जब मैं,
पटना में रहता था,
तब मुझे,
रोटीयाँ स्वंय ही बनानी पड़ती थी,
ये रोटीयाँ,
कभी गोल बन जाती थी,
और कभी टेढी-मेढी,
पर मुझे पैसे नहीं देने पड़ते थे,
अब मुझे,
रोटीयाँ नहीं बनानी पड़ती है,
पर मुझे पैसे देने पड़ते है.
चाहे रोटीयाँ गोल हो,
चाहे टेढी,
मैं पैसे चुकाता हूँ,
क्योंकी कुछ बाते पीछे रह गयी है।
अब मैं,
रोटीयाँ बनाना भूल चुका हूँ,
और पता नहीं,
और क्या क्या भूलने वाला हूँ।
बड़ी प्यारी बातें हैं जो कविता बन गयी हैं
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल और शाम । गुलाबी कोंपलें
कुछ भी भूलनेवाले नहीं हो मित्र!
जवाब देंहटाएंभटकने की कोशिश भी मत करो!
पहले मैं भी तुम्हारी ही तरह
रोज टेढी-मेढी रोटियाँ बनाता था,
पर अब जब भी बनाता हूँ,
गोल ही बनती हैं!
jahan tak mujhe yad hai.....rotiyan to main banata tha......aap kab se rotiyan banane lage
जवाब देंहटाएंhaa par kavita to achchi hai!
जवाब देंहटाएंकिसे पता था ऊपर चढ़ने का,
जवाब देंहटाएंहोता है इतना बुरा अंजाम,
खो गए हैं शिखरों पर आकर,
कोई भी अपने पास नहीं है.
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seedhe shabdon men likhi hui bahut hi pyari kavita hai . badhaee sweekar karen.
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