रोका था,
तुमनें मुझे ।
जब मैनें,
कोशिश की थी,
रोने की ।
कहा था तुमनें,
मत बर्बाद करो,
इन आँसुओ को,
मेरे लिये ।
बचाकर भी नहीं,
रख पाया था,
मैनें इन्हें ।
खर्च कर दिये थे,
सारे के सारे ।
अब,
जबकी तुम नहीं हो,
नहीं भींग पाती है,
मेरी आखें ।
बहुत ,
कोशिश करने के,
बाद भी ।
(चित्र साभार- अरुण कुमार)
भाई वाह क्या बात है, लाजवाब रचना। बधाई
जवाब देंहटाएंलाज़वाब
जवाब देंहटाएंलेकिन मेरी आँखे भिगा गई आपकी कविता...
जवाब देंहटाएंरचना बहुत अच्छी लगी....बहुत बहुत बधाई....
जवाब देंहटाएंबहुत पसंद आयी
जवाब देंहटाएं---
आनंद बक्षी
बहुत बढ़िया.
जवाब देंहटाएंman ko chhu leti hain
जवाब देंहटाएंरचना के भाव अच्छे हैं चन्दन जी।
जवाब देंहटाएंNihsandeh aapka likha har shabd prabhaavit karne wala hai. Eeshwar aapki lekhni ko sadaiv sashakt rakhe.
जवाब देंहटाएंaapaki ye kavita dil ko chhu gayi...bahut achche.
जवाब देंहटाएंसबने सब कुछ कह दिया,अब मै क्या कहू. बहुत ही सुन्दर मन को भिगोने वाली कविता...!
जवाब देंहटाएंमेरा आकाश...!
शानदार, लाजवाब और उम्दा रचना के लिए बधाई ! तस्वीर भी बहुत सुंदर है !
जवाब देंहटाएंश्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें !
kochi me mahakte chandan ki rachnao me kavedi ke chandan si shuddh mahak hai
जवाब देंहटाएंसुन्दर अभिव्यक्ती |
जवाब देंहटाएंis ke to sirf aankhen nahin....
जवाब देंहटाएंdil bhi bhar aye..
BAHOOT KHOOB ....... SPEACHLESS HUN MAIN .....
जवाब देंहटाएंशानदार, लाजवाब और उम्दा रचना के लिए बधाई ! तस्वीर भी बहुत सुंदर है !
जवाब देंहटाएंश्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें !