बहना नदी की तरह
निर्विरोध और तीव्र वेग लिये
कि बन जाये आत्मा
एक नदी चंचल
और मिटा दे अपना अस्तित्व
मिलकर अपने इष्ट से ।
खिलना पुष्प की तरह
महक और सौंदर्य लिये
कि बन जाये आत्मा
एक पुष्प गुच्छ
और कर दे अपना जीवन समर्पित
अपने प्रिय के आंचल में ।
चलना पवन की तरह
वेग और उन्मांद लिये
कि बन जाये आत्मा
एक हवा का झोंखा
और टकराकर किसी ऊँचे पर्वत से
झर जाये झर-झर निर्झर ।
होना विशाल महासागर की तरह
लहरें और कोलाहल लिये
कि बन जाये आत्मा
एक सागर अथाह
और लाख हाहाकार लिये भी
अंदर से हो शांत और गहरा ।
तपना सूरज की तरह
लावा और उष्मा लिये
कि बन जाये आत्मा
एक सूरज चमकदार
और स्वयं जलते हुये भी अनवरत
भर दे जीवन कण कण में ।
(भैया रावेंद्रकुमार रवि द्वारा दिये गये सुझाव के अनुसार उपरोक्त कविता को सम्पादित कर पुनः प्रकाशित किया गया है )