मैनें उसको देखा पथ पर,
लुढ़का पड़ा था नाली पर,
कपड़े थे उसके तितर-बितर,
पर..............................
ध्यान न गया किसी का उसपर,
कवियों की कलमें टूट गयी पर,
रंग डाले सारे पन्ने पर,
पर.......................
नजर न डाली किसी ने उसपर,
पड़ा रहा उसी भाँति वह पथ पर,
उसकी हालत थी अब बदतर,
पर...............................
झपट पड़ा कुत्ता भी उसपर,
ले गया आधा वह भी बांटकर,
शांत रहा वह आधे पेट का आधा भरकर,
पर............................................
अपनी गुदड़ी में घुसकर,
रात बितायी ठिठुर - ठिठुर कर,
सुबह चला फिर अपने पथ पर,
पर................................
(२९ दिसम्बर १९९९)
(चित्र साभार- गूगल सर्च)
Good thinking... you can elaborate it...
जवाब देंहटाएंबहुत खूब त्रासद लिखा है आपने.
जवाब देंहटाएंभावनाए मुखर है.
ऐसी ही रचनाएं संवेदनाओं को पुष्ट करती हैं, परदुखकातर बनाती हैं और हमें मनुष्य होने का गौरव प्रदान करती हैं. बधाई अच्छी रचना के लिये.
जवाब देंहटाएंKya kahun? Pata nahee..ham kin,kin karmon kee saza bhugatte rahte hain?
जवाब देंहटाएंhttp://shamasansmaran.blogspot.com
http://kavitasbyshama.blogspot.com
http://shama-baagwaanee.blogspot.com
http://shama-kahanee.blogspot.com
waah chandanji..............
जवाब देंहटाएंchandan ki visheshta hai ki vah apni thandak se doosron ke taap ko mitaata hai..........
kavita me bhi aapne ik dukhiyaare ki sthiti ka itnee karun shaili me varnan kiya hai ki shaayad bhagwaan ko daya aa jaaye aur use bhi koi samhaalne waala mil jaaye...........
waah !
badhaai !
samvedan shaal है आपकी रचना ........... saarthak, saty के kareeb .........
जवाब देंहटाएंChandan Ji,
जवाब देंहटाएंparpeeda ko samjhana har kisi ke bas ki baat nahi, aap samjhate hai, ye aapke samvedansheel hone ki nishaani hai ...............!
Good expressions, as always....
Pratima Sinha
Bahut hi sunder rachana...bahut achche.
जवाब देंहटाएंचमचमाती गाड़ियों के पास बैठे निरीह अंतिम आदमी का बिलकुल सटीक चित्रण किया है. अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकारें...
जवाब देंहटाएंमार्मिक अवलोकन!
जवाब देंहटाएंnice
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना लिखा है आपने! पढकर बहुत अच्छा लगा!
जवाब देंहटाएंमेरे नए ब्लॉग पर आपका स्वागत है!
http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com
बहुत सुंदर रचना है
जवाब देंहटाएंचन्दन जी आपका बहुत -बहुत शुक्रिया !आपकी सलाह ने मुझे खुद को अभिव्यक्त करने मे जो मदद की है उसके लिये मै आपकी दिल से आभारी हू !
जवाब देंहटाएंशब्दार्थ नोट करें
जवाब देंहटाएंकमज़र्फ याने एहसान फरामोश और दाना याने बुद्धिमान या समझदार
अच्छी कविता
वाह
धन्यवाद योगेन्द्र मौदगिल जी.
जवाब देंहटाएंbahut khub
जवाब देंहटाएंअपनी कलम से एक बार पुनः सिद्ध कर दिया कि करना कोई कुछ नहीं चाहता, बस देखना, खबरे बनाना, चटखारे ले कर मज़ा लेना आदि जैसे करती ही तो आज के कर्म रह गायें हैं.
जवाब देंहटाएंमार्मिक कविता द्वारा गहन सन्देश विशेष रूप से पसंद आया.
बधाई स्वीकार करें.
मुझे तो निराला जी की याद आ गई ..इलहाबाद के पथपर देखा उसको...
जवाब देंहटाएंसंग बनाये रखने के लिये आप सभी का आभारी हूँ.
जवाब देंहटाएंbahut achi kavita hai....sidha dil ko chuti hai
जवाब देंहटाएंjaishankar prasad ki bhikshuk yaad aa gayi...
जवाब देंहटाएंwah aata..
do took kaleje ke karta..
pachtata path par jaata..