वह आदमी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं
वह आदमी लेबलों वाले संदेश दिखाए जा रहे हैं. सभी संदेश दिखाएं

शनिवार, 13 फ़रवरी 2010

कुछ बाते इधर उधर की और “वह आदमी”

DSC03290 इस बार बहुत दिनों तक ब्लाग जगत से दूर रहा । पिछली पोस्ट डाले हुए करीब दो महिने हो चुके है । कारण ? कुछ तो इंटरनेट की समस्या, बीच में गांव भी गया था, और कुछ ब्लागजगत से दूर रहने की इच्छा । अगले महिने मार्च में, ब्लागजगत में आये हुए मुझे पूरे एक साल हो जायेंगे । यहाँ आकर कितना सफल रहा यह नहीं जानता या जानने की इच्छा नहीं, परन्तु एक आत्मसंतुष्टि का भाव मन में जरूर व्याप्त है । यहाँ आकर बहुत कुछ पाया है मैंने । अनेक सुजनो से मित्रता स्थापित हुई और मेरी हिंदी भी पहले से अच्छी हो गयी है । 8-9 वर्षों से हिन्दी लिखना बन्द हो चुका था परन्तु पढ़ना नहीं, हिन्दी मैं नियमित रूप से पढ़ता रहा हूँ । ब्लागजगत में आकर हिन्दीं लेखन करना बहुत हीं सु:खद अनुभव रहा है । बहुत सूक्ष्म और अल्प हीं सही पर अपने अंदर रचनात्मकता को पनपता हुआ महसूस कर रहा हूँ ।

अब कुछ बाते गाँव की । गाँव में हमारी एक रिश्ते की बहन है । “समता” दीदी । गणित से एम.एस.सी(M.Sc.) करने बाद अभी वह एल एन मिथिला विश्वविद्दालय, दरभंगा  से  पी.एच.डी.(Ph.D.) कर रहीं है । एक साधारण ग्रामीण परिवार से होकर, गाँव में रहकर (जहाँ सबसे निकटम महाविद्दालय घर से 20 किलोमीटर दूर है) पी.एच.डी. तक का सफर तय करना, वह भी एक लड़की के लिये किसी अति कष्टसाध्य तपस्या से कम नहीं, जबकी/जहाँ ज्यादातर परिस्थितीयाँ अनुकूल नहीं होती । समता दीदी को लिखने-पढ़ने का भी शौक है । इस बार जब गाँव गया था तो उनकी कुछ कवितायें लिखकर ले आया । आज पढ़िये उनकी कविता “वह आदमी”  ।

 

“वह आदमी”

सर पर सफेद बाल,

और

चेहरे पर झुर्रियां ।

लड़खड़ाते हुए कदम,

और

साँस की तेज रफ़्तार ।

उस आदमी को थी आवश्यकता,

दस रुपये की ।

मैं गलती से पूछ बैठी,

क्या है काम ?

हैरत से वह बोला-

“तुम अब तक हो अंजान ?”

मंत्री जी को लगा बुखार,

छा गये सारे रेडियो अखबार,

उनकी बुखार का चर्चा आम,

तो फिर,

मेरा बुखार क्यों गुमनाम ।

मैंने कहा-

गम की कोई बात नहीं है,

और न हीं कोई,

नयी बात हुई है ।

बड़े लोगो की बुखार है,

इसलिये थोड़ी प्रसिद्धी मिली है ।

 

-(समता झा)