मंगलवार, 27 अक्तूबर 2009

कि बन जाये आत्मा

 

बहना नदी की तरह

निर्विरोध और तीव्र वेग लिये

कि बन जाये आत्मा

एक नदी चंचल

और मिटा दे अपना अस्तित्व

मिलकर अपने इष्ट से ।

खिलना पुष्प की तरह

महक और सौंदर्य लिये

कि बन जाये आत्मा

एक पुष्प गुच्छ

और कर दे अपना जीवन समर्पित

अपने प्रिय के आंचल में ।

चलना पवन की तरह

वेग और उन्मांद लिये

कि बन जाये आत्मा

एक हवा का झोंखा

और टकराकर किसी ऊँचे पर्वत से

झर जाये झर-झर निर्झर ।

होना विशाल महासागर की तरह

लहरें और कोलाहल लिये

कि बन जाये आत्मा

एक सागर अथाह

और लाख हाहाकार लिये भी

अंदर से हो शांत और गहरा ।

तपना सूरज की तरह

लावा और उष्मा लिये

कि बन जाये आत्मा

एक सूरज चमकदार

और स्वयं जलते हुये भी अनवरत

भर दे जीवन कण कण में ।

(भैया रावेंद्रकुमार रवि द्वारा दिये गये सुझाव के अनुसार उपरोक्त कविता को सम्पादित कर पुनः प्रकाशित किया  गया है )

30 टिप्‍पणियां:

  1. zindagi ki sachchaiyon ko shabon ke roop mein bahut achche se ukera hai.... flow bahut bahut achcha laga kavita....

    ati sunder

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  2. एक सागर अथाह

    और लाख हाहाकार लिये भी

    अंदर से हो शांत और गहरा ।
    भाव पूर्ण कविता

    जवाब देंहटाएं
  3. आप बहुत अच्छा लिखते हैं
    अच्छी लगी आपकी रचना

    जवाब देंहटाएं
  4. आपने न जाने किस भाव से लिखी यह कविता मित्र; पर आप इंजीनियरिंग के छात्र हैं। इस समय तो जीवन समर्पित करने के भाव की बजाय दुनियां मुठ्ठी में बांध लेने के भाव आने चाहियें।

    क्षमा करें। मैं तो ऐसा सोचता था। कितना अचीव कर पाया, वह दूसरी बात है।

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  5. एक सूरज चमकदार
    और स्वयं जलते हुये भी अनवरत
    भर दे जीवन कण कण में ।
    ------
    सार्थक है अभिलाषा. निर्मल है अत्यंत निर्मल

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  6. बहना,
    खिलना,
    चलना,
    होना
    और
    तपना
    जैसे आयामों से गुज़रती हुई यह शानदार कविता एक ज़बरदस्त शाहकार है...........


    चलना पवन की तरह

    शीतलता, वेग और उन्मांद लिये

    कि बन जाये आत्मा

    एक हवा का झोंखा

    और टकराकर किसी ऊँचे पर्वत से

    झर जाये झर-झर निर्झर ।


    वाह वाह ! क्या कहने !

    हार्दिक अभिनन्दन !

    जवाब देंहटाएं
  7. चलना पवन की तरह

    शीतलता, वेग और उन्मांद लिये

    थैंक्स

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  8. nadi ki tarah bahna...suraj ki tarah tapna...khud ko mita ke bhi भर दे जीवन कण कण में ।

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  9. एक उत्कृष्ट रचना...........इसमे भावानाओ की रवानगी है !

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  10. चन्दन जी सुन्दर विचार बधाई !!!

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  11. बन जाये आत्मा
    एक नदी चंचल
    और मिटा दे अपना अस्तित्व
    मिलकर अपने इष्ट से ।
    sundar.. ati sundar...

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  12. भई जीवात्मा के परमात्मा से संयोग को क्या खूबसूरत प्रतीकों से जोड़ कर अर्थवान बना दिया है आपने..नदी की रवानी, पुष्प का समर्पण, पवन का उन्माद, सागर की शांति और सूर्य का आत्मदहन..सब कुछ एक साथ.
    हाँ चौथा स्टैन्ज़ा पूरी कविता के प्रवाह मे थोडा बाधित करता सा लगा..मगर शायद यह मेरी ही दागी नजर का गुनाह रहा होगा!!

