बुधवार, 9 जून 2010

क्यों…?

खाली रह जाता हूँ मैं,

बार-बार ।

जितना भी तुम भरती हो,

मैं खाली होता जाता हूँ ।

तरल होता जाता हूँ,

पल-पल,

हमेशा,

मैं ठोस होने की कोशिश में ।

10 टिप्‍पणियां:

  1. हर शब्‍द में गहराई, बहुत ही बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  2. आईये जानें … सफ़लता का मूल मंत्र।

    आचार्य जी

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  3. एक सुंदर अभिव्यक्ति ।
    शीर्षक ने रचना को पूर्णता प्रदान की है ।
    बधाई ।

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  4. बहुत ही सुन्दर रचना. आभार.

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  5. चंद शब्दों में इतनी गहरी बात. आभार.

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  6. namaskar,

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  7. मैं चिटठा जगत की दुनिया में नया हूँ. मेरे द्वारा भी एक छोटा सा प्रयास किया गया है. मेरी रचनाओ पर भी आप की समालोचनात्मक टिप्पणिया चाहूँगा. एवं यह भी जानना चाहूँगा की किस प्रकार मैं भी अपने चिट्ठे को लोगो तक पंहुचा सकता हूँ. आपकी सभी की मदद एवं टिप्पणिओं की आशा में आपका अभिनव पाण्डेय
    यह रहा मेरा चिटठा:-
    सुनहरीयादें

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