मंगलवार, 24 नवंबर 2009

आधुनिकता बनाम प्रकृति

आज एक पुरानी कविता प्रस्तुत कर रह हूँ । इस अनगढ़ सी कविता की रचना उस समय की थी जब मैं दसवीं की कक्षा में था ।

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हाय विधाता !!!!!

यह क्या ?

अपनों-अपनों के बीच रण,

दुर्भाग्य हीं है यह मनुष्य का,

उसने हीं तोड़े प्रकृति के सारे नियम ।

 

अपने स्वार्थ के लिये,

रण करता है वह बार-बार ।

क्या होगा इस सृष्टि का,

होता है आज भाई-भाई के बीच वार ।

 

अपने स्वार्थ के लिये,search

खो देता है वह नीति न्याय,

करता है रण वह दिन-रात,

जब तक न बुझे उसकी प्यास ।

 

हो जाता है वह,

अपनों के रक्त का प्यासा ।

पर क्षुधा शांत नहीं होती उसकी,

इतने से-

वह महाप्रलय को लाता है,

वह महाकाल बन जाता है  ।

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माता-पिता, भाई बन्धु ,

सभी को खा जाता है ।

अपनी भूख मिटाने के लिये,

वह क्या नहीं कर जाता है ।

मर जाता है, मार देता है,

मरकर भी शांत न होता है ।

करके जाता है वह,

विनाश के साधन को तैयार ।

जो पल भर में, मचा देता है,

सृष्टि में हाहाकार ।2005-04-10-1920x1200

 

बम के एक धमाके से,

लाखों की जान चली जाती है ।

कौवें गिद्ध झपट पड़ते है,

लाखों सड़े-गले लाशों पर ।

 

मानव के इस क्रूर कर्म से,

प्रकृति घबरा जाती है,

अपना संतुलन खो जाती है ।three-mile-island

नहीं क्षमा करती वह मानव को,

विकराल रूप धारण कर,

अट्टाहस करके आती है,

वह महाप्रलय को लाती है ।

और फिर अब-

लाखों की जान चली जाती है ।

प्रकृति से जब-जब खिलवाड़ करता मानव,

तब-तब वह घोर बबंडर लाती है ।

 

आज मानव प्रकृति को देता है नकार,

विनाश के साधन को करता है तैयार,

जो पल भर में मचाता है,

पृथ्वी पर क्रूर हाहाकार ।

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क्यों प्रकृति के प्रति इतना विकर्षण ?

क्यों आधुनिकरण के प्रति इतना लगाव ?

 

मानव –मानव में प्रेम सदा,

करता है मानवता का विकास ।

दुर्भाग्य नहीं सौभाग्य है यह,

जब मानव करता अपना चरम विकास ।

पर रहे ध्यान सदा इसका,

इस विकास के नशे में,

हो न प्रकृति का नाश ।2005-05-13-1920x1200

वरन होगा अगर प्रकृति का नाश,

तो एक न एक दिन -

अवश्य हो जायेगा मानव सभ्यता का सर्वनाश ।।

 

(7 सितम्बर 1999)

8 टिप्‍पणियां:

  1. सलाम करता हूँ ... कक्षा १० के चन्दन को ...
    जिसके विचार इतने प्रौढ़ हैं ...
    इश्वर करे सबके जीवन में यही बचपना लौट आये ...
    बहुत खूब ... ...

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  2. इस विकास के नशे में,

    हो न प्रकृति का नाश ।

    वरन होगा अगर प्रकृति का नाश,

    तो एक न एक दिन -

    अवश्य हो जायेगा मानव सभ्यता का सर्वनाश ।।


    -उम्दा संदेश....काश!! हम सब समझें इसे!!

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  3. बहुत सही चिंतन चन्दन.
    यह दसवीं कक्षा का चन्दन था उस चन्दन को सलाम!
    अब के चन्दन को उस पर कार्य भी करना चाहिए.
    ईश्वर तुम्हें शक्ति प्रदान करें..
    चिंतन और कर्म सही दिशा में , जीवन सार्थक हो जाता है ....
    God Bless You.....

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  4. ह्म्म
    पूत के पाँव चन्दन के पालने मे भी दिख जाते हैं..

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  5. १० वीं में भी आप धमाकेदार लिखता थे ... बहुत लाजवाब रचना है ...

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  6. nahin main kisi bhi tippanikar se sahmat nahin is kavita ka sahi sampadan karke post kariye.. ek kavi ki chahe jo bhi umr ho par uske pas har umr ka man hota hai jo ki aapke pas dasvin kaksha mein bhi tha ... lekin kavita ki trash bahut jaroori hai bhai

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