रुको नहीं, थको नहीं,
रुकना नहीं कर्म है,
थकना नहीं धर्म है।
चलते रहो चलते रहो,
चलना हीं तो कर्म है।
रवि रुक जाये अगर,
प्रकृति में हो जाये प्रलय।
चाहते हो अगर जीतना तो,
समझो कर्म के महत्व को।
कर्म हीं है जिन्दगी,
मानवता कर्म है,
मातृत्व हीं तो कर्म है,
भक्तित्व हीं तो कर्म है।
कर्म से डरो नहीं,
कर्म से भागो नहीं,
कर्म तुम्हें पहुँचायेगा,
परम लक्ष्य की सीमा तक।
सत्य है असत्य है,
सत्य को चुन लो तुम,
सत्य को थामे रहो,
कर्म हीं पहुँचायेगा तुम्हें,
सत्य की राह पर।
अराधना हीं कर्म है,
साधना हीं कर्म है,
पवित्र मन, सत्य वचन,
सच्ची श्रद्धा,हृदय से निष्ठा,
कर्म का मूलमंत्र है।
कर्म देश भक्ति है,
कर्म हीं तो शक्ति है,
कर्म का भविष्य है,
निश्वार्थ भाव से,
कर्म करो,कर्म करो।
(20 जुलाई 1999)
उत्प्रेरक है या कविता, बहुत ख़ूब
जवाब देंहटाएं---
चाँद, बादल और शाम
बहुत सुन्दर , सचमुच कर्म ही भक्ति है |
जवाब देंहटाएंवीर तुम बढ़े चलो, धीर तुम बढ़े चलो ... ... .
जवाब देंहटाएंप्रेरणादायी रचना.
जवाब देंहटाएंबहुत प्रेरक रचना है ..
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया।
जवाब देंहटाएंघुघूती बासूती
बहुत बहुत शुक्रिया आपके सुंदर टिपण्णी के लिए!
जवाब देंहटाएंबहुत ही शानदार लिखा है आपने कर्म के बारे में !
कर्म आधारित आपकी ये प्रेरणादायक रचना बहुत ही सुन्दर लगी.........आभार
जवाब देंहटाएंरुको नहीं, थको नहीं,
जवाब देंहटाएंरुकना नहीं कर्म है,
थकना नहीं धर्म है।
चलते रहो चलते रहो,
चलना हीं तो कर्म है।
बहुत ही शानदार ....
karm ki achhi vyakhya.
जवाब देंहटाएंbadhai
बहुत बढ़िया। बहुत प्रेरणादायी है.
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर एवं प्रेरणादायक रचना लिखी है आपने कर्म की महत्ता पर|
जवाब देंहटाएंसमस्त संसार एवं जीव चलते हैं इस कर्म की ही सत्ता पर ||
और जहाँ तक रही बात रोटियाँ बनाने के कर्म की तो मेरा हाल भी कुछ आपके ही जैसा है. बहुत कम रोटियाँ ही गोल बन पाती हैं. लेकिन कभी तो वो दिन आएगा इसी उम्मीद में कर्म कर रहा हूँ.
हमसफ़र यादों का.......
sahi likha hai karm par hi hamara adhikaar hai, bahut achhi rachna hai :)
जवाब देंहटाएंkarm karein karte rahein yahi ekmatra sach hai. jo is bat ko samajhta hai vahi chalta hai baki baith jate hain
जवाब देंहटाएंबेहद एनकरेजिंग कविता है. पढ़ कर मन खुश हो गया.
जवाब देंहटाएं