गमगीन है हर आदमी
क्यों खो गया सुख चैन ।
क्यों रोकता कोई नहीं
इस जंग को तूफान को ।
क्यों बह रहा है नालियों में
खून मेरे अपनो का ।
शाख पर जो स्वप्न थे
क्यों झड़ गया वह पर्ण है ।
क्यों हो रहा नंगा यहाँ सब
कैसी मची हुरदंग है ।
जो चले थे हम जलाने
आंगन किसी और का ।
वह दूर से उठता धुँआ
अपना हीं घर वह तो नहीं ।
क्यों सड़क है सुनसान
क्यों गलियाँ है खामोश ।
यह शहर अब
जिंदा लोगो की
कब्रगाह बन चुकी है ।
(चित्र गूगल सर्च से)