बुधवार, 29 जुलाई 2009
भूत, भविष्य और वर्तमान
जब मैनें अपने,
भूत को रोता हुआ,
और भविष्य को लापता पाया,
तब मैनें अपने वर्तमान को जगाया ।
काफी ना-नुकुर के बाद वह तो उठा,
पर तब तक तीनों,
गुत्थम-गुत्थ हो चुके थे ।
एक ने दूसरे को नीचा दिखलाया,
दूसरे ने स्वयं को सबसे बड़ा बतलाया,
तीसरा,
एक उँचे टीले पर खड़ा हो गया,
और चिल्लाने लगा,
मैं किसी की भी नहीं सुनुँगा,
देख लो तुम लोग,
मैं सबसे बड़ा हूँ ।
जब तीनो लड़ते-लड़ते थक गये,
तो मेरे पास आये,
फैसला करवाने ।
अपने छ्ह हाथों से,
तीनों ने मेरा गला दबाया,
कहा,
जल्दी से बताओ,
कौन है बड़ा हममें ।
किसी तरह गला छुड़ाकर,
मैं भाग खड़ा हुआ ।
काफी देर भागने के बाद,
पीछे मुड़कर जब मैनें देखा,
जहाँ से मैं भागा था,
अपने आप को वही खड़ा पाया ।
तब तक,
वर्तमान सो चुका था,
भविष्य लापता था,
और भूत रो रहा था ।
मैं पुनःवर्तमान को,
जगाने की तैयारी में जुट गया ।
शनिवार, 25 जुलाई 2009
मंजिल की तलाश

आज मैं अपनी जिन्दगी की बहुत बड़ी खुशी आप लोगों के साथ बांटना चाहता हूं । 23 जुलाई को मेरा चयन IOCL (Indian Oil Corporation Limited) में हो गया। ऐसा बन्धु-बान्धवों और आप सभी लोगों के आशिर्वाद के कारण हो सका । मैं अभी चतुर्थ वर्ष (safety and fire engineering) का छात्र हूं ।अपने सभी मित्रों के लिये मैं ईश्वर से सफलता की कामना करता हूं और उनके लिये दो पंक्तियां................
ऐ मित्र !
क्यों भटक रहे हो,
मंजिल की तलाश में ।
मंजिल ?
मंजिल तो तुम्हारे सामने है,
फिर क्यों भटक रहे हो तलाश में ।
कायरता त्यागो,
लकीर के फ़कीर मत बने रहो,
जगाओ अपने पुरूषत्व को,
सारे पंच तत्व है तुममें ।
बस !
एक बार देखो कोशिश करके,
अम्बर झुक जायेगा ,
कदमों में तुम्हारे ।
तुम्हीं हो नभ के तारे,
तुम्हीं हो वसुंधरा के पुत्र ।
गर्व करेगा सारा जनमानस,
ऐ भारत के धीर वीर ।
(22 जून 1999)
-चन्दन कुमार झा
मंगलवार, 21 जुलाई 2009
जीवन निर्झर
क्यों मौन खड़े हो बतलाओ ?
क्यों रुके हुये हो समझाओ ?
क्या सुर्य - पवन - जल रुकते भय से ?
जीवन निर्झर सरिता स्वरूप,
यह बहता जल है स्वच्छ सरल ।
आरम्भ करो नूतन-नवीन,
रुकना कैसा तुम वीर सबल ।
तोड़ो कारा, तोड़ो प्रस्तर,
प्रारम्भ तुम्हारा उज्जवल है।
माना बाधायें कम भी नहीं,
पर है असीम उत्साह तेरा ।
तुम करो प्रहार भीष्ण बल से,
तब द्वार खुलेंगे जीवन के ।
संगीत सुधा अविरल बहता,
है जीवन यह निश्चय चलता ।
जीवन निर्झर सरिता स्वरूप,
यह बहता जल है स्वच्छ सरल ।
मंगलवार, 30 जून 2009
तीन बन्दर
कल मेरे गांव में कुछ बन्दर आये थे।
कुछ ने रंग बिरंगी टोपियां पहन रखी थी,
कुछ ने चमकदार घड़िया,
और कुछ पहने हुए थे
काफी चुस्त पतलून।
अपने स्वभाव के विपरीत
वे बहुत शांत दिख रहे थे।
मैंने उन तीन ऐतिहासिक बन्दरों को
पहचानने की बहुत कोशिश की,
क्योंकी भविष्यवाणी हुई थी ,
वे तीन बन्दर फिर से अवतार लेंगे।
झुंड में एक ऐसा बन्दर भी था,
जो थोड़ा अलग दिख रहा था।
पूछ ताछ के बाद पता चला कि यह बन्दर,
गूंगा, बहरा और अन्धा है।
पर आश्चर्य की बात,
यह अपाहिज बन्दर उस दल का नेता था।
जब मैंने कोशिश की,
इस बन्दर के पास जाने की,
तीन बन्दरो ने मेरा रास्ता रोक लिया।
पहले ने दूसरे को इशारा किया
दूसरे ने मेरे दोनों गालो पर
दो जोड़दार थप्पर जड़ दिये।
अपना दूसरा गाल बढाने का
मौका तक नहीं दिया।
तीसरे ने अपने चमकदार,
दूध की तरह सफ़ेद दांत दिखला दिये।
शायद किसी मंहगे टूथपेस्ट से ,
मुंह धोता होगा वह।
ये तीन बन्दर,
उस अपाहिज बन्दर के अंगरक्षक थे।
और शायद तीन अवतार भी।
कुछ ने रंग बिरंगी टोपियां पहन रखी थी,
कुछ ने चमकदार घड़िया,
और कुछ पहने हुए थे
काफी चुस्त पतलून।
अपने स्वभाव के विपरीत
वे बहुत शांत दिख रहे थे।
मैंने उन तीन ऐतिहासिक बन्दरों को
पहचानने की बहुत कोशिश की,
क्योंकी भविष्यवाणी हुई थी ,
वे तीन बन्दर फिर से अवतार लेंगे।
झुंड में एक ऐसा बन्दर भी था,
जो थोड़ा अलग दिख रहा था।
पूछ ताछ के बाद पता चला कि यह बन्दर,
गूंगा, बहरा और अन्धा है।
पर आश्चर्य की बात,
यह अपाहिज बन्दर उस दल का नेता था।
जब मैंने कोशिश की,
इस बन्दर के पास जाने की,
तीन बन्दरो ने मेरा रास्ता रोक लिया।
पहले ने दूसरे को इशारा किया
दूसरे ने मेरे दोनों गालो पर
दो जोड़दार थप्पर जड़ दिये।
अपना दूसरा गाल बढाने का
मौका तक नहीं दिया।
तीसरे ने अपने चमकदार,
दूध की तरह सफ़ेद दांत दिखला दिये।
शायद किसी मंहगे टूथपेस्ट से ,
मुंह धोता होगा वह।
ये तीन बन्दर,
उस अपाहिज बन्दर के अंगरक्षक थे।
और शायद तीन अवतार भी।
रविवार, 10 मई 2009
रेगिस्तान
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