बुधवार, 17 मार्च 2010

सुबह तक

सुबह तक मुझे पसंद नहीं

सूरज का डूबना ।

न जाने कौन सी

एक आग

अन्दर हीं अन्दर

जलती रहती है ।

कण- कण

पिघलता जाता हूँ

सुबह तक

कहाँ बच पाता हूँ । 

26 टिप्‍पणियां:

  1. पंक्तियों का सार अत्यंत मनोहर है

    जवाब देंहटाएं
  2. Eyes bhi bird, nose bhi bird and lips bhi...
    sirf bird se itni khubsurat chitr ki rachna.
    wonderful! who make this pic.

    जवाब देंहटाएं
  3. Mere paas alfaaz nahi...ye chhoti-si rachana,na jane kya,kya kah gayi...!

    जवाब देंहटाएं
  4. छोटी सी उम्र में अच्छा कह लेते हो, चन्दन .....हमारी दुआए आपके साथ हैं , हमेशा चन्दन बनकर महको

    जवाब देंहटाएं
  5. aapne to ek rekha chitra ankit kar diya..bahut badhiya..

    http://samvedanakeswar.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  6. "कविता में भी आग है........"
    प्रणव सक्सैना
    amitraghat.blogspot.com

    जवाब देंहटाएं
  7. वाकई चंदन जी
    कविता के भाव तो सुन्‍दर हैं ही साथ ही तस्‍वीर भी जो लगता है कुछ कह रही हो।

    जवाब देंहटाएं
  8. chandan aap bhut achhe kavita likhte ho me in kavitao ki kadre karta hu inme bhut sarthakata chhpe hai.

    जवाब देंहटाएं
  9. कम पंक्तियों मे कई अकथनीय बातें कह दी हैं..सूरज सा जलना और रात भर पिघलना..किसी असहनीय जलन का हेतु होता है..ऐसा लगा

    जवाब देंहटाएं
  10. वाह, कमाल का लिखा है दोस्त.. चिट्ठाचर्चा मे भी इसकी चर्चा पढी थी.. beautiful..

    जवाब देंहटाएं
  11. aapakaa lekhana hRudaya sparshee hai|bahuta-bahuta shubhakaamanaaeM!

    जवाब देंहटाएं
  12. वाह अद्भुत सुन्दर रचना! शानदार!

    जवाब देंहटाएं
  13. बहुत सुन्दर लिखा...आपका स्वागत है.
    ----------------------
    "पाखी की दुनिया" में इस बार पोर्टब्लेयर के खूबसूरत म्यूजियम की सैर

    जवाब देंहटाएं
  14. अनुपम रचना .... बेहद कमाल का लिखा है ...

    जवाब देंहटाएं
  15. Kan-kan pighal jaata hoon!
    Subah tak kahan bach paata hoon!
    Kya baat hai, maan na padega!!!
    Aur jo bimb istemaal kiya hai, kaabil-e-taareef!

    जवाब देंहटाएं
  16. कई बार हम सच में कुछ चाह के भी नहीं कह पाते.छोटी सी आपकी कविता गहरी बातें करती है.

    जवाब देंहटाएं