मंगलवार, 13 अप्रैल 2010

अगले जनम मोहे कौआ न कीजो

कौवा रोज शाम को यूनिवर्सिटी ग्राऊंड में दौड़ने के लिये जाता हूँ । मैदान के चारो तरफ ऊँचे-ऊँचे पेड़ लगे हुए है । आज कैम्पस में यूथ फ़ेस्टिवल का अंतिम दिन था तो कुछ छात्र पटाखे इत्यादि फ़ोड़ रहे थे । इन पटाखों की आवज से डरकर सैकड़ो नहीं हजारों कौवे पेड़ से उड़कर इधर-उधर काँव-काँव करते हुए मंडराने लगे । मैनें ज़िन्दगी में पहली बार इतने कौवो को एक साथ देखा । मैं तो हतप्रभ था । आखिर इतने कौवे आये कहाँ से ?    आज जब पर्यावरण प्रदूषण के कारण बहुत से जीव जब विलुप्त होने की कगार पर है, क्या ये कौवे विलुप्त नहीं हो रहे है ? क्या ये इन्डेंज़र्ड नहीं है ? बाघ जैसा जानवर विलुप्त होने की कगार पर है । गौरैया पक्षी अब बहुत कम दिखाई देती है । बाघ (या किसी भी जीव का) का फ़ूड चेन में बहुत ही महत्वपूर्ण स्थान होता और यह सोचकर डर होता है कि इनके विलुप्त हो जाने से कितनी जटिल समस्या उत्पन्न होगी/हो रही है । बचपन की याद आती है कि किस तरह तिकड़म लगाकर गौरैया को पकड़ते थे और उसे लाल-हरा-पीला अनेक रंगो से रंगकर उड़ा देते थे । इस कार्य में कितना आनंद आता था । देखिये विषयांतर हो गया । कर रहे थे बात कौओ की और आ गये कहाँ ।

तो मुझे लगता है ये सारे कौवे भागे हुऐ कौवे है और गाँव-देहात छोड़कर शहर आ बसे है । सोचा होगा शहर में आकर दाना-पानी-आवास की सुविधा मिलेगी । अब यहाँ आकर कर रहे है कौवामारी । आदमियों ने तो इनकी रात की नींद तक हराम कर रखी है । पर कौवा बहुत हीं एडज़स्टेवल जीव होता है, और इनकी एकता तो देखने वाली होती है । मुझे तो लगता है आदमी विलुप्त हो जाये पर ये बचे रहेंगे । क्या बाढ़, क्या सुखाड़, क्या पर्यावारण प्रदूषण, जबर्दस्ट ईम्यूनिटी होती है इनमें । मैनें सुना है कि महाभारत युद्ध के बाद कई दिनों या कहिये कई महिनों तक कौवो, चीलों और गिद्धों की पार्टी चली थी । अब गिद्ध और चील तो नजर नहीं आते पर कौवा अभी तक बचा हुआ है । कौवा अभी तक ईवोल्यूट करता आया आगे भी करता रहेगा । तो कौवा बचा रहेगा ।

खैर बात जो भी हो इस कौवा पक्षी से अपनी कभी नहीं बनी । बचपन में एक बार एक ऊँचे नीम के पेड़ पर दांतुन तोड़ने के लिये चढ़ गया था, बिना यह जाने कि उस पेड़ पर कौवा ने घोंसला बना रखा है । सिर मुड़ाया और ओले पड़ने वाली बात तो यह हुई कि घोंसले में उस कौवे ने अण्डे दे रखे थे । पेड़ के उपर चढ़ते–चढ़ते ही 10-20 कौवो ने मेरे उपर आक्रमण कर दिया । किसी तरह पेड़ से उतरकर मैं भाग खड़ा हुआ । पर कब तक मैं घर के अंदर रहता, दिन का आधा समय तो मैं छत पर या अमरूद के पेड़ पर बिताया करता था । बहुत हीं मुश्किल समस्या उतपन्न हो गयी थी । स्कूल जाने के लिये घर से निकलता तो कौवे बस स्टेण्ड तक मेरा पीछा करते । कई बार कौवो के चोंच से अपने सर पर चोट भी खायी । मेरी स्थिती “न घर का न घाट का” वाली हो गयी थी । करीब 10-15 दिनों तक यह स्टार वार चलता रहा । आखिर कौवे भी तो आकाशीय जीव ही है। कौवो नें इस मैटर को बहुत ही पर्सनली लिया था शायद । खैर किसी तरह ये यह युद्ध खत्म हुआ । और मैं अब पुनः अपने दिन का आधा समय अमरूद के पेड़ पर बिता सकने के लायक हुआ । उसके बाद मैनें कभी कौवो से पंगा नहीं लिया और उनसे दूर हीं रहा ।

