शनिवार, 20 फ़रवरी 2010

कुछ और सँवर गये होते

 

दीदी “समता” की एक रचना-

 

 

फूल

बीते दिनों को याद करते है हम,

वक्त कुछ कम न था,

ओह !!!  कुछ और सँवर गये होते ।

हँसी जो ठहाको में बदल जाती थी,

मगर थी सूखी और बेवजह की,

कुछ वजह होती और मुस्करा लिये होते,

कुछ और सँवर गये होते ।

राहें सुनसान थी मेरी,

मगर एहसास था सुहानेपन का,

काश कुछ समझ होती,

दो चार फूल खिला लिये होते,

कुछ और सँवर गये होते ।

चाँदनी भी निकलती थी अकसर,

हम अँधेरे से खुश थे,

काश, अँधेरे को चाँदनी बना लिये होते

कुछ और सँवर गये होते ।

जब कभी सोचा भी, वह स्वार्थ था, 

न परोपकार था, न आदर्श,

काश हम औरो को समर्पित हो गये होते,

कुछ और सँवर गये होते ।

 

(समता झा)

15 टिप्‍पणियां:

  1. काश हम औरो को समर्पित हो गये होते,

    कुछ और सँवर गये होते ।nice

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  2. काश हम औरो को समर्पित हो गये होते,

    कुछ और सँवर गये होते


    आपकी दीदी “समता” की बहुत अच्‍छी रचना है ये .. उन्‍हें शुभकामनाएं !!

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  3. चाँदनी भी निकलती थी अकसर,

    हम अँधेरे से खुश थे,

    काश, अँधेरे को चाँदनी बना लिये होते

    कुछ और सँवर गये होते ।

    क्या बात है...बड़ी ख़ूबसूरत ढंग से मनोभावों को व्यक्ति किया है

    तुम्हारी समता दीदी तो बहुत सुन्दर लिखती हैं...उन्हें मेरी शुभकामनाएं देना..

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  4. समता जी की रचना बहुत पसंद आई.

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  5. हर रंग को आपने बहुत ही सुन्‍दर शब्‍दों में पिरोया है, बेहतरीन प्रस्‍तुति ।

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  6. समता जी की रचना बहुत पसंद आई......सुन्दर रचना.........

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  7. सही कहती हैं आपकी दीदी - दूसरों का ध्यान ही चरित्र निखार का रास्ता है।

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  8. जब कभी सोचा भी, वह स्वार्थ था,

    न परोपकार था, न आदर्श,

    काश हम औरो को समर्पित हो गये होते,

    कुछ और सँवर गये होते ।
    अच्‍छी रचना है।

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  9. निकल गए सब कांटे लेकिन घाव हरा
    आशंकाओ से मेरा मन रहता डरा डरा.
    किन्तु मन मे फिर भी जीवित आशा है
    शायद यही प्रीत की चिर परिभाषा है.
    Samataji kee bahut sundar rachana pesh kee hai!
    Holi mubarak ho!

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  10. जब कभी सोचा भी, वह स्वार्थ था,
    न परोपकार था, न आदर्श,
    काश हम औरो को समर्पित हो गये होते,
    कुछ और सँवर गये होते ।

    बीते दिनों को याद करते है हम,
    वक्त कुछ कम न था,
    ओह !!! कुछ और सँवर गये होते

    समता दीदी की रचना मे मुझे आत्मसुझाव दिखलाइ परा . धन्यावाद चन्दन .

    वाकए .....बीते दिनों को याद करते है हम,
    वक्त कुछ कम न था.... ओह !!!  कुछ और सँवर गये होते.....

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  11. आपको और आपके परिवार को होली पर्व की हार्दिक बधाइयाँ एवं शुभकामनायें!

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  12. आपकी दीदी “समता” की बहुत अच्‍छी रचना है ये .. उन्‍हें शुभकामनाएं !!

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