शनिवार, 17 अक्टूबर 2009

दीपावली

मैं तम से भरा अज्ञानी मां

एक दीप जला दो जीवन में मां

मन के कपाट मेरे बन्द है मां

मेरा मार्ग प्रकाशित कर दो मां ।

 

एक ज्योति जला दो जीवन में

फैला दो उजाला जीवन में

है सघन अंधेरा जीवन में

कुछ रंग भर दो इस जीवन में ।

खिले फूल कमल सा सबका जीवन

महकें फूलों सा यह मन उपवन

फैले दूर दूर तक ज्ञान की हरियाली 

भर दे प्रकाश जीवन में सबके दीपावली ।

 

 

(आप सभी को दीपावली पर्व की अनेको अनेक शुभकामनायें  !!!)

गुरुवार, 15 अक्टूबर 2009

ऐसा क्यों होता है ?

 

कम नहीं था

वह प्रेम

जो दिया मैंने तुमको ।

माना कि

तुम्हारी कुछ मजबूरियाँ थी ।

पर

चाहती थी मैं भी

सबकुछ बांटना

तुम्हारा दुःख- सुख

और तुम्हारा द्वन्द ।

मानते हो  न तुम

कि

अधिकार था यह मेरा ।

पर तुम्हारा अहम

और तुम्हारी मजबूरी ।

तुम्हारी मजबूरियों से लदे

कंधे पर अपना सिर

रख न पायी मैं

रो न पायी मैं ।

मेरे गर्म आंसू

पिघला न पाये

तुम्हारे जमें हुए खून को ।

शायद यह तुम्हारी महानता थी

या कुछ और ।

अभिशप्त है मेरा जीवन

तुम्हारे इस झूठ को

जीने के लिये ।

माना कि

तुम्हारी परिधि से टूटकर

मै पूर्ण न हो पायी

पर यह सोचो

कितने अकेले

कितने विकल हो

तुम भी

आज तक ।

रह गयी अधूरी मैं

और अधूरे तुम भी

आज तक ।

रविवार, 11 अक्टूबर 2009

मेरे होने का मतलब

 

जिन्दगी की प्रयोगशाला में  बहुत सारे प्रयोग चलते रहते हैं । कुछ मेरे अंदर  चल रहे है । कुछ आपके अंदर भी चल रहे होंगे । देखते है ये प्रयोग सफल होते है की नहीं । वैसे  इन प्रयोगों के बिना जीवन का बहुत अर्थ भी नहीं । सफलता और असफलता तो आनी जानी रहती है । आत्मा तो बस चलने में है, निर्विकार, निर्भीक और निर्विरोध !!!!

(गाजर के फूल)

रात सिमटती गयी,

दिन निकलता गया,

रंग भरते गये,

मैं निखरता गया ।

संग तेरा जो पाया,

तो लौ जल गयी,

रौशनी मेरे अंदर,

भरती ही गयी ।

 

तुम हीं तुम हो यहाँ 

मैं कहीं भी नहीं,

मेरे होने का मतलब,

तुम ही तो नहीं ।

शुक्रवार, 9 अक्टूबर 2009

तूफान के बाद !!!

 

 

 

 

 

 

 

 

देखा तो बरसात हुई थी,

बाहर सबकुछ भींग चुका था,

अन्दर अभी भी सूखा था,

आँखे अभी भी गीली हैं ।

बुधवार, 7 अक्टूबर 2009

फूल का कहना सुनो

 

 

 

 

(चित्र- भैया रावेंद्रकुमार रवि)

 

 

 

 

 

फूल का कहना सुनो

यह कहता कुछ नहीं

पर

तुम सुन सकते हो

सबकुछ ।

उल्लास, प्रेम, करुणा, दर्द

सबकुछ ।

तुम सुन सकते हो

जीवन के हर क्षण

रंगों का कण-कण

तुम सुन सकते हो

सबकुछ ।

तुम देख सकते हो

इसमें जीवन का

असीम सौंदर्य ।

फूल

बगीचे में खिला हो

या फिर

खिला हो

किसी ऊँचे दरख्त पर ।

या फूल हो जंगली

फूल तो फूल है ।

यह खिल जाता है कहीं भी

चाहे

कांटे, कीचड़ और पहाड़ हो

या फिर हो शुष्क रेत

यह खिल जाता है ।

जीवन की मुस्कान लिये

इसलिये

फूल का कहना सुनो ।

सुनो

चुपचाप सुनो………

 

 

(बहुत ही हर्ष के साथ सूचित करना चाहता हूँ कि मेरे ब्लाग ‘गुलमोहर का  फूल’ की समीक्षा 4 अक्टूबर को iNext हिन्दी समाचार पत्र में ‘गुलमोहर की छांव’ नामक शीर्षक से प्रकाशित हुई थी । समीक्षा करने के लिये मैं आदरणीय श्रीमती प्रतिभा कटियार जी का हृदय से आभारी हूँ । मैं सभी सम्माननीय ब्लागरों एवं प्रिय मित्रों को हृदय से धन्यवाद प्रस्तुत करना चाहता हूँ जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय देकर मेरा उचित मार्गदर्शन किया और मुझे अपार मानसिक शक्ति प्रदान की । मैं श्रीमान बी एस पाबला जी का आभारी हूँ जिन्होनें इस समाचार को अपने ब्लाग प्रिंट मीडिया पर ब्लाग चर्चा पर प्रकाशित किया । अगर मैं आप सभी शुभचिंतको का नाम लिखकर आभार प्रकट करूं तो सूची बहुत लम्बी हो जायेगी अतः इसके लिये मुझे क्षमा करें । एक बार पुनः आप सभी को कोटि-कोटि धन्यवाद)