha ki tarah !!

    waise keral yatra ke samapan ka dukh bhi hai...
    asha karta hoon ki ye ek alp viram hi tha yatra ka...

    ...full stop nahi !!

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  7. बहुत खूबसूरत है आपकी कविता..शब्दों का बेहद किफ़ायती प्रयोग..

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  8. apne tak un to har yatra hai, har koi apne liye aur apne tak hi sochta hai...doosre to keval sadhan hain kuchh ,kuchh bhi pane ka...
    par agar apne tak pahunchna kabir ke raste chalna hai to ...pathbhrasta hon hi ha...
    bigaryo kabeera ramduhai.

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  9. अब वे भी

    मेरी तरह

    पथभ्रष्ट हैं ।



    bahut hi achchi kavita.....chitran sahi kiya hai...

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  10. बड़ी गहरी बात कह गये आप...वाह!!

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  11. बहुत ख़ूबसूरत रचना लिखा है आपने ! इस शानदार रचना के लिए बधाई!

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  12. Aapki shubhkaamnao ke liye dhanyawaad. Aasha karta hu ke mere blog aapke kaam ayega aur aap is se php seekh payenge.

    http://ekphpblog.blogspot.com

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  13. अब वे भी

    मेरी तरह

    पथभ्रष्ट हैं ।

    bahut gahan aur samvedansheel panktiyan hain ye..
    sundar rachna..

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  14. Main Der Karta Nahi Der Ho Jati Hai. Kuchh Der Se Aapke Blog Par Aaya. Aap Mere Blog http://chor-bazar.blogspot.com Par Aaye Housal Badaya Aapka Shukriya. Hausala Afjai Ke Aagle Ummid Me Meri Aagli Post Aapke Liye. Ek Bar Fir Se Dhnyawad

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  15. arey maine soch aki tumne kuch naya likha hoga...... par jab dekhne aaya to socha ki kuch kahta hi chaloon.....hehehe

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  16. चंदन माफ़ करना भाई देर से देखा .

    खूबसुरत रचना

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  17. क्यों हो रहा नंगा यहाँ सब

    कैसी मची हुरदंग है ।


    जो चले थे हम जलाने

    आंगन किसी और का ।


    वह दूर से उठता धुँआ

    अपना हीं घर वह तो नहीं ।


    क्यों सड़क है सुनसान

    क्यों गलियाँ है खामोश ।
    sach hi kaha logo ne ,bahut sundar hi nahi laazwaab hai .

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  18. बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति है चन्दन जी और उतना ही आकर्षक है ये नया कलेवर...! आपकी भावनाओं की ही तरह मोहक...
    आपका चैट बाक्स कहां गया ?

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