सोमवार, 4 मई 2015

विवश आदमी


झुकाता है शीश । 

खूंटे को ही समझता  है
अपना ईष्ट  ।

आँखो पर पट्टियाँ बांधे
लगातार बार -  बार
कोल्हू के बैल की तरह
लगाता  चक्कर  ।

सभ्यता के खूंटे में बंधा
विवश आदमी  ।



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बुधवार, 29 अप्रैल 2015

इश्क की ख़ुशबू



तेरे इश्क की ख़ुशबू

मेरे साँसों में बसती है

कि अपनी रूह से पूछो

मिटा कर खाख कर डाला

खुद को इश्क में तेरे ।











शनिवार, 25 अप्रैल 2015

गजेन्द्र


गजेन्द्र गए तुम ऊपर
वाल पर चढ़ गया एक और स्टेटस

- इंक़लाब ज़िंदाबाद । 

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गजेन्द्र बढ़ो आगे अब तुम
ठेल - ठाल चढ़ जाओ सूली

 - जय जवान जय किसान ।

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प्राण दिए व्यर्थ ही
गजेन्द्र गए बिना अर्थ ही

- दिल्ली चलो दिल्ली चलो  ।

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महान मेरा तंत्र यह
गजेन्द्र सुनो मंत्र यह

- तुम मुझे रक्त दो मैं तुम्हें लोकतंत्र  दूँगा ।


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सोमवार, 20 अप्रैल 2015

दूरी आदमी - आदमी के बीच की

आदमी को देखो

चाँद पर चला गया है वह ।

और कहता है

उससे भी आगे जाने की

फिराक में है वह ।

उसके दूत निकल चुके  है

अंतरिक्ष की अनंत सैर  को

पृथ्वी और सूर्य की

संधी से बाहर

असीम संभावनाओं  की तलाश में ।

प्रकाश की गति को

प्राप्त कर लेना चाहता है आदमी

और वह सफल भी होगा  ।

बस आदमी और आदमी का विज्ञान

नहीं कर पाया तय दूरी

आदमी - आदमी के बीच की ।


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बुधवार, 15 अप्रैल 2015

समय की स्याही

वह धोता है अपनी तलवार

रक्त की ऊष्मा से ।

वह चुनता है सत्य को

ताकि समय की स्याही

उसे याद रख सके  ।

किन्तु बच नहीं पाता वह भी

समय द्वारा

खण्डहर होने से  ।