“साहब सौ रुपये चाहिये !!!”
अपने झोले से खाली बोतल निकालकर मेरे सामने कर दिया उसने |
“साहब घर में तेल खत्म हो गया है, खाना नहीं बना अभी तक” |
रात के करीब नौ बज रहे थे |
“अरे अभी कल ही तो सौ रुपये दिये थे, सफाई के”
“वो तो खर्च हो गये”,
“सामान कितना मंहगा हो गया है साहब” |
“ठीक है, दारू – वारू तो नहीं पी लोगे ?”
“नहीं नहीं साहब” – जीभ काटकर उसने कहा |
सौ का नोट निकालकर उसके हाथ में रख दिया गया |
उसकी आँखें चमकी |
“पर देखो रविवार को आकर सफाई कर जाना” |
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“सिर्फ पचास रुपये देने थे उसे भाई”
“हाँ ! लेकिन पूरा घर साफ किया था उसने यार, और बाईक भी धुलवाई थी”
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“अरे तुम तो आते ही रह गये ?, दो महीने से घर गंदा पड़ा है”
“इस रविवार को पक्का आ जाना”
“हाँ साहब जरूर आऊँगा ”|
“अपना मोबाईल नम्बर बताओ”
अपने सारे दाँत बाहर निकाल दिये उसने – “साहब मोबाईल कहाँ है अपने पास”
“अच्छा ! – रविवार को जरूर आ जाना”
सौ रुपये की बात नहीं कर पाया उससे |
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अभी जब कमरा साफ करने लगा तो उसकी याद आ गयी या सौ रुपये ने उसकी याद दिला दी |
महाशिव रात्रि की हार्दिक शुभकामनाएँ
जवाब देंहटाएंउनका संबंध याद रखे रहियेगा, मस्तिष्क में, हृदय में न उतारियेगा।
जवाब देंहटाएंमजबूरी या सच में नहीं पूछना था ...
जवाब देंहटाएंअर्थपूर्ण अभिव्यक्ति ...
आपका ब्लॉग मुझे बहुत अच्छा लगा, और यहाँ आकर मुझे एक अच्छे ब्लॉग को फॉलो करने का अवसर मिला. मैं भी ब्लॉग लिखता हूँ, और हमेशा अच्छा लिखने की कोशिस करता हूँ. कृपया मेरे ब्लॉग पर भी आये और मेरा मार्गदर्शन करें.
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