कंचनजंघा रेंज
शनिवार, 7 मई 2022
सोमवार, 17 अगस्त 2015
कांतीभाई
लड़के ने अपनी नयी नयी मूछें कुतरवाई । साथ की कुर्सी पर बैठे मित्र ने अठखेेली की - "गुरू पूरा ही सफाचट करवा लो न " ।
हज्जाम ने आँखे सिकोरकर दोनों को बारी - बारी से देखा ।
"मरवाओगे क्या " लड़के ने हँसते हुए कहा ।
मित्र मण्डली जोर के ठहाके से गूँज उठी ।
मूंछो को बारिकी से सजा दिया गया ।
टोली में चार पांच लोग थे । किसी ने चेहरे का मसाज करवाया तो किसी के बालों को खूबसूरती से सँवारा गया ।
हज्जाम ने एक - एक कर सभी को निपटाया ।
मैं आधे घण्टे से अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था ।
शोर के साथ सभी दूकान से बाहर आ गए ।
"क्या सर? दाढ़ी या बाल ?"
ये बगल की कुर्सी पर जो लड़का बैठा था न .…इसके चाचा के कई सारे कारोबार है । महीने का एक से डेढ़ लाख तो सिर्फ पुलिस के पास पहुंचता है । सोचिये कितनी आमदनी होगी । खूब पैसा उड़ाते है ये लड़के लोग ।
अच्छा ! करते क्या है इनके चाचा ?
अरे सर दारू का कारोबार है और न जाने क्या क्या ।
लेकिन लड़के लोग अपने भाई जैसे है । जाखड़ गाँव से यहाँ आये है……१० किलोमीटर दूर से । मेरी ही दूकान पर आते है सब । हमेशा !!!
सबको कांतीभाई ही चाहिए । गर्व का अनुभव किया उसने ।
हज्जाम ने आँखे सिकोरकर दोनों को बारी - बारी से देखा ।
"मरवाओगे क्या " लड़के ने हँसते हुए कहा ।
मित्र मण्डली जोर के ठहाके से गूँज उठी ।
मूंछो को बारिकी से सजा दिया गया ।
टोली में चार पांच लोग थे । किसी ने चेहरे का मसाज करवाया तो किसी के बालों को खूबसूरती से सँवारा गया ।
हज्जाम ने एक - एक कर सभी को निपटाया ।
मैं आधे घण्टे से अपनी बारी का इंतज़ार कर रहा था ।
शोर के साथ सभी दूकान से बाहर आ गए ।
"क्या सर? दाढ़ी या बाल ?"
ये बगल की कुर्सी पर जो लड़का बैठा था न .…इसके चाचा के कई सारे कारोबार है । महीने का एक से डेढ़ लाख तो सिर्फ पुलिस के पास पहुंचता है । सोचिये कितनी आमदनी होगी । खूब पैसा उड़ाते है ये लड़के लोग ।
अच्छा ! करते क्या है इनके चाचा ?
अरे सर दारू का कारोबार है और न जाने क्या क्या ।
लेकिन लड़के लोग अपने भाई जैसे है । जाखड़ गाँव से यहाँ आये है……१० किलोमीटर दूर से । मेरी ही दूकान पर आते है सब । हमेशा !!!
सबको कांतीभाई ही चाहिए । गर्व का अनुभव किया उसने ।
मंगलवार, 12 मई 2015
सोमवार, 4 मई 2015
विवश आदमी
झुकाता है शीश ।
खूंटे को ही समझता है
अपना ईष्ट ।
आँखो पर पट्टियाँ बांधे
लगातार बार - बार
कोल्हू के बैल की तरह
लगाता चक्कर ।
सभ्यता के खूंटे में बंधा
विवश आदमी ।
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बुधवार, 29 अप्रैल 2015
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