पिछले तीन वर्षो में करीब 350 फ़िल्में देख चुका हूँ । इनमें ज्यादातर अंग्रेजी और थोड़ी बहुत हिंन्दी और अन्य विदेशी भाषाओं में बनी फ़िल्में हैं । हिन्दी में बहुत ही कम, गिनी चुनी फ़िल्में बन रही है आजकल जो देखने लायक है । बहुत दिनों से सोच रह था कि क्यों न कुछ फ़िल्मो की चर्चा की जाय जो मुझे अच्छी लगी । यह लेखन पूर्णतः मौलिक तो नहीं हो सकता है पर प्रयास करने में क्या बुराई है । बहुत सी जानकारी इन्टरनेट से प्राप्त की जायेगी । अगर यह लेखन सार्थक हुआ तो आगे भी लिखूँगा । आईये आज करते है फ़िल्म गाँधी (Gandhi) की चर्चा ।
गाँधी (Gandhi)
महात्मा गाँधी हमारे देश के राष्ट्रपिता है । देश की स्वतंत्रता में उनके योगदान की चर्चा करने की आवश्यकता नहीं, हम सभी जानते है । मैं कुछ ऐसे लोगों से भी मिला हूँ जो इस बात को सिरे से नकारने की कोशिश करते है । देश के विभाजन का कारण वे महात्मा गाँधी को मानते है । यह भी सुना है कि अगर महत्मा गाँधी चाहते तो स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह को फँसी की सजा नहीं होती । जो भी हो सभी को अपने विचारों को प्रकट करने की स्वंतन्त्रता है ।
सिनेमा को समाज का आईना भी कहते है । और आईना वही सच्चा है जो हमें अपना वास्तविक चेहरा दिखाये । गाँधी जी के जीवन पर बनी गांधी (GANDHI) एक उम्दा बायोग्राफिकल फ़िल्म है । 1982 में बनी रिचार्ड एटेन्बोरो (Richard Attenborough) द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म को अगर आपने नहीं देखी है तो जरूर देखिये । 188 मिनट की यह फ़िल्म आपको शुरु से अंत तक बाँधे रखने में कामयाब रहेगी । गाँधी जी के किरदार को बहुत ही उम्दा तरिके निभाया है बेन किंगस्ले (Ben Kingsley) ने । गुजराती पिता और इंग्लिश माता की संतान बेन एक इंग्लिश अभिनेता है ।
फ़िल्म की शुरुआत इस कथन से होती है-
किसी व्यक्ति का जीवन एक वर्णन में नहीं समेटा जा सकता है । ऐसा कोई तरिका नहीं है कि हर वर्ष को सही महत्व दिया जा सके और युग निर्माण में हर घटना और व्यक्ति को समुचित महत्व मिले । किया यही जा सकता है कि दस्तावेज की भावना के प्रति निष्ठा हो और मनुष्य के हृदय तक पहुँचने का कोई मार्ग निकाला जाय ।
गाँधी फ़िल्म ने आठ आस्कर पुरस्कार जीते थे । फ़िल्म की शुरुआत महत्मा गाँधी की हत्या से होती है और उसके बाद पूरी फ़िल्म अतीत की घटनाओं पर केन्द्रित हो जाती है । फ़िल्म में लगभग सारी महत्वपूर्ण घटनाओ को दिखाया गया है । नमक सत्याग्रह और चम्पारण की घटना को सुन्दरता से दिखाया गया है । वह दृश्य बहुत ही महत्वपूर्ण है जब गाँधी जी मुहम्मद अली जिन्ना से देश का प्रधानमंत्री बनने का का प्रस्ताव रखते है, जिससे विभाजन को रोका जा सके । फ़िल्म में गाँधी जी कहते है -
मेरे प्रिय जिन्ना हम एक हीं भारतमाता की संतान है, हम भाई-भाई हैं और अगर तुम्हें डर है तो मैं उसे मिटाना चाहता हूँ । मैं अपने दोस्तों से समझदारी की मांग करते हुए कहता हूँ , मैं पंडितजी से कहता हूँ कि वे रास्ते से हट जाये । मैं चाहता हूँ कि तुम भारत के पहले प्रधानमंत्री बनो, पूरी कैबिनेट खुद बनाओ और सरकार के हर विभाग का मुखिया मुसलमान को ही बनाओ ।
तब पंडित नेहरु कहते है कि-
बापू, मेरी और बाकी लोगो की ओर से अगर आप यही चाहते है तो हमें यह मंज़ूर होगा , लेकिन बाहर दंगा शुरू हो चुका है क्योंकि हिंदुओ को आशंका है कि आप ज़्यादा दे देंगे । और अगर आप ने ऐसा किया तो फिर इसे कोई नहीं रोक पायेगा, कोई नहीं ।
इसके बाद जिन्ना का यह कथन कि “अब फैसला आपके हाथ में हैं बापू । आप आज़ाद हिन्दुस्तान और आज़ाद पाकिस्तान चाहते हैं या आप गृह युद्ध चाहते हैं ?” सुन गाँधी हतप्रभ और मूक रह जाते है । इस दृश्य के बाद भारत और पाकिस्तान को स्वतंत्र होते हुये दिखाया जाता है ।
फ़िल्म के अंत में महात्मा गाँधी की अस्थियाँ गंगा में प्रवाहित की जाती हुयी दिखायी जाती है और पार्श्व से उनकी यह आवाज प्रतिध्वनित होती है -
जब भी मै निराश होता हूँ और ऐसा लगता है कि सबकुछ गलत है तब मैं याद करता हूँ कि सत्य और प्रेम की हमेशा जीत हुई है । इतिहास में ऐसे शोषक और हत्यारे भी हुऐ है जो एक समय अदम्य लग रहे थे पर अंत में उनका भी पतन हुआ । इस बात को हमेशा याद रखना ।
अगर आप फ़िल्म प्रेमी है तो आपने यह फ़िल्म जरूर देखी होगी या नहीं तो फिर देखेंगे । इस फ़िल्म से संबधित आपके अपने अपने विचार हो सकते है । आपके इन विचारों का यहाँ स्वागत है । कोई भी त्रुटि (इसकी संभावना हमेशा बनी ही रहती है) हो तो जरूर बताये ताकि लेखन में सुधार किया जा सके । इसी कड़ी में एक और नयी फ़िल्म की चर्चा लेकर वापस आऊंगा । आप सभी को नवरात्रि और ईद की हार्दिक शुभकामनायें ।
sarahaniya prayas hai..
जवाब देंहटाएंye movie sachmuch kafi acchi bani hai... maine kai baar dekhi hai..
भाई वाह क्या बात है,। ये पिक्चर वास्तव में लाजवाब है। ध्यानं दिलाने के लिए आभार।
जवाब देंहटाएंभाई फ़िल्मों का दीमक मै भी हूँ..और किस्मत की बात है कि यह फ़िल्म बस कुछ महीनो पहले ही देखने को मिली थी..बापू वैसे भी मेरे आदर्श पुरुष रहे हैं और यह फ़िल्म बापू को इनकी समग्रता और भव्य साधारणता के साथ चित्रित करती है..वह एक दृश्य जिसमे अफ़्रीका मे पुलिस के हिंसक प्रतिरोध के बीच बापू आइडेंटिटी कार्ड्स को आग के हवाले करते जाते हैं..बहुत कुछ सिखा जाता है इस विशाल व्यक्तित्व के चट्टान सरीखे द्रढ़निश्चय के बारे मे
जवाब देंहटाएं..आपकी अगली फ़िल्मो के बारे मे पोस्ट्स की प्रतीक्षा रहेगी..
bhai ! bahut achchi sameeksha . badhai!
जवाब देंहटाएंगांधीजी बहुत महान शख्सियत थे. उन्होंने बहुत महान कार्य किये. महान लोगों की छोटी गलतियाँ भी बहुत भीषण साबित होती हैं. कुछ उनके आग्रहों (या दुराग्रहों) और बहुत कुछ दूसरों की गलतफहमियों के कारण उनका नाम मजबूरी का पर्याय बन गया है. वे यकीनन सच्चे थे. अपने युग से कुछ पीछे भी थे. यह कहना तो गलत ही है की हमें आज़ादी उन्होंने दिलाई. कुछ भी हो, वे पूजनीय हैं और रहेंगे.
जवाब देंहटाएंआपकी समीक्षा से भी सहमत हूँ. यह फिल्म कई बार देख चुका हूँ. आभार आपका.
गांधी जी के बारे में बहुत जानकारियों को संग्रहित किया है .. इस ज्ञानवर्द्धक आलेख के लिए आपका धन्यवाद !!
जवाब देंहटाएंdhanyawad.
जवाब देंहटाएंtumhe hindi se muhabbat hai yahi kya kam hai?us par ye prayaas!
congs.
मैंने गाँधी फ़िल्म अभी तक नहीं देखा है पर सुना है की बहुत ही बढ़िया फ़िल्म है! आपने बहुत ही सुंदर रूप से प्रस्तुत किया है! आपके पोस्ट के दौरान अच्छी और ज्ञानवर्धक जानकारी प्राप्त हुई!
जवाब देंहटाएंThis is called a Kreative Writing from a Kreative mind!!!
जवाब देंहटाएंKeep Writing!!! :-)
Have a wonderful day ahead. :-P
आपका लेखन बहुत सार्थक है.. लिखते रहें
जवाब देंहटाएंहैपी ब्लॉगिंग
बहुत अच्छा लिखा. अगर आपने गाइड, साहब बीबी गुलाम और पाकीजा देखीं हैं तो उन पर भी कुछ लिखये.
जवाब देंहटाएंगाँधी फिल्म पर इस सार्थक चर्चा के लिए हार्दिक आभार.
जवाब देंहटाएंचन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com
चन्दन बउवा,
जवाब देंहटाएंसिनेमा हमरा सबसे प्रिय टोपिक है भाई..
उसपर से 'गाँधी' अपने ज़माने की ही नहीं हर समय के लिए यह कालजयी फिल्म है..
हर दृष्टि से यह एक सम्पूर्ण फिल्म है, कथानक, दृश्य संयोजन, sound , वेश-भूषा, अभिनय, सेट, संगीत, कैमरा, परिवेश कुछ भी ऐसा इस फिल्म में नहीं है जिसके लिए सोचा जा सकता है की ये क्यूँ है...
इस फिल को मैंने अनगिनत बार देखा है और हर बार यह नया ही लगता है...
इस फिल्म के दृश्यों की बात ही करना असंभव है क्यूंकि सभी दृश्य अभिभूत करनेवाले हैं, चाहे वो जलियावाला बाग़ हो या फिर, नमक पदयात्रा, या फिर साउथ अफ्रीका में लोगों का अपना पहचान पात्र जलाना..
चन्दन यह तुमने बहुत ही अच्छी शुरुआत की है ...
हिंदी अंग्रेजी दोनों फिल्मो को शामिल करो,
कुछ बहुत ही अच्छी अंग्रेजी फिल्में हैं..
escape from alcatraz
The Shawshank Redemption
all the good men
Murder at 1600
fugitive
crimson tide
The Wedding Planner
enough
sleeping with the enemy
Father of the Bride
और न जाने कितने....
मैं तुम्हारे साथ हूँ बउवा..
बहुत खूब समीक्षा. लेखन सार्थक नहीं परम सार्थक है. आपकी पैनी समीक्षा देख एक सुझाव है, फिल्म / किताब समीक्षा पर एक स्वतंत्र ब्लाग क्यों नहीं बनाते .
जवाब देंहटाएंफिल्में नहीं देखीं, पर एटेनबरा की फिल्म तो देखी है। पूरी तरह बांध लेने वाली फिल्म!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएंपहली टिप्पणी त्रुटि वश हो गयी थी, इसलिए मिटा दी है।
जवाब देंहटाएंगांधी फिल्म मैंने आज से ११ साल पहले देखी थी, वाकई वह एक लाजवाब फिल्म है।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
भाई चन्दन जी....एक बढिया फ़िल्म की चर्चा आपने की....साधुवाद..
जवाब देंहटाएंक्या यह इस देश का दुर्भाग्य नहीं है....कि राष्ट्रपिता पर सर्वश्रेष्ट फ़िल्म विदेशीयों ने बनायी...हम विश्व में सर्वाधिक फ़िल्में बनाने वाले राष्ट्र है.??