बुधवार, 9 जून 2010

क्यों…?

खाली रह जाता हूँ मैं,

बार-बार ।

जितना भी तुम भरती हो,

मैं खाली होता जाता हूँ ।

तरल होता जाता हूँ,

पल-पल,

हमेशा,

मैं ठोस होने की कोशिश में ।

8 टिप्‍पणियां:

  1. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

    जवाब देंहटाएं
  2. आईये जानें … सफ़लता का मूल मंत्र।

    आचार्य जी

    जवाब देंहटाएं
  3. एक सुंदर अभिव्यक्ति ।
    शीर्षक ने रचना को पूर्णता प्रदान की है ।
    बधाई ।

    जवाब देंहटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर रचना. आभार.

    जवाब देंहटाएं
  5. चंद शब्दों में इतनी गहरी बात. आभार.

    जवाब देंहटाएं
  6. namaskar,

    arrey bhai jaisey hum rishtedaron ke yahan jatein hein, vaisa hi aapka aur mera ek Relation to hey aur vo bhi Blogger ke madhyam se.

    Aapki site sachmuch attractive hey.

    Jara aap meri Blogsite par bhi aayein - yahi Invitation Card bhej raha hoon .

    Visit: http://SpiritualGyann.Blogspot.com

    जवाब देंहटाएं