मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

अंत में

मैनें देखा नहीं है,

उगते हुए सूरज को वर्षों से ।

छिपकर बैठा है,

प्राचीन शैतान !!!

कोशिश करता हूं जब भी…

कि अपनी आंखे खोलूं,

नींद में डूब जाता हूं मैं ।  

देखता हूं जब भी,

दूर से आते हुए प्रकाश को,

और फ़िर,

विकृत और सिमटते हुए प्रतिबिंब को,

सच की तलाश में जुट जाता हूं मैं ।

मेरी तरह,

कई लोगो नें,

देखा नहीं है उगते हुए सूरज को,

वर्षो से ।

और हम मान बैठे है….

हमें बचा लिया जायेगा ।

6 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत लम्बे अंतराल के बाद दर्शन हुए हैं आपके ...

    कविता बहुत कुछ कह रही है ...जिंदगी की आपाधापी में मनुष्य इतना खो गया है कि वह प्रकृति के सानिध्य से दूर हो गया है।

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  2. मेरी तरह,
    कई लोगो नें,
    देखा नहीं है उगते हुए सूरज को,
    .
    .
    .
    और हम मान बैठे है….
    हमें बचा लिया जायेगा ।
    यकीनन बचा लिया जायेगा, पर बचाने वाले हम खुद होंगे

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  3. ..बहुत संवेदनशील और भावपूर्ण प्रस्तुति..

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  4. चंदन कुमार झा जी जन्मदिन की शुभकामनाएँ!!

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  5. नववर्ष 2013 की हार्दिक शुभकामनाएँ... आशा है नया वर्ष न्याय वर्ष नव युग के रूप में जाना जायेगा।

    ब्लॉग: गुलाबी कोंपलें - जाते रहना...

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