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रविवार, 10 मई 2009

रेगिस्तान

देखा हुआ सच,
किनारे से किनारे तक,
दूर तक फ़ैला हुआ

रेत की तरह,
शुष्क
तपती धूप में जलता हुआ

किसे पता है यह सच,
जो किसी को नही पता

मुझे पता है
मुझे मालूम है

दूर तक जाना है मुझे,
इन प्रतिबिंबो पर पैर रखते हुए
क्या टिके रहेगे मेरे पांव,
इन आधारो पर

क्योकि फ़ैल रहा है यह,
रेगिस्तान