गुरुवार, 20 अगस्त 2009

परिवर्तन














रोका था,
तुमनें मुझे

जब मैनें,
कोशिश की थी,
रोने की

कहा था तुमनें,
मत बर्बाद करो,
इन आँसुओ को,
मेरे लिये

बचाकर भी नहीं,
रख पाया था,
मैनें इन्हें

खर्च कर दिये थे,
सारे के सारे

अब,
जबकी तुम नहीं हो,
नहीं भींग पाती है,
मेरी आखें

बहुत ,
कोशिश करने के,
बाद भी




(चित्र साभार- अरुण कुमार)



17 टिप्‍पणियां:

  1. भाई वाह क्या बात है, लाजवाब रचना। बधाई

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  2. लेकिन मेरी आँखे भिगा गई आपकी कविता...

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  3. रचना के भाव अच्छे हैं चन्दन जी।

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  4. Nihsandeh aapka likha har shabd prabhaavit karne wala hai. Eeshwar aapki lekhni ko sadaiv sashakt rakhe.

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  5. सबने सब कुछ कह दिया,अब मै क्या कहू. बहुत ही सुन्दर मन को भिगोने वाली कविता...!

    मेरा आकाश...!

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  6. शानदार, लाजवाब और उम्दा रचना के लिए बधाई ! तस्वीर भी बहुत सुंदर है !
    श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें !

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  7. kochi me mahakte chandan ki rachnao me kavedi ke chandan si shuddh mahak hai

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  8. शानदार, लाजवाब और उम्दा रचना के लिए बधाई ! तस्वीर भी बहुत सुंदर है !
    श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें !

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