गुरुवार, 30 जुलाई 2009

मेरी डायरी के कुछ पन्ने



शनिवार को मैं गांव से दरभंगा आ गया यहां आकर पता चला कि आसनसोल से मेरा मनीआर्डर आया हुआ है मैं डाकघर जाने ही वाला था कि याद आया, आज तो रविवार है अतः डाकघर बन्द होगा दूसरे दिन सुबह दस बजे डाकघर गया

टेबल पर बैठे एक सज्जन पत्र छांट रहे थे
उनसे
मैंने कहा, " कल मेरा मनिआर्डर आया था और मैं छात्रावास मे नहीं था"
"कतऽ रहई छी ?" ( कहां रहते हैं आप?) उनहोंने मैथिली में पूछा
मैंने कहा, "आइन्सटीन छात्रावास में"
"नाम की भेल ?,"(नाम क्या है?) पत्र छांटते हुए उन्होनें पूछा
"चन्दन कुमार झा"मैंने कहा

उन्होंने सामने कुछ दूर पर खड़े एक आदमी की ओर दिखाते हुए कहा-

"वो उन्हे देख रहे है न, जो टीका- चन्दन किये हुये है, उनके पास जाइये और अपना नाम कहियेगा तो कल आपको आपका मनिआर्डर मिल जायेगा "

तब मुझे पता चला की मेरा मनिआर्डर डिपोजिट में रख दिया गया है मैं समझ गया कि अब मुझे परेशान होना ही पड़ेगा तभी चन्दन-टीकाधारी पुरुष अपने स्थान से दूसरे स्थान पर चले गये. मैं उन्हें पीछे से देख ही रहा था, और जल्दी से उनके पास गया वे कुर्सी पर बैठ गये, सामने टेबल पर काफी सामान बिखरा हुआ था वैसे वे उतने व्यस्त नहीं लग रहे थे

मैनें
उनसे कहा, "मेरा नाम चन्दन कुमार झा है, कल मेरा मनिआर्डर आया था, उस समय मैं हास्टल में नहीं था, सो पता चला है कि उसे डिपोजिट में रख दिया गया है, अतः क्या मुझे मेरा मनीआर्डर मिल सकता है "

"अवश्य मिलेगा", उन्होंने पूछा,"आपको किसने भेजा है ?"

मैनें सामने दिखलाते हुए कहा, "वो जो किनारे से बैठे हुये है, लाल रंग का कुर्ता पहने हुए "

उन्होंने अपना सिर घुमा लिया और अपने कार्य में व्यस्त हो गये
मैं थोड़ा झुंझुला उठा

मैनें पुनः प्रश्न किया, "क्या मुझे कल फिर आना पड़ेगा ?"
उत्तर स्पष्ट था, "आप क्यों आएगे , डाकिया पहुचां देगा"
मैनें पूछा, "क्या आज नहीं मिल सकता ?"
उत्तर आया,"एकदम नहीं"

मैं कुछ परेशान सा हो गया, पर क्या कर सकता था, अतः वापस छात्रावास लौट आयादिन के १२ बज रहे थेमैनें सोचा शायद डाकिया मनिआर्डर लेकर आज ही आ जाये अतः समाचार पत्र लेकर छत पर जाने वाली सीढी पर बैठ गया, जहां से सामने गुजरने वाली सड़क पर सीधी नजर रखी जा सके बहुत देर तक वहां बैठा रहा, अन्त में थककर अपने कमरे में आ गया कमरे की खिड़की से भी सामने वाली सड़क नजर आती थी अतः खिड़की से भी अवलोकन का कार्यक्रम चलता रहा कि अचानक डाकिया आता दिखाइ पड़ा मैं भागकर नीचे गया, पर सारी आशा निराशा में बदल गयी डाकिया ने मेरा मनिआर्डर नहीं लाया था

चुपचाप खाना खाने चला गया

(२४ सितम्बर२००१)


बुधवार, 29 जुलाई 2009

भूत, भविष्य और वर्तमान





जब मैनें अपने,
भूत को रोता हुआ,
और भविष्य को लापता पाया,
तब मैनें अपने वर्तमान को जगाया ।

काफी ना-नुकुर के बाद वह तो उठा,
पर तब तक तीनों,
गुत्थम-गुत्थ हो चुके थे ।

एक ने दूसरे को नीचा दिखलाया,
दूसरे ने स्वयं को सबसे बड़ा बतलाया,
तीसरा,
एक उँचे टीले पर खड़ा हो गया,
और चिल्लाने लगा,
मैं किसी की भी नहीं सुनुँगा,
देख लो तुम लोग,
मैं सबसे बड़ा हूँ ।

जब तीनो लड़ते-लड़ते थक गये,
तो मेरे पास आये,
फैसला करवाने ।

अपने छ्ह हाथों से,
तीनों ने मेरा गला दबाया,
कहा,
जल्दी से बताओ,
कौन है बड़ा हममें ।

किसी तरह गला छुड़ाकर,
मैं भाग खड़ा हुआ ।

काफी देर भागने के बाद,
पीछे मुड़कर जब मैनें देखा,
जहाँ से मैं भागा था,
अपने आप को वही खड़ा पाया ।

तब तक,
वर्तमान सो चुका था,
भविष्य लापता था,
और भूत रो रहा था ।

मैं पुनःवर्तमान को,
जगाने की तैयारी में जुट गया ।



शनिवार, 25 जुलाई 2009

मंजिल की तलाश


आज मैं अपनी जिन्दगी की बहुत बड़ी खुशी आप लोगों के साथ बांटना चाहता हूं 23 जुलाई को मेरा चयन IOCL (Indian Oil Corporation Limited) में हो गया ऐसा बन्धु-बान्धवों और आप सभी लोगों के आशिर्वाद के कारण हो सका मैं अभी चतुर्थ वर्ष (safety and fire engineering) का छात्र हूं अपने सभी मित्रों के लिये मैं ईश्वर से सफलता की कामना करता हूं और उनके लिये दो पंक्तियां................



ऐ मित्र !

क्यों भटक रहे हो,

मंजिल की तलाश में


मंजिल ?

मंजिल तो तुम्हारे सामने है,

फिर क्यों भटक रहे हो तलाश में


कायरता त्यागो,

लकीर के फ़कीर मत बने रहो,

जगाओ अपने पुरूषत्व को,

सारे पंच तत्व है तुममें


बस !

एक बार देखो कोशिश करके,

अम्बर झुक जायेगा ,

कदमों में तुम्हारे


तुम्हीं हो नभ के तारे,

तुम्हीं हो वसुंधरा के पुत्र


गर्व करेगा सारा जनमानस,

ऐ भारत के धीर वीर


(22 जून 1999)

-चन्दन कुमार झा

मंगलवार, 21 जुलाई 2009

जीवन निर्झर



क्यों मौन खड़े हो बतलाओ ?
क्यों रुके हुये हो समझाओ ?


क्या सुर्य - पवन - जल रुकते भय से ?

जीवन निर्झर सरिता स्वरूप,
यह बहता जल है स्वच्छ सरल


आरम्भ करो नूतन-नवीन,
रुकना कैसा तुम वीर सबल

तोड़ो कारा, तोड़ो प्रस्तर,
प्रारम्भ तुम्हारा उज्जवल है


माना बाधायें कम भी नहीं,
पर है असीम उत्साह तेरा

तुम करो प्रहार भीष्ण बल से,
तब द्वार खुलेंगे जीवन के


संगीत सुधा अविरल बहता,
है जीवन यह निश्चय चलता

जीवन निर्झर सरिता स्वरूप,
यह बहता जल है स्वच्छ सरल