सालों बाद इन कौवों ने बचपन की याद दिला दी । अब तो ये कौवे दोस्त की तरह लगते है, हालंकि अभी भी दूरी बनाकर ही रखता हूँ । अब मुझे पता है ये पर्यावरण के अच्छे दोस्त है । कौवा बहुत काम का जीव है । पर्यावरण में फैला बहुत सारा कूड़ा-करकट-कचड़ा तो यह अकेले ही साफ़ कर देता है । इन कौवो की हमें बहुत जरूरत है खासकर शहरों में तो और भी ज्यादा । अभी भले हीं इनकी संख्या ठीक ठाक लग रही हो पर मनुष्यों  की प्रगति  यूँ हीं जारी रही तो ये कौवे भी एक दिन बाघ बन जाएगें और फ़िर समाचारपत्र में विज्ञापन निकलेगा-

SAVE CROW !!!  LEFT ONLY 1811 !!!

कुछ दिनों की सुगबुगाहट और सरगर्मी, उसके बाद सबकुछ ठण्डा । कुछ लोग ईनाम जीत लेंगे कुछ प्रतियोगिता करवाकर पब्लिशिटी । भविष्य में ये कौवे “कौआ और कंकड़” वाली कहानी के ज़रिये याद रखे जायेंगे । सोच रहा हूँ, कौवों की कुछ ताजा तस्वीर अपने कम्प्यूटर में सेव करके रख लूँ । एक घड़ियाली आँसू और सही ।

24 टिप्‍पणियां:

  1. Bahut mazedaar aalekh!Haan..paryawaran ke prati zimmedari/jagrukta behad zaroori hai..

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  2. बहुत सही। इससे पहले कि यह विलुप्तीफाई हो, इस पर पोस्ट ठेल देनी चाहिये!
    जब ये मुंडेर पर नहीं बैठा करेंगे तो पाहुन आने की सूचना कौन देगा?

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  3. post toh mast hai hi par usse bhi bari baat hai ke iss tarah ke topic ko select karna, prakash dalna aur apni baat achchi aur rachnatmak tarike se keh jana

    really great...................

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  4. अब तो ये कौवे दोस्त की तरह लगते है
    दोस्त तो ये हैं ही
    रोचक शैली में गम्भीर बात
    प्रभावशाली

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  5. ha ha ha majedar....
    shandar prastuti.
    vaise ham bhi ek bar unke krodh ka shikar ho chuke hain...jab chote the
    vaise aapne sahi kaha inki jaroorat shahron me jyada hai. :)

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  6. चंदनजी,
    वास्तव में कौआ नहीं पहले मनुष्य ही परिसमाप्त (extinct) होगा ।
    इसलिए चिन्ता की बात नहीं । हाँ अगर मनुष्य समाप्त
    होना नहीं चाहता तो उसे कौवों को तथा पर्यावरण को
    बचाने के लिए कुछ न कुछ करना चाहिए ।

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  7. उड़ जा कारे कावाँ, तोरे ......
    ..
    लै जा तू संदेशा मेरा...... ।

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  8. प्रिय चंदन जी!
    आपने कौए पर बहुत अच्छा आलेख
    प्रस्तुत किया है!
    --
    इसे पढ़कर मन प्रसन्न हो गया!
    --
    सबसे मज़ेदार और आकर्षक है -
    इसका शीर्षक : अगले जनम मोहे कौआ न कीजो!

    --
    रंग-रँगीला जोकर
    माँग नहीं सकता न, प्यारे-प्यारे, मस्त नज़ारे!
    --
    संपादक : सरस पायस

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  9. कौए के बहाने पर्यावरण पर भी अच्छा चिंतन है!
    --
    कहीं-कहीं व्यंग्य का भी अच्छा तड़का लगा है!
    --
    मेरे साथ भी ऐसी ही घटना हुई थी!
    बहुत दिनों तक कौओं ने मेरा भी पीछा नहीं छोड़ा था!
    मैं घर से निकलते ही मुट्ठियों में बजरी भर लेता था!

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  10. चन्दन तुमने सही कहा.. कौआ के विलुप्त हो जाने की आशन्का आपने सही जतायी.. परन्तु गौरेय्या सही मे विलुप्त हो रहा है... आधुनिकता और नयी तकनीक की खोज भी जहर साबित हो रही है... मैने रेडियो पर कुछ दिनो पहले यह सामाचार रिपोर्ट सुना था कि मोबाइल टावर से निकलने वाला तरन्ग गौरेय्या के विलुप्तिकरण का कारण बन रही है....
    मै आपके आलेख से पूर्णरूपेण सहमत हू.. अच्छी टिप्पणी लगी... अब हमलोगो को तथा नयी पीढी कॊ पर्यावरण सुरछा तकनीक को विकसीत करना होगा.....

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  13. Kaag udaawan, shagan manawaan!
    Nusrat Sahab ki qawawali yaad aa gayee!
    Bhai mere maza aa gaya!
    Mujhe bhi He Bhagwans Please Kauwa na keejo!

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  14. hello chandan!sundar lekh hai,maine iske pehale bhi aapka ek keral vala lekh padha tha .hum aapko sundar lekhan shaili ke lie badhai dena chahte hain .aapkae jaise yuva jo aaj bhi hindi me itna sundar likh lete hain unhe dekh kar hindi ke lie mere man me jo chinta hai use thodi shanti milti hai .

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  15. बहुत ही बढ़िया लिखा है,चन्दन...व्यंग के तड़के के साथ

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  16. कौआ नहीं होगा तो लोग काकचेष्टा करना भूल जाएंगे । बचाओ भाया, बचाओ ।

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  17. दुबई में जिस इलाक़े में हम रहते हैं वहाँ तो बहुत कव्वे हैं ....

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  18. मेरे घर पर रोज़ कौओं की दावत रहती है पानी और नाश्ते की कम से कम बीस कौए आते हैं. प्लेट में नाश्ता रखा हो और प्लेट मैं हाथ में लेकर खड़ी रहूँ तो मेरे हाथ से बड़े प्रेम से खाते हैं. अडोस पड़ोस के लोग देखते हैं मेरी ये दोस्ती .

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  19. Prakrit ke prati jan gagran kee yah bahut achhi prastuti hai..... Aaj jis tarah se prakrti ka dohan ho raha hai use bachane ke aawasyakata hai..
    Saartha lekh

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  20. बहुत ही अच्छी पोस्ट! लेकिन ये नहीं समझ में आया की कौवे के प्रति अप्रतिम प्रेम के बाद ऐसा टाइटल क्यूँ? 'अगले जनम...."

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  21. है बड़े जीवट वाला जीव. यहाँ अक्सर देखता हूँ जब ४-५ कव्वे मिलकर किसी बाज़ को अपने घोंसले से दूर तक खदेड़ रहे होते हैं.

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  22. achha alekh hai par kaue ki karkash boli ko aur karkash bana kuchh naya dalen.bidmbana ha ki hindi blog par rachnaye jitna purana blog hota hai utni hi purani hoti hain. Anya ka josh rahta hi nahi hai.yaa soch kar bhi likh nahi pate.lagatar likhne

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