बुधवार, 29 जुलाई 2009
भूत, भविष्य और वर्तमान
जब मैनें अपने,
भूत को रोता हुआ,
और भविष्य को लापता पाया,
तब मैनें अपने वर्तमान को जगाया ।
काफी ना-नुकुर के बाद वह तो उठा,
पर तब तक तीनों,
गुत्थम-गुत्थ हो चुके थे ।
एक ने दूसरे को नीचा दिखलाया,
दूसरे ने स्वयं को सबसे बड़ा बतलाया,
तीसरा,
एक उँचे टीले पर खड़ा हो गया,
और चिल्लाने लगा,
मैं किसी की भी नहीं सुनुँगा,
देख लो तुम लोग,
मैं सबसे बड़ा हूँ ।
जब तीनो लड़ते-लड़ते थक गये,
तो मेरे पास आये,
फैसला करवाने ।
अपने छ्ह हाथों से,
तीनों ने मेरा गला दबाया,
कहा,
जल्दी से बताओ,
कौन है बड़ा हममें ।
किसी तरह गला छुड़ाकर,
मैं भाग खड़ा हुआ ।
काफी देर भागने के बाद,
पीछे मुड़कर जब मैनें देखा,
जहाँ से मैं भागा था,
अपने आप को वही खड़ा पाया ।
तब तक,
वर्तमान सो चुका था,
भविष्य लापता था,
और भूत रो रहा था ।
मैं पुनःवर्तमान को,
जगाने की तैयारी में जुट गया ।
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laajawaab !
जवाब देंहटाएंadbhut kavita................
badhaai !
मैं पुनःवर्तमान को,
जवाब देंहटाएंजगाने की तैयारी में जुट गया ।
-बहुत गहन अर्थ लिए रचना पसंद आई. बधाई.
रचनात्मक अभिव्यक्ति । प्रभावी प्रस्तुतिकरण । धन्यवाद ।
जवाब देंहटाएंबहुत गंभीर रचना .. बहुत बढिया लगा !!
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी रचना
जवाब देंहटाएं---
इस ख़ूबसूरत और शानदार रचना के लिए ढेर सारी बधाइयाँ!
जवाब देंहटाएंBhoot, vartmaan aur bhavishy ko talashti sundar rachna...... lajawaab aur naveen chintan hai aapka.....
जवाब देंहटाएंआशीष!
जवाब देंहटाएंऐसे ही अच्छा-अच्छा लिखते रहो!