शुक्रवार, 9 अक्तूबर 2009

तूफान के बाद !!!

 

 

 

 

 

 

 

 

देखा तो बरसात हुई थी,

बाहर सबकुछ भींग चुका था,

अन्दर अभी भी सूखा था,

आँखे अभी भी गीली हैं ।

बुधवार, 7 अक्तूबर 2009

फूल का कहना सुनो

 

 

 

 

(चित्र- भैया रावेंद्रकुमार रवि)

 

 

 

 

 

फूल का कहना सुनो

यह कहता कुछ नहीं

पर

तुम सुन सकते हो

सबकुछ ।

उल्लास, प्रेम, करुणा, दर्द

सबकुछ ।

तुम सुन सकते हो

जीवन के हर क्षण

रंगों का कण-कण

तुम सुन सकते हो

सबकुछ ।

तुम देख सकते हो

इसमें जीवन का

असीम सौंदर्य ।

फूल

बगीचे में खिला हो

या फिर

खिला हो

किसी ऊँचे दरख्त पर ।

या फूल हो जंगली

फूल तो फूल है ।

यह खिल जाता है कहीं भी

चाहे

कांटे, कीचड़ और पहाड़ हो

या फिर हो शुष्क रेत

यह खिल जाता है ।

जीवन की मुस्कान लिये

इसलिये

फूल का कहना सुनो ।

सुनो

चुपचाप सुनो………

 

 

(बहुत ही हर्ष के साथ सूचित करना चाहता हूँ कि मेरे ब्लाग ‘गुलमोहर का  फूल’ की समीक्षा 4 अक्टूबर को iNext हिन्दी समाचार पत्र में ‘गुलमोहर की छांव’ नामक शीर्षक से प्रकाशित हुई थी । समीक्षा करने के लिये मैं आदरणीय श्रीमती प्रतिभा कटियार जी का हृदय से आभारी हूँ । मैं सभी सम्माननीय ब्लागरों एवं प्रिय मित्रों को हृदय से धन्यवाद प्रस्तुत करना चाहता हूँ जिन्होंने अपना बहुमूल्य समय देकर मेरा उचित मार्गदर्शन किया और मुझे अपार मानसिक शक्ति प्रदान की । मैं श्रीमान बी एस पाबला जी का आभारी हूँ जिन्होनें इस समाचार को अपने ब्लाग प्रिंट मीडिया पर ब्लाग चर्चा पर प्रकाशित किया । अगर मैं आप सभी शुभचिंतको का नाम लिखकर आभार प्रकट करूं तो सूची बहुत लम्बी हो जायेगी अतः इसके लिये मुझे क्षमा करें । एक बार पुनः आप सभी को कोटि-कोटि धन्यवाद)

शनिवार, 3 अक्तूबर 2009

प्रेम का यह गीत, केरल में बरसात और गाय

अभी अभी जैसे हीं घर के बरामदे की बत्ती जलाई कि एक गाय उठकर खड़ी हो गयी और उसके पीछे उसका बच्चा भी था । अभी यहाँ केरल में तीन दिनों से झमाझम बरसात हो रही है । यहां बैठा मैं पोस्ट लिख रहा हूँ और बाहर वर्षा में  नारियल, केले, कटहल और काली मिर्च के पौधे बेतहासा झूम रहे है । बरामदे की बत्ती जलाते ही गाय डर कर खड़ी हो गयी । बरसात से बचने के लिये वह यहाँ आकर बैठ गयी थी पर उसका बच्चा बाहर भींग रहा था । मोबाईल कैमरे से मैनें कुछ चित्र भी ले लिये । रसोई से एक रोटी लाकर, आधी रोटी गाय को खिलायी और और जैसे हीं दूसरी आधी रोटी बच्चे को खिलाने की कोशिश की, कि दोनों भाग खड़े हुए । अब दोनों बाहर बरसात में भींग रही होंगी । इसका पाप भी  मेरे सिर ही जायेगा । एक पाप और सही ।

आज शाम में माँ से बात हुई थी । गांव में वर्षा नहीं हो रही है । पता नहीं खेतों में खड़े धान के पौधों पर क्या बीत रही होगी । गृहस्थ मर रहा है । इन्द्र देवता की मेहेरबानी देखिये । जब भी गांव जाता हूँ मैं, वर्षों से एक नहर बनते देखता हूँ । जब से होश संभाला है, करीब 15 वर्ष से देख रहा हूँ, यह नहर बन हीं रही है । पता नहीं इस नहर का पानी कब खेतो में पहुँचेग़ा । पर किसान है कि हार नहीं मानता । भूखे पेट भी वह जी हीं रहा है । उसके बच्चे स्कूल नहीं जाते हैं । पता नहीं कैसा समाज बन रहा है या बना रहे है हम ।

प्रेम का यह गीत

फूल से लदे धान के पौधे

कंठ तक पानी से भरे खेत ।

प्रेम का यह गीत

बस तुम्हारे लिये है

तुम्हारे लिये………

ओ मेरे देश के

हजारों हजार

श्रमजीवी, कर्मयोद्धा, भूमिपुत्र

बस तुम्हारे लिये ।

नहीं गा सकता

यह गीत हर कोई ।

यह गीत उनका है

जो हर दिन मरते हैं

और

फिनिक्स पक्षी की तरह

जी उठते हैं

अपनी ही राख से ।

सोमवार, 28 सितंबर 2009

असमंजस

 

 

तुम हँसती हो

और

हजार – हजार फूल खिल जाते हैं

मेरे जीवन में ।

तुम रोती हो

और

फैल जाता है  अँधेरा

दूर -  दूर तक

मेरे जीवन में ।

और

जब तुम चुप रहती हो

निर्वात से भर जाती है

मेरी आत्मा ।

न जाने तुम

क्या चाहती हो ?

शुक्रवार, 25 सितंबर 2009

टोपीयां

 

 

 

बहुत हीं शांत, सौम्य और सज्जन

पुरुष थे वे लोग ।

और

पहने हुए थे

सच से भी ज्यादा

साफ़ और स्वच्छ कपड़े ।

लोगों को पहनाया करते थे

अपनी सफ़ेद टोपीयां ।

लोग आज भी

टोपीयां पहने हुए

पाये जाते है ।

 

 

 

                           (तस्वीर http://ngodin.livejournal.com से ली गयी है)