(चित्र- भैया रावेंद्रकुमार रवि)
फूल का कहना सुनो
यह कहता कुछ नहीं
पर
तुम सुन सकते हो
सबकुछ ।
उल्लास, प्रेम, करुणा, दर्द
सबकुछ ।
तुम सुन सकते हो
जीवन के हर क्षण
रंगों का कण-कण
तुम सुन सकते हो
सबकुछ ।
तुम देख सकते हो
इसमें जीवन का
असीम सौंदर्य ।
फूल
बगीचे में खिला हो
या फिर
खिला हो
किसी ऊँचे दरख्त पर ।
या फूल हो जंगली
फूल तो फूल है ।
यह खिल जाता है कहीं भी
चाहे
कांटे, कीचड़ और पहाड़ हो
या फिर हो शुष्क रेत
यह खिल जाता है ।
जीवन की मुस्कान लिये
इसलिये
फूल का कहना सुनो ।
सुनो
चुपचाप सुनो………
(बहुत ही हर्ष के साथ सूचित करना चाहता हूँ कि मेरे ब्लाग ‘गुलमोहर का फूल’ की समीक्षा 4 अक्टूबर को iNext हिन्दी समाचार पत्र में ‘गुलमोहर की छांव’ नामक शीर्षक से प्रकाशित हुई थी । समीक्षा करने के लिये मैं आदरणीय श्रीमती प्रतिभा कटियार जी का हृदय से आभारी हूँ । मैं सभी सम्माननीय ब्लागरों एवं प्रिय मित्रों को हृदय से धन्यवाद प्रस्तुत करना चाहता हूँ जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय देकर मेरा उचित मार्गदर्शन किया और मुझे अपार मानसिक शक्ति प्रदान की । मैं श्रीमान बी एस पाबला जी का आभारी हूँ जिन्होनें इस समाचार को अपने ब्लाग प्रिंट मीडिया पर ब्लाग चर्चा पर प्रकाशित किया । अगर मैं आप सभी शुभचिंतको का नाम लिखकर आभार प्रकट करूं तो सूची बहुत लम्बी हो जायेगी अतः इसके लिये मुझे क्षमा करें । एक बार पुनः आप सभी को कोटि-कोटि धन्यवाद)