इतने वर्षों के बाद,
सोचा, खेलूँगा तुम्हारे संग होली,
लगा दूंगा, थोड़ा सा गुलाल,
तुम्हारे गालों पर,
कुछ रंग जा बसेंगे,
तुम्हारी माँग में ।
ढ़ूंढ़ा अपनी पोटली में,
पर रंग कहाँ बचे थे वहाँ ।
शायद पुराने बक्शे में हो,
पर सबकुछ तो,
साथ ले गयी थी तुम ।
बचा क्या रह गया था,
मेरे पास ।
हाँ याद आया,
तुम्हारे जाने के बाद,
अलमारी में पड़ी,
तुम्हारी सिन्दूर की डिब्बी,
फेंक आया था,
पास के तालाब में ।
आज तक सूखी नहीं यह तालाब,
बस मैं हीं पतझड़ हो गया ।