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  13. बहुत ही शानदार, ज़बरदस्त और लाजवाब रचना लिखा है आपने ! इस बेहतरीन रचना के लिए बधाई !

    जवाब देंहटाएं
  14. चलना पवन की तरह

    शीतलता, वेग और उन्मांद लिये

    कि बन जाये आत्मा

    एक हवा का झोंखा

    और टकराकर किसी ऊँचे पर्वत से

    बहोत हि अच्छी कविता है इसमे आपकी आत्माका निरूपण है

    सपना

    जवाब देंहटाएं
  15. not nice ........very nice

    prithvi ki lagbhag har rachna ki upma dene se ye kavita aur bhi achchi bani hai

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  16. aasha , ummeed , prem aur बहुत से komal ehsas भर कर सुन्दर रचना का सृजन किया है .......... बहुत खूब ........

    जवाब देंहटाएं
  17. प्रिय चंदन,

    वाकई आत्मा ऐसी ही होना चाहिये, एक सुन्दर, सारगर्भित कविता।

    सादर,

    मुकेश कुमार तिवारी

    जवाब देंहटाएं
  18. तपना सूरज की तरह

    अग्नि, लावा और उष्मा लिये

    कि बन जाये आत्मा

    एक सूरज चमकदार

    और स्वयं जलते हुये भी अनवरत

    भर दे जीवन कण कण में !!!


    Bahut bahut bahut hi sundar rachna....Man mugdh kar gayi....
    laga jaise apne hi man ki baat padh lee...

    Is sundar rachna ke liye aabhaar aapka..

    जवाब देंहटाएं
  19. एक बहुत ही ख़ूबसूरत प्रेरणादायी रचना...

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  20. माफ़ करियेगा चन्दन जी "प्रेम का यह गीत, केरल में बरसात और गाय" वाले पोस्ट के बाद आज मैंने आपके सारे पोस्ट पढ़े . सभी बेहद प्रशंसनीय और जीवन के ९ रसों को अपने में समेटे हुए है .

    आपकी कविताएँ तो एक बहती नदी है जो सारे भावों युक्त है और लोगों को खुशियाँ बांटते जाती है . आपको पुन: बहुत बहुत बधाई इन सारे पोस्टों पर.

    जवाब देंहटाएं
  21. तपना सूरज की तरह

    अग्नि, लावा और उष्मा लिये

    कि बन जाये आत्मा

    एक सूरज चमकदार

    और स्वयं जलते हुये भी अनवरत

    भर दे जीवन कण कण में ।
    बहुत सुन्दर मन मे ऊर्जा ाउर प्रेरण देती कविता है। तस्वीर देख कर तो मन खिल उठा शुभकामनायें

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  22. जीवन को सुंदर बनाना साहित्य की अघोषित अभिलाषा है। आपने इस कविता के बहाने उसी परम्परा को जीवित रखा है। बधाई।
    -Zakir Ali ‘Rajnish’
    { Secretary-TSALIIM & SBAI }

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  23. तपना सूरज की तरह
    अग्नि, लावा और उष्मा लिये
    कि बन जाये आत्मा
    एक सूरज चमकदार
    और स्वयं जलते हुये भी अनवरत
    भर दे जीवन कण कण में

    Tapne se hi nikhar aata hai.
    Bahut sundar abhivakti ke liye badhai.

    जवाब देंहटाएं
  24. sahaj utsfoortta rachanaa,
    adbhut saundarya aur taazgee se chhalaktee,
    maanon, divyataa se paripoorna kalash apne ko lutaa rahaa ho !
    kripayaa 'unmaa(n)d' kee varttanee shuddha karen,is or dhyaan dilaane ke liye kshamaa chaahtaa hoon .
    jitanee bhee prashansaa karoon kam hai .
    badhaaee .

    जवाब देंहटाएं
  25. awesome posts..!! i knw, v both r unknwns.. still gt d link 4 ur blog n read it.. cn simply say.. they r awesme..!! vl like 2 knw ur email id..

    जवाब देंहटाएं
  26. आपकी एक और उत्कृष्ट रचना...बहुत ही प्रेरणादायी....
    ये पंक्तियाँ मुझे सबसे अच्छी लगीं-

    "और स्वयं जलते हुये भी अनवरत
    भर दे जीवन कण कण में।..."

    "और लाख हाहाकार लिये भी
    अंदर से हो शांत और गहरा ।"

    जवाब देंहटाएं