
मैं स्वच्छंद गगन का पंछी
सारा आकाश हमारा है
नये पंख से नये स्वरो से
प्रकृति ने हमें संवारा है
सारा आकाश हमारा है।
उस नये खगों को देखो तुम
मचल मचल सर पटक पटक
नये पंख फैला उड़ने को उत्सुक
उसने भी गर्व से पुकारा है
सारा आकाश हमारा है।
सोने के पिंजरे में बैठा
जो लेता रस का आनन्द भरपूर
वह भी पंखो को फैलाता
पर पिंजरा ही उसका किनारा है
कैसे कह सकता
सारा आकाश हमारा है।
पर उस स्वतन्त्र पंछी से पूछो
जो उड़ता चारो किनारा है
पिंजरे को ठुकराता है
भूखा है गर्वित हो कहता
सारा आकाश हमारा है।
मैं स्वच्छंद गगन का पंछी
सारा आकाश हमारा है
पुनि पुनि कह्ता स्वतन्त्रा अभिलाषी
पुनि पुनि कह्ता स्वतन्त्रा अभिलाषी
सारा आकाश हमारा है
सारा आकाश हमारा है।
(22 दिसम्बर 1999)
(22 दिसम्बर 1999)
बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंसितारों से आगे अलग भी है दुनियाँ।
नजर तो उठाओ उसी की कसर है।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
मुश्किलों से भागने की अपनी फितरत है नहीं।
कोशिशें गर दिल से हो तो जल उठेगी खुद शमां।।
www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
aazadi ke pankhon ki hawa bahut achhi lagti hai,sunder rahana badhai
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर भाव ... अच्छी रचना लिखी है आपने ... बधाई।
जवाब देंहटाएंमैं स्वच्छंद गगन का पंछी
जवाब देंहटाएंसारा आकाश हमारा है
नये पंख से नये स्वरो से
प्रकृति ने हमें संवारा है
सारा आकाश हमारा है।
अच्छी रचना .. बधाई.
आप सभी लोगों का बहुत बहुत धन्यवाद !!!!!!
जवाब देंहटाएंयह गीत प्रेरक संदेश दे रहा है!
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