पहाड़ से नीचे उतरते हुऐ
दूर तक दिखते
छोटे-छोटे घर
जहाँ कैद है अभी भी
कुछ भूली-बिसरी यादें ।
दूर तक फैला हुआ
कुहासे में लिपटा
गुमशुदा शहर
जहाँ से बच निकला था मैं कभी ।
घुमावदार सड़कों पर
और इन सड़को से भी ज्यादा
टेढ़ी-मेढ़ी यह जिन्दगी ।
जिन्दगी की दीवार पर
कील की तरह
टंगी कुछ यादें ।
सदियां बीत जाये
भूलने में
और तुम्हारे काँधे की गर्म खुशबू
भुला नहीं पाया मैं आजतक ।
अब पहाड़ों पर
नहीं जाता मैं ।
वाह
जवाब देंहटाएंअत्यंत उत्तम लेख है
काफी गहरे भाव छुपे है आपके लेख में
.........देवेन्द्र खरे
सही है जो मंजर यादे कुरेद दें वहाँ जाना ही क्यूँ !
जवाब देंहटाएंसुन्दर रचना
'ab pahaadon par naheen jaataa main'!
जवाब देंहटाएंek aisaa ant hai jahaan se kaee naee raahen footatee hain . yah to aapkee manah-sthiti hai ki aap kis raah kee or khinch jaate hain. bahut sundar rachnaa, jo oohaa-poh se praarambh hokar oohaa-poh men samaapt (?) hotee jaan padtee hai, aur oohaa-poh yathaawat saamne banaa rahtaa hai. bhaawaabhivyakti bhee utnee hee khoobsoorat hai . badhaaee .
Kya baat hai! Zindgaee kee deevar par tangi huee kuchh yaden!Kaash tange hue kapdon kee tarah ham yaadon hata sakte...sirf suhani yaden rakhte,baaqee sab dafan kar dete..
जवाब देंहटाएंhttp://shamasansmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
और इन सड़को से भी ज्यादा
जवाब देंहटाएंटेढ़ी-मेढ़ी यह जिन्दगी ।
जिन्दगी की दीवार पर
कील की तरह
टंगी कुछ यादें ।
बहुत खूब...इतनी कम उम्र में इतना अच्छा लिख लेते हो...सरस्वती मेहरबान हैं...ऐसे ही रहें..:)
जिन्दगी की दीवार पर
जवाब देंहटाएंकील की तरह
टंगी कुछ यादें ।
सच कहा जहाँ जख्म दुबारा रिसने लगें वहाँ कौन जाएगा ...... बहुत ही अच्छी रचना है .... दर्द भरी, दिल को छूते हुवे गुज़रती है ........
"इन सड़को से भी ज्यादा / टेढ़ी-मेढ़ी यह जिन्दगी"
जवाब देंहटाएंएक अच्छी कविता चंदन। सीधे दिल से निकली दिल तक पहुँचती हुई।
बहुत सुंदर और उत्तम भाव लिए हुए.... खूबसूरत रचना......
जवाब देंहटाएंवाह ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर कविता...
अच्छा लगा पढ़कर
शुभ कामनाएं
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श्रेष्ठ सृजन प्रतियोगिता